नई दिल्ली: बैंकों में बड़े उद्योगों के लिए कुल फंसा हुआ कर्ज यानी ग्रॉस एनपीए 33 महीने में 328 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है. वित्त मंत्रालय की ओर से लोकसभा में रखी गयी जानकारी के आधार पर ये नतीजा सामने आया है.
मंत्रालय के मुताबिक, बड़े उद्योंगों का कुल फंसा कर्ज 31 मार्च 2015 को 1.23 लाख करोड़ रुपये का था जो 31 दिसंबर 2017 को 5.28 लाख करोड रुपये तक पहुंच गया. किसी भी कर्ज में लगातार तीन मासिक किस्तें नहीं आती है तो नियमों के मुताबिक उसे फंसे हुए कर्ज यानी एनपीए की सूची में डालना होता है. बैंक अलग-अलग तरह के कर्जदारों की सूची तैयार करते हैं जिसमें से एक ‘इंडस्ट्री-लार्ज’ यानी बड़े उद्योग है. भारतीय स्टेट बैंक और आईडीबीआई बैंक को छोड़ दें तो बाकी बचे 19 सरकारी बैंकों के कुल कर्ज में बड़े उद्योग की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी रही.
ध्यान देने की बात यहां ये भी है कि जहां छोटे कर्जदारों के लिए व्यक्तिगत कर्ज को छोड़ बाकी मामलों में कर्ज की रकम के बराबर कीमत गिरवी रखी जाती है, वहीं बडे उद्योग या बड़े कर्जदारों के मामले में ये औसतन 50 फीसदी होता है.
वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने एक लिखित जवाब में जानकारी दी कि रिजर्व बैंक ने 2015 में असेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) यानी कर्ज की गुणवत्ता को लेकर एक बड़ी पहल की. इसका मकसद बैंकों के बैलेंश शीट को मार्च 2017 तक दुरुस्त करना था. इसके तहत ऐसे तमाम कर्ज खातों की पहचान की गयी जिसमें पैसे वापस पाने की संभावना या तो बहुत ही कम थी या नहीं थी, इसी आधार पर ऐसे कर्ज को फंसे कर्ज यानी एनपीए की श्रेणी में डाला गया. सरकार का दावा है कि एक्यूआर और बाद में पहचान की प्रक्रिया को और बेहतर बनाने की वजह से ही फंसे कर्ज में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली.
सरकार और रिजर्व बैंक पहले ही ये जानकारी सार्वजनिक कर चुके हैं कि अकेले 12 बड़े कर्जदार कुल फंसे कर्ज में 25 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. ये वो खाते हैं जिनमें से हरेक में कम से कम कर्ज 5000 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा है. अब इन कंपनियों के खिलाफ नए दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई शुरु की गयी है जिसके बाद उम्मीद है कि बैंकों को अपनी फंसी रकम का एक हिस्सा मिल जाएगा.
इस बीच सरकार ने लोकसभा को बताया कि 31 जनवरी तक जानबुझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों के खिलाफ 2170 एफआईआऱ दर्ज कराए गए हैं. इसके साथ ही विभिन्न अदालतों में 8513 मुकदमें भी चल रहे हैं. यही नहीं सरफेसी एक्ट के तहत 7005 मामलों में कार्रवाई शुरु की गयी है.
सरकारी बैंकों के कुल फंसे कर्ज यानी ग्रॉस एनपीए की बात करें तो ये मार्च 2015 के अंत में 2.70 लाख करोड़ रुपये था जो 31 दिसंबर 2017 को 7.87 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. अगर निजी बैंकों को शामिल कर लिया तो ये आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा.
बडे उद्योग का फंसा कर्ज
बैंक |
कुल फंसा हुआ कर्ज/ग्रॉस एनपीए
(करोड़ रुपये में) |
कुल फंसा हुआ कर्ज/ग्रॉस एनपीए
(कुल कर्ज का प्रतिशत) |
इलाहाबाद बैंक |
14652 |
36.94 |
आंध्र बैंक |
15259 |
29.29 |
बैंक ऑफ बडौदा |
16803 |
22.65 |
बैंक ऑफ इंडिया |
24120 |
29.37 |
बैंक ऑफ महाराष्ट्र |
9393 |
36.58 |
केनरा बैंक |
21605 |
21.36 |
सेंट्ल बैंक ऑफ इंडिया |
21940 |
34.97 |
कॉरपोरेशन बैंक |
13758 |
23.91 |
देना बैंक |
6954 |
30.33 |
आईडीबीआई बैंक |
34411 |
42.69 |
इंडिय़न बैंक |
6568 |
16.41 |
इंडियन ओवरसीज बैंक |
19593 |
44.29 |
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स |
17502 |
39.1 |
पंजाब एंड सिंध बैंक |
3273 |
18.32 |
पंजाब नेशनल बैंक |
32710 |
26.67 |
भारतीय स्टेट बैंक |
143526 |
25.09 |
सिंडिकेट बैंक |
10055 |
24.25 |
यूको बैंक |
15768 |
40.21 |
युनियन बैंक ऑफ इंडिया |
22239 |
26.61 |
युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया |
9269 |
41.43 |
विजया बैंक |
4855 |
30.1 |
स्रोत - लोकसभा