नई दिल्ली: केंद्र और राज्यों ने किसानों को वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत रजिस्ट्रेशन से छूट देने का फैसला किया है. वहीं 20 लाख रुपये सालाना तक के कारोबार वाले व्यापारियों को जीएसटी के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कराना होगा. जीएसटी काउंसिल ने आयुक्त स्तर के अधिकारियों को टैक्सपेयर्स को टैक्स ईएमआई में जमा कराने की छूट देने का भी अधिकार दिया है ताकि टैक्सपेयर्स इकाइयों को वित्तीय समस्या से निपटने में राहत मिल सके.


केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली जीएसटी परिषद ने केंद्रीय जीएसटी :सी-जीएसटी: और एकीकृत जीएसटी :आई-जीएसटी: विधेयकों को आज मंजूरी दे दी. इससे अगले सप्ताह से शुरू संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में इसे पेश करने का रास्ता साफ हो गया है. परिषद में सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व है.


परिषद ने पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों के लिये 20 लाख रुपये की आय सीमा रखने का फैसला किया है. पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिये सीमा 10 लाख रुपये होगी.


वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘किसी कारोबारी इकाई का सालाना कारोबार 20 लाख रुपये होने पर उसे जीएसटी व्यवस्था में रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होगी. हालांकि वह कच्चे और मध्यवर्ती पर दिये गये कर पर छूट (क्रेडिट) का हिस्सा बनने के लिये स्वेच्छा से इससे जुड़ने का विकल्प चुन सकता है.’’ बयान के अनुसार खेती-बाड़ी करने वालों जो खेती से उत्पन्न उपज की आपूर्ति करता है को जीएसटी व्यवस्था के तहत रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होगी.


राजस्व सचिव हसमुख अढ़िया ने कहा


यह मांग थी कि छोटे कारोबार वाले रेस्तरां पर निपटान के लिये एक खास योजना शामिल की जाए. इसीलिए जीएसटी काउंसिल ने फैसला किया है कि 50 लाख रुपये सालाना तक का कारोबार करने वाले रेस्तरां को इस योजना में रखा जाएगा और उन पर 5 फीसदी की दर से टैक्स लगाया जाएगा. इससे अधिक कारोबार करने वाले रेस्तरां पर सर्विस टैक्स र की सामान्य दरें लगेंगी.


उन्होंने कहा कि जीएसटी काउंसिल ने अपनी पहली बैठक में 50 लाख रुपये तक का ट्रेडिंग करने वाली और मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स को भी निपटान योजना में रखे जाने का फैसला किया था. इसमें टैक्स देनदारी की गिनने का आसान तरीका अपनाने और न्यूनतम सीमा से नीचे कारोबार करने वाली इकाइयों को जीएसटी में रजिस्ट्रेशन कराने की छूट का प्रावधान करना है. जेटली ने कहा कि जीएसटी काउंसिल की 12वीं बैठक 16 मार्च को होगी जिसमें एसजीएसटी और यूटीजीएसटी विधेयकों को मंजूरी दी जाएगी.


उन्होंने कहा, आज की बैठक में सीजीएसटी और आईजीएसटी विधेयकों को मंजूरी दी गयी और अगली बैठक में एसजीएसटी और यूटीजीएसटी विधेयक मंजूर किये जाएंगे और विधेयकों के मसौदों को मंजूरी देने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और इन्हें संसद में रखा जा सकेगा.’’ जेटली ने कहा कि संसद में राज्य विधानसभाओं में विधेयकों को मंजूरी के बाद अधिकारी विभिन्न गुड्स और सर्विसेज को टैक्स की विभिन्न दरों 5, 12, 18, 28 फीसदी के साथ जोड़ने का काम शुरू करेंगे. उन्होंने कहा कि कुछ उत्पादों को छोड़कर बाकी के मामले में यह काम ज्यादातर हिसाब-किताब का है. ऐसे उत्पादों के संबंध में फैसला परिषद करेगी.


वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि जीएसटी की दरें वही रखी जाएंगी जिन्हें परिषद ने तय कर रखा है. कोई उंचा टैक्स नहीं लगाया जाएगा लेकिन विधेयक में शिखर दर को थोड़ा उंचा रखा जाएगा. यह उसी तरह का होगा जैसा कि सीमा शुल्क के मामले में होता है जहां ‘बाउंड’ दर (शुल्क का दायरा) और लागू दर में फर्क होता है.


उन्होंने कहा कि कानून में शिखर दर को इसलिए उंचा रखने का विचार है ताकि जरूरत पड़ने पर किन्हीं वस्तुओं और सेवाओं पर कर की दर बढ़ाने के लिये संसद में जाने की जरूरत नहीं हो. जेटली ने कहा कि इससे राज्यों को राजस्व में क्षतिपूर्ति के लिये अवगुणकारी वस्तुओं पर प्रस्तावित उपकर को आगे चलकर उसकी आवश्यकता समाप्त होने के बाद टैक्स की दर में समाहित करने में भी मदद मिलेगी.


वित्त मंत्री ने उम्मीद जतायी कि जीएसटी को एक जुलाई से लागू करने समयसीमा पूरा करना आसान लगता है. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि गाड़ी पटरी पर है. उम्मीद है कि ये विधेयक इसी सत्र में संसद के सामने रख दिये जाएंगे. संसद की मंजूरी मिलने के बाद लगता है कि इस साल 1 जुलाई से जीएसटी लागू किया जा सकता है.’’ बैठक में ढाबों और छोटे रेस्तरां पर एक पैकेज समाधान योजना के तहत 5 फीसदी टैक्स लगाने पर सहमति बनी जिसमें 2.5 फीसदी केंद्र और 2.5 फीसदी राज्यों के हिस्से में जाएगा. इसके अंतर्गत सालाना 50 लाख रुपये तक का कारोबार करने वाली इकाइयां ही आएंगी. जेटली की अध्यक्ष वाली जीएसटी परिषद में सभी राज्यों का प्रतिनिधि शामिल हैं.