बाजार में जब भी कोई उथल-पुथल होती है, उसका सबसे पहला प्रभाव दिखता है शेयर बाजार पर. 2008 में आर्थिक मंदी आई, शेयर बाजार धड़ाम. आईएल एंड एफएस डूबा, शेयर बाजार गिर गया. बजट अच्छा नहीं आया, शेयर लुढ़क गए, कोराना का कहर आया, तो बाजार गिर गया, यस बैंक पर आरबीआई की पाबंदी की खबर आई तो शेयर बाजार गिर गया. ये होता रहा है. किसी को इस पर आश्चर्य नहीं होता. बाजार में पैसे लगाने वाले लोग इसके आदी हो चुके हैं. लेकिन फिर आता है 9 मार्च. होली के ठीक पहले का दिन. और बाजार इतना गिरता है, इतना गिरता है कि 10 साल की सबसे बड़ी गिरावट होती है और एक झटके में 6.50 लाख करोड़ रुपये खत्म हो जाते हैं. ये पैसे उन आम निवेशकों के हैं, जिन्होंने बाजार में पैसे लगाए हैं. 9 मार्च को न तो किसी बैंक के डूबने की खबर आई, न ही किसी वैश्विक मंदी की और न ही किसी बीमारी की. फिर भी एक झटके में पांच लाख करोड़ स्वाहा हो गए. इसके पीछे कोई तो वजह होगी. इसलिए हम आपको उन्हीं वजहों को बताने की कोशिश कर रहे हैं.


हमारे देश का बजट आया था 1 फरवरी, 2020 को. और बजट बाजार के अनुकूल नहीं था. तो लोगों ने अपने खरीदे हुए शेयर बेचने शुरू किए. नतीजा ये हुआ कि सेंसेक्स करीब 988 पॉइंट गिर गया और लोगों के 4 लाख करोड़ रुपये डूब गए. फिर खबर आई यस बैंक के बारे में. 5 मार्च को रिजर्व बैंक ने पाबंदियां लगा दीं. और उस दिन भी शेयर बाजार लुढ़का. लेकिन 9 मार्च की गिरावट के पीछे भारतीय़ बाजार में साफ-साफ कोई वजह नज़र नहीं आती है. फिर भी वजह तो है ही. वो क्या है, समझने की कोशिश करते हैं.


1.30 साल में सबसे नीचे गिरा कच्चे तेल का दाम


9 मार्च को कच्चे तेल के दाम में भारी गिरावट हुई. डब्ल्यूटीआई क्रूड 22.34 फीसदी गिरा, जिसकी वजह से दाम 32.06 डॉलर प्रति बैरल हो गए. वहीं बेंट क्रूड में 20.30 फीसदी की गिरावट हुई और ये 36.08 डॉलर प्रति बैरल हो गया. इसकी वजह है रूस और सऊदी अरब के बीच क्रूड ऑयल में प्राइस वॉर. सऊदी अरब ने रूस से अपने कच्चे तेल के उत्पादन को कम करने को कहा था. रूस ने ऐसा नहीं किया. फिर रूस को सबक सिखाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब ने कच्चे तेल के दाम में भारी कटौती कर दी. इसके अलावा वो अप्रैल महीने से हर दिन 1 करोड़ बैरल प्रति दिन तेल का उत्पादन करने की योजना बना रहा है, जिसकी वजह से तेल के दाम 22 फीसदी तक घट गए.


2.डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट


9 मार्च को डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो गया. 6 मार्च को डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 73.87 थी, जो 9 मार्च को गिरकर 74.03 हो गई. इसकी वजह से सरकार को अब कच्चे तेल खरीदने के लिए ज्यादा रुपये चुकाने होंगे. बाकी ये एक अलग सवाल है कि क्या अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कम होने से भारत में आम आदमी को भी तेल सस्ता मिलेगा.


