Job Shift: खत्म हो गई ऑफिस की शिफ्ट तो नहीं है बॉस का कॉल उठाने की जरूरत, इन कर्मचारियों को मिला कानूनी अधिकार
Work-Life Balance: सरकार ने कर्मचारियों को यह अधिकार इस कारण दिया है कि उनके काम और आराम के बीच संतुलन बनाया जा सके यानी उन्हें वर्क-लाइफ बैलेंस का लाभ मिल सके...
प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों के पास अक्सर ये शिकायत रहती है कि उन्हें काम के तय घंटों के अलावा भी काम करना पड़ता है. कई बार कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें शिफ्ट समाप्त होने के बाद भी उनके बॉस के कॉल आते रहते हैं. इन चीजों से परेशान कई कर्मचारियों को अब राहत मिलने वाली है, क्योंकि उन्हें शिफ्ट के बाद बॉस के कॉल को इग्नोर करने का कानूनी अधिकार मिल गया है.
आज से लागू हुआ नया कानून
कर्मचारियों को यह कानूनी अधिकार दिया है ऑस्ट्रेलिया ने. ऑस्ट्रेलिया में कर्मचारियों की बेहतरी और उनके वर्क-लाइफ बैलेंस को ध्यान में रखकर एक नया कानून बनाया गया है. उस कानून को ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ नाम से जाना जा रहा है. नया कानून आज सोमवार से लागू हो गया है. इस कानून के बाद कर्मचारियों को उनके काम के घंटे समाप्त होने के बाद कॉल या ईमेल से परेशान नहीं किया जा सकेगा.
कर्मचरियों को मिला ये अधिकार
इस कानून ने कर्मचारियों को अधिकार दिया है कि वे अपनी शिफ्ट समाप्त होने के बाद ऑफिस के सीनियर्स या बॉस के कॉल व ईमेल आदि को इग्नोर करें. अगर कोई कर्मचारी शिफ्ट के बाद बॉस के कॉल व ईमेल को इग्नोर करता है, तो इस आधार पर कंपनियां या उनके बॉस उन्हें किसी भी तरह से प्रताड़ित नहीं कर सकते हैं.
कानून बनने के बाद शुरू हुई बहस
हालांकि इस कानून के लागू होने के बाद नई बहस भी शुरू हो गई है. कानून के समर्थक उसे अच्छा बता रहे हैं, जबकि आलोचकों को उत्पादकता पर असर पड़ने का डर सता रहा है. कानून के पक्षधरों का कहना है कि हालिया सालों में कर्मचारियों का वर्क-लाइफ बैलेंस बहुत प्रभावित हुआ है. खासकर कोविड के बाद के सालों में यह बढ़ा है. कर्मचारियों को काम के घंटे समाप्त होने के बाद भी काम से जुड़े कॉल, टेक्स्ट, ईमेल आदि भेजे जा रहे हैं. कानून बनने से इस प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी और कर्मचारियों को ऐसी हरकतों का विरोध करने का साहस मिलेगा.
कानून बनाकर तय हुए थे काम के घंटे
यह पहली बार नहीं है, जब कर्मचारियों के वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा देने के लिए कानूनी उपाय किए गए हों. एक समय कर्मचारियों के काम के घंटे भी तय नहीं हुआ करते थे, लेकिन बाद में श्रम संगठनों की डिमांड तेज होने के बाद तमाम देशों में कानून बनाकर काम के घंटे तय किए गए.
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