देश में नकली दवाओं का कारोबार काफी तेजी से फैल रहा है. खुद डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि भारत में कोरोनावायरस के नाम पर नकली दवाएं बड़े पैमाने पर बिक रही हैं. उसका कहना है कि घटिया केमिकल, बहुत कम केमिकल या बगैर जरूरी केमिकल के ही बनाई गई दवाओं के साथ ही एक्सपायर्ड दवाओं का कारोबार भी बढ़ रहा है. भारत समेत लोअर और मिडिल इनकम आय वाले देशों में नकली दवाओं का कारोबार 30 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.


दवाओं के साथ ही घटिया मास्क , दस्ताने और नकली  सैनिटाइजर बिक रहे हैं


दवाओं के साथ ही मास्क मास्क, दस्ताने और सैनिटाइजर भी बड़ी मात्रा में नकली बिक रहे हैं.कई बार बड़ी फार्मा कंपनियां अपनी दवाओं को छोटी कंपनियों से बनवाती हैं. अगर इन दवाओं में कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो पहले सिर्फ दवा तैयार करने वाली कंपनी ही जिम्मेदार मानी जाती थी, लेकिन अब मैनुफैक्चरर और मार्केटिंग कंपनियों दोनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. इससे देश में बेची जाने वाली दवाओं की क्वॉलिटी में सुधार आने की उम्मीद है क्योंकि यह फार्मा कंपनियों को मरीजों को दवा बेचे जाने से पहले उसकी गुणवत्ता की सीधी निगरानी के लिए प्रोत्साहित करेगा.


नकली दवाओं पर नकेल के लिए पुख्ता नियम जरूरी 


थर्ड पार्टी से दवाएं तैयार करवाने वाली कंपनी को उनकी क्वॉलिटी के लिए जिम्मेदार होना चाहिए. मौजूदा कानून सभी जिम्मेदारियों को सिर्फ मैनुफैक्चरर कंपनी पर डालता है. इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस बड़ी घरेलू कंपनियों का एक संगठन है. इसके साथ ही दवा इंडस्ट्री से जुड़े कुछ बड़े अधिकारियों का मानना है कि थर्ड पार्टी की दवाओं की मार्केटिंग वाली कंपनियों के लिए यह नियम नुकसान पहुंचाने वाला होगा क्योंकि इससे उन्हें उन गलतियों के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाएगा जो उन्होंने नहीं की होंगी. लेकिन इतना तय है कि देश में नकली दवाओं का एक बड़ा बाजार खड़ा हो चुका है. इसे नियंत्रित करने के कोई साफ नियम बनाना होगा.


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