Stock Market FII & DII Data: मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने मई में बाजार से 4.9 अरब डॉलर की पूंजी निकाली जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों ( डीआईआई) ने मई में ने 6.1 अरब डॉलर का निवेश किया. पिछले आठ महीने से विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) लगातार बिकवाल बने हुए हैं, ऐसे में गत 15 माह से लगातार लिवाली करने वाले घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) के दम पर शेयर बाजार राहत की सांस ले पा रहा है.


एफआईआई ने एक साल में 25 अरब डॉलर की पूंजी निकाली 
एफआईआई ने पिछले एक साल में कुल 25 अरब डॉलर की पूंजी निकासी की है यानी भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाला है. एफआईआई की बिकवाली का यह दौर वैश्विक वित्तीय संकट के बाद का सबसे बड़ा दौर रहा है. एनएसई का निफ्टी मई में माह दर माह आधार पर तीन फीसदी लुढ़ककर 16,585 अंक पर आ गया. यह गिरावट का लगातार दूसरा माह और मार्च 2020 के बाद तीसरा बड़ी मासिक गिरावट थी.


भारतीय बाजार सहित अन्य शेयर बाजारों का हाल
मई में भारतीय बाजार गिरावट झेलने वाले बाजारों में शामिल रहा. भारतीय बाजार तीन फीसदी, रूस सात फीसदी और इंडोनेशिया एक फीसदी लुढ़का. दूसरी तरफ चीन में पांच फीसदी, ब्राजील तीन फीसदी, जापान दो फीसदी और ताइवान और ब्रिटेन एक-एक फीसदी उछला. गत 12 माह के दौरान एमएससीआई इंडिया सात फीसदी की तेजी में रहा जबकि एमएससीआई ईएम 22 फीसदी की गिरावट में रहा.


सेक्टोरियल इंडेक्स का हाल
सेक्टोरियल इंडेरक्स में ऑटो पांच फीसदी और कंज्यूमर एक फीसदी की तेजी में रहा. दूसरी तरफ मेटल्स 16 फीसदी, यूटिलिटीज 11 फीसदी, ऑयल एंड गैस 10 फीसदी और रियल एस्टेट सात फीसदी की गिरावट में रहा.


भारत का मार्केट कैपिटलाइजेशन-जीडीपी अनुमान
भारत का मार्केट कैपिटलाइजेशन-जीडीपी अनुपात उतार-चढ़ाव के बीच रहा. वित्त वर्ष 19 में यह 80 फीसदी था, जो मार्च 20 में 56 फीसदी पर आ गया. इसका दीर्घावधि औसत 79 फीसदी है जो मौजूदा समय में 112 फीसदी पर आ गया है. यह अनुपात कैलेंडर वर्ष 2007 के बाद सबसे ज्यादा है. वित्त वर्ष 23 के अनुमानित जीडीपी विकास दर के आधार पर यह अनुपात 98 फीसदी पर रहेगा.


एक्युइट रेटिंग्स के मुताबिक, दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति के सख्त करने से ग्लोबल शेयर बाजारों में भारी उथलपुथल मची हुई है, जो चिंता की बात है. इसी वजह से एफआईआई लगातार बिकवाल बने हुए हैं. इससे रुपये पर दबाव बढ़ रहा है. रुपये पर पहले से ही बढ़ते चालू खाता घाटा का दबाव है.


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