अडानी समूह(Adani Group) पर बीते कुछ महीनों के दौरान लगे आरोपों की आंच केंद्र सरकार तक भी पहुंच रही है. देश में जहां विपक्षी पार्टी व नेता अडानी समूह को लेकर सरकार पर हमलावर हैं, वहीं विदेश में भी सरकार को इस विवाद से जुड़े सवालों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि सरकार अडानी समूह से जुड़े विवादों पर कोई टिप्पणी करने से बच रही है. अमेरिका की यात्रा पर गईं वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन (FM Nirmala Sitharaman) ने भी इस बारे में पूछे जाने पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कंपनियों के मामले से दूर रहती है सरकार
ब्लमूबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने अडानी समूह से जुड़े विवादों के बारे में पूछे जाने पर सीधा जवाब देने से दूरी बना ली. उन्होंने कहा कि भारत सरकार कंपनियों के मामले से दूरी बनाकर रखती है. वित्त मंत्री ने कहा कि अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने जो आरोप लगाए थे, उनकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाली एक समिति करेगी. ऐसे में जब न्यायपालिका मामले को देख रही है, इस बारे में कोई टिप्पणी करना अनुचित होगा.
अडानी समूह पर लगाए गए थे ये आरोप
हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) ने 24 जनवरी को अडानी समूह को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी. उक्त रिपोर्ट में हिंडनबर्ग की ओर से अडानी समूह के ऊपर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे. हिंडनबर्ग ने अडानी समूह के ऊपर शेयर बाजार का सबसे बड़ा घोटाला करने का आरोप लगाया था. इसके अलावा समूह के ऊपर शेयरों के भाव को प्रभावित करने और फंडिंग में गड़बड़ी करने के आरोप लगे थे. हिंडनबर्ग ने अडानी समूह के ऊपर भारी-भरकम कर्ज की भी बात की थी. हालांकि अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया था और उसे एजेंडे से प्रेरित बताया था.
तेज हो गई हैं राजनीतिक सरगर्मियां
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद देश के राजनीतिक गलियारे की सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं. प्रमुख विपक्षी नेता राहुल गांधी इसे लेकर लगातार सरकार और अडानी समूह पर हमलावर हैं. राहुल गांधी एक आरोप बार-बार दोहरा रहे हैं कि अडानी समूह को शेल कंपनियों से 20 हजार करोड़ रुपये की फंडिंग मिली है. अडानी समूह इन आरोपों पर भी सफाई पेश कर चुका है और पिछले तीन सालों के दौरान जुटाई गई फंडिंग का हिसाब सार्वजनिक कर चुका है. समूह ने इस तरह के आरोपों पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि उसे बर्बाद करने की दिलचस्प प्रतिस्पर्धा चल रही है.
रूस से और तेल खरीद सकता है भारत
वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन अभी अमेरिका की यात्रा पर हैं. इस दौरान वह विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा ले रही हैं. उन्होंने इस यात्रा के दौरान कई मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू दिए हैं और विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से बातें की हैं. ऐसे ही एक इंटरव्यू में उन्होंने रूस से खरीदे जा रहे कच्चे तेल पर भारत का रुख साफ किया. उन्होंने दो-टूक कहा कि कच्चा तेल भारत की अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी संवेदनशील है और इस कारण जहां से भी बेहतर डील मिलेगी, भारत उसे भुनाएगा. उन्होंने साफ संकेत दिया कि अगर ओपेक प्लस देशों की उत्पादन कटौती से कच्चे तेल के भाव बढ़ते हैं तो भारत को रूस से और ज्यादा खरीद करने में कोई गुरेज नहीं होगा.
वित्त मंत्री ने बता दिया भारत का स्टैंड
पूर्वी यूरोप में जारी युद्ध के बीच रूस से कच्चा तेल खरीदने के भारत के फैसले की कई लोग आलोचना कर रहे हैं. आलोचना करने वालों में पश्चिमी देशों के नेता व वेस्टर्न मीडिया प्रमुख है. हालांकि भारत ने शुरुआत से अपना रुख साफ रखा है. विदेश मंत्री एस जयशंकर कई मंचों से इस बारे में भारत की स्थिति साफ कर चुके हैं. वह दोहरा चुके हैं कि अगर यूरोप को रूस से गैस खरीदने में दिक्कत नहीं है तो भारत कच्चा तेल खरीदने से क्यों परहेज करे... वो भी तब जब भारत के सामने उभरती अर्थव्यवस्था और 1.3 अरब लोगों की ऊर्जा जरूरतें पूरा करने की भारी-भरकम जिम्मेदारी है. वित्त मंत्री ने भी ताजी बातचीत में इसी रुख को बरकरार रखा है.
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