भारत में फेविकोल के बारे में कौन नहीं जानता है, जो अब हर घर की जरूरत बन चुकी है. यह भारत के एक बड़े ब्रांड में से एक हो चुका है, लेकिन क्या आपको पता है इस ब्रांड को एक पहचान देने में किस व्यक्ति का हाथ रहा है. आज हम ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं.


फेविकोल को घर-घर तक पहुंचाने में फेविकोल मैन के नाम से मशहूर बलवंत पारेख की कहानी बड़ी चुनौतीपूर्ण रही है. बलवंत ने पहली बार इस प्रोडक्ट की मार्केटिंग 1959 में की थी. इनका जन्म एक जैन परिवार में हुआ था. इन्होंने अपने गर्वनमेंट की डिग्री लॉ कॉलेज मुंबई से पूरी की, लेकिन उसके बाद मुंबई में एक रंगाई और प्रिंटिंग प्रेस में काम किया. वकालत की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने शादी कर ली और ग्रेजुएशर होने के बाद चपरासी के रूप में काम करना शुरू कर दिया. 


चपरासी से बने व्यापारी 


वह एक लकड़ व्यापारी के यहां काम करते थे और उसी के गोदाम में रहते थे. निवेशक मोहन की सहायत से बलवंत ने अपनी खुद की कंपनी शुरू करने का फैसला लिया और वेस्ट में साइकिल, सुपारी और कागज का आयात करना शुरू कर दिया. अपनी कंपनी शुरू करने के बाद बलवंत, उनकी पत्नी, बच्चा और भाई सुशील मुंबई के सायन में एक फ्लैट में रहने चले गए. 


स्वतंत्रा संग्राम में भी लिया भाग 


जिस समय बलवंत पारेख व्यवसाय में सक्रियता दिखा रहे थे, उस दौरान भारत आजादी की लड़ाई में भाग ले रहा था. ऐसे में बलवंत पारेख भी स्वतंत्रा की लड़ाई में भाग लिया. वे भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय थे, लेकिन जब उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया तो उन पर अपने परिवार की ओर से आगे की पढ़ाई करने का दबाव था. 


कैसे शुरू हुई फेविकोल कंपनी


बलवंत पारेख ने जर्मन की कंपनी होचस्ट के साथ आधी साझेदारी के साथ कारोबार किया था. 1954 के दौरान बलवंत ने होचस्ट के एमडी के निमंत्रण पर एक महीने के लिए जर्मनी की यात्रा की. होचस्ट के प्रबंध निदेशक के निधन के बाद निगम ने सीधे व्यवसाय संचालित करने का निर्णय लिया. फोर्ब्स के अनुसार, 1954 में, बलवंत और उनके भाई सुशील ने पारेख डाइकेम इंडस्ट्रीज के नाम से औद्योगिक रसायनों, पिगमेंट इमल्शन और रंगों की बिक्री और उत्पादन के लिए मुंबई के जैकब सर्कल में एक बिजनेस शुरू किया था. बलवंत ने अधिक फेडको स्टॉक प्राप्त करना शुरू किया और फेविकोल के नाम से जाना जाने वाला गोंद बनाया. 


कैसे पड़ा फेविकोल का नाम 


1959 में इस कंपनी का नाम बदलकर पिडिलाइट इंडस्ट्रीज कर दिया गया और तब से यह इसी नाम से संचालित हो रहा है. यह भारत के साथ कई देखों में बिजनेस को संचालित करता है. वित्तीय वर्ष 2020 के समापन पर स्टेटिस्टा के मुताबिक, पिडिलाइट इंडस्ट्रीज लिमिटेड की कुल संपत्ति करीब 44.65 अरब भारतीय रुपये थी और वित्तीय वर्ष 2022 तक इसकी संपत्ति 29.95 मिलियन डॉलर थी. मार्च 2022 में यह 2,507.10 करोड़ रुपये और मार्च 2023 में यह 2,689.25 करोड़ रुपये का कारोबार कर चुका है. 


कितनी थी संपत्ति 


बीकेपी 28 अक्टूबर, 2011 को टेक्सास में द इंस्टीट्यूट ऑफ जनरल सिमेंटिक्स से फेमस जे टैलबोट विनचेल पुरस्कार प्राप्त करने वाला पहला एशियाई बने थे. फोर्ब्स के मुताबिक, 2013 में उनकी मृत्यु के समय उनकी कुल संपत्ति 1.36 बिलियन डॉलर थी. 


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