घट सकती है पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी
बीते दिनों केंद्र ने दो रुपये प्रति की दर से एक्साइज ड्यूटी मे कमी की थी. साथ ही राज्य सरकारों को सेल्स टैक्स घटाने को कहा. लेकिन आधे दर्जन से भी कम राज्यों ने ही दरें कम की, बाकिय़ों ने कमाई में कमी की आड़ में दर घटाना उचित नहीं समझा.
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नई दिल्लीः अगर वित्त मंत्रालय ने तेल मंत्रालय की बात मानी तो पहली फरवरी को पेश होने वाला आम बजट पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आए उबाल को कुछ कम कर सकता है. क्योंकि, सूत्रों के मुताबिक, तेल मंत्रालय पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद कर में कमी चाहता है.
केंद्र सरकार पेट्रोल पर 19.48 रुपये और डीजल पर 15.33 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से एक्साइज ड्यूटी लगाती है. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में पेट्रोल पर 6 से लेकर 40 फीसदी और डीजल पर छह से लेकर 29 फीसदी के करीब सेल्स टैक्स/ वैट लगाया जाता है. बीते दिनों केंद्र ने दो रुपये प्रति की दर से एक्साइज ड्यूटी मे कमी की थी. साथ ही राज्य सरकारों को सेल्स टैक्स घटाने को कहा. लेकिन आधे दर्जन से भी कम राज्यों ने ही दरें कम की, बाकिय़ों ने कमाई में कमी की आड़ में दर घटाना उचित नहीं समझा.
तेल मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो उन्होंने वित्त मंत्रालय ने एक्साइज ड्यूटी में कमी करने की गुजारिश की है, ताकि ग्राहकों को कुछ राहत पहुंचायी जा सके. गौर करने की बात है कि नवम्बर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल-डीजल पर नौ बार एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी की गयी, जबकि उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे के भाव निचले स्तर पर चल रहे थे. अब जब भाव जब तेज हैं तो एक्साइज ड्यूटी में कमी की मांग जोर पकड़ रही है.
बीते कुछ समय से कच्चे तेल के भारतीय बास्केट में आग लगी हुई है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल के दाम भी बढ़े हैं. इन सब का नतीजा ये हुआ कि घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमत लगातार बढ़ती रही. पहली जनवरी से लेकर अब तक दिल्ली में पेट्रोल करीब ढ़ाई रुपये और डीजल करीब साढ़े रुपये महंगा हुआ है. ध्यान रहे कि पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमत तय करने में तीन बातें योगदान करती हैं – कच्चे तेल के भारतीय बाजार की कीमत, पेट्रोल-डीजल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत और डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत.
पेट्रोल और डीजल को वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इस समय केंद्र सरकार जहां एक निश्चित दर यानी Specific Rate के हिसाब से एक्साइज ड्यूटी लगाती है, वहीं राज्य सरकारें कीमत के फीसदी यानी एड वेलोरम के हिसाब से सेल्स टैक्स लगाती है. दूसरे शब्दों में कहें तो कच्चे तेल और पेट्रोल-डीजल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ी तो केंद्र सरकार को कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन राज्य सरकारों की आमदनी बढ़ जाएगी. इसकी वजह ये है कि सेल्स टैक्स के आंकलन के लिए आधार ऊंचा हुआ तो वास्तव में वो टैक्स भी ज्यादा हो जाएगा.
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