ये तो रही असली वजह शेयर बाजार के धड़ाम होने की. लेकिन कुछ लोग इसे कोरोना वायरस और यस बैंक से भी जोड़कर देख रहे हैं. भारत सरकार के आर्थिक मामलों के सचिव अतानु चक्रवर्ती ने भी बाजार के गिरने की वजह कोरोना को ही बताई है. इसलिए थोड़ी बात इसपर भी कर ही लेते हैं. कोरोना चीन से निकला और पूरी दुनिया में फैल गया. एक लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हैं और संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. लिहाजा बाजार पर इसका असर देखने को मिल रहा है. सबसे ज्यादा असर चीन के बाजार पर है, जहां बाजार में गिरावट देखी गई. जापान का शेयर मार्केट भी गिर गया. लेकिन फिर सवाल खड़ा होता है कि क्या भारत का बाजार चीन पर इतना निर्भर है कि चीन में शेयर बाजार गिरने का असर भारत पर भी इतना ज्यादा पड़ेगा. इसका जवाब हां में है. भारत अपने कुल आयात के करीब 15 फीसदी से ज्यादा के लिए अकेले चीन पर निर्भर है. भारत करीब 74.72 बिलियन डॉलर का आयात चीन से करता है, वहीं चीन को करीब 17.95 बिलियन डॉलर का सामान बेचता है. आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि हम चीन से आयात पर कितना निर्भर हैं. और जब ये हाल है तो वहां से सामान न आने का असर सीधे तौर पर बाजार पर दिखेगा.





और अब लगे हाथ यस बैंक की भी बात कर ही लेते हैं. रिजर्व बैंक के एक फैसले की वजह से पांच मार्च को यस बैंक खबरों में आया. रिजर्व बैंक ने देश के पांचवे सबसे बड़े निजी बैंक से ट्रांजेक्शन लिमिट लगाई तो बाजार गिरा था. लेकिन जबसे एसबीआई ने यस बैंक को संभालने की बात की है, यस बैंक के शेयरों में निवेशकों का भरोसा लौटा है. और यही वजह है कि 9 मार्च को जब सेंसेक्स करीब 2300 पॉइंट नीचे गिरकर 35000 पर आ गया और बीएसई भी 600 पॉइंट नीचे गिर गया, तब भी यस बैंक के शेयर में 34 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई. वहीं यस बैंक को संभालने की कोशिश करने वाले एसबीआई के शेयर गिर गए हैं. हालांकि बाजार के बंद होते-होते अंकों की गिरावट थोड़ी कम हुई. सेंसेक्स 1942 पॉइंट गिरकर 35,635 पर बंद हुआ. वहीं निफ्टी 538 पॉइंट गिरकर 10,451 पर बंद हुआ. और जिन बड़ी कंपनियों के शेयर गिरे, उनमें सबसे ज्यादा गिरावट ओनजीसी में देखी गई, जो 13.95 फीसदी गिरा. इसके अलावा रिलायंस इंडस्ट्रीज में 12.34 फीसदी की गिरावट हुई. इसके अलावा भारी नुकसान झेलने वाले शेयरों में वेदांता, जी एंटरटेनमेंट, इंडसइंड बैंक, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, गेल और टीसीएस रहे. कोल इंडिया, एसबीआई, बजाज ऑटो, आईसीआईसीआई और अडानी पोर्ट्स के शेयर को भी नुकसान हुआ.


आपको एक और चीज बता देते हैं. अगर अंकों के लिहाज से बात करें तो 9 मार्च को शेयर बाजार में हुई गिरावट अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. इससे पहले 24 अगस्त 2015 को सेंसेक्स में 1624.51 अंकों की गिरावट देखी गई थी और उस दिन दुनिया भर के बाजार गिर गए थे. इसके अलावा अभी हाल ही में 28 फरवरी को भी कोरोना की वजह से सेंसेक्स ने 1448.37 पॉइंट का गोता लगाया था. 2008 में जब आर्थिक मंदी आई थी, तब भी 21 जनवरी, 2008 और 24 अक्टूबर 2008 को सेंसेक्स क्रमश: 1408.35 पॉइंट और 1070.63 पॉइंट गिरा था. इसके अलावा 1 फरवरी,2020 को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण खत्म हुआ था, तब भी शेयर बाजार 987.96 पॉइंट गिर गया था.