वित्त मंत्रालय पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज नहीं घटाने के पक्ष में, जीएसटी पर फैसले में लगेगा समय
वित्त मंत्रालय पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज नहीं घटाने के पक्ष में, जीएसटी पर फैसले में लगेगा समय
ABP News Bureau Updated at:
25 Jan 2018 03:57 PM (IST)
पेट्रोल व डीजल की कीमत में हो रही लगातार बढ़ोतरी के मद्देनजर तेल मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय ने एक्साइज ड्यूटी में कमी की गुजारिश की थी. लेकिन सूत्रों की मानें तो वित्त मंत्रालय इसके लिए फिलहाल राजी नहीं.
नई दिल्लीः पेट्रोल व डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में फिलहाल कमी के आसार नहीं हैं. साथ ही दोनों ही पेट्रोलियम उत्पादों को वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के दायरे में लाने में समय लगेगा. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने ये संकेत दिए.
एक्साइज ड्यूटी
पेट्रोल व डीजल की कीमत में हो रही लगातार बढ़ोतरी के मद्देनजर तेल मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय ने एक्साइज ड्यूटी में कमी की गुजारिश की थी. लेकिन सूत्रों की मानें तो वित्त मंत्रालय इसके लिए फिलहाल राजी नहीं. वित मंत्रालय की चिंता ये है कि एक्साइज ड्यूटी में कमी की गयी तो सरकारी खजाने के घाटे पर असर पड़ेगा. एबीपी न्यूज से बातचीत में उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा,“फिस्कल डेफिसिट को बढ़ाना उचित नहीं होगा.” सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए सरकारी खजाने के घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 3.2 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा है. वैसे ही सरकार आमदनी में कमी की परेशानी से जुझ रही है, अब एक्साइज ड्यूटी घटायी गयी तो परेशानी और बढ़ जाएगी.
केंद्र सरकार पेट्रोल पर 19.48 रुपये और डीजल पर 15.33 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से एक्साइज ड्यूटी लगाती है. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में पेट्रोल पर 6 से लेकर 40 फीसदी और डीजल पर छह से लेकर 29 फीसदी के करीब सेल्स टैक्स/ वैट लगाया जाता है. बीते दिनों केंद्र ने दो रुपये प्रति की दर से एक्साइज ड्यूटी मे कमी की थी. साथ ही राज्य सरकारों को सेल्स टैक्स घटाने को कहा. लेकिन आधे दर्जन से भी कम राज्यों ने ही दरें कम की, बाकिय़ों ने कमाई में कमी की आड़ में दर घटाना उचित नहीं समझा. गौर करने की बात है कि नवम्बर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल-डीजल पर नौ बार एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी की गयी, जबकि उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे के भाव निचले स्तर पर चल रहे थे. अब जब भाव जब तेज हैं तो एक्साइज ड्यूटी में कमी की मांग जोर पकड़ रही है.
जीएसटी
कीमतों में हो रही लगातार बढ़ोतरी के मद्देनजर ये मुद्दा भी गरमाने लगा है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी यानी वस्तु व सेवा कर के दायरे में लाया जाए. मौजुदा व्यवस्था के तहत संविधान संशोधन के तहत पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में रखा तो गया है, लेकिन वो कब से लागू होंगे, इस बारे में फैसला जीएसटी काउंसिल को करना है. जब तक ये तारीख तय नहीं होती, तब तक केंद्र और राज्य सरकारों को अपने स्तर पर टैक्स वसूलने का अधिकार होगा.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए अभी उचित समय नहीं है. वजह ये है कि किसी भी वस्तु या सेवा पर जीएसटी की दर तय करते समय रेवेन्यू न्यूट्रल रेट यानी आरएनआर का ध्यान रखा जाता है. आरएनआर का मतलब वो दर है जिस पर केंद्र और राज्य. को कोई खास नुकसान नहीं होता. अब पेट्रोल और डीजल के मामले में परेशानी ये है कि केद्र और राज्यों के पेट्रोल व डीजल पर कर की मौजूदा दरों के हिसाब से आरएनआर काफी ज्यादा हो जाता है.
मसलन, दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की गुरुवार को कीमत 72 रुपये 49 पैसे है. डीलर के लिए इसकी कीमत 34 रुपये है जबकि उसे औसतन 3 रुपये 60 पैसे बतौर कमीशन मिलता है. दूसरी ओर टैक्स की बात करें तो केंद्र सरकार 19 रुपये 48 पैसे एक्साइज ड्यूटी के तौर पर वसूलती है जबकि दिल्ली सरकार के खजाने में सेल्स टैक्स के जरिए 15 रुपये 51 पैसे जाता है. मतलब कुल टैक्स बना 34 रुपये 89 पैसे, यानी मूल कीमत के सौ फीसदी से भी ज्यादा टैक्स के तौर पर वसूला जाता है. अधिकारी ने कहा कि ऐसी स्थिति में मौजूदा फॉर्मूले से जीएसटी की दर सौ फीसदी से भी ज्यादा हो जाएगी, जो कहीं से भी स्वीकार्य नही होगा.
तो फिर समाधान क्या है, इस पर अधिकारी का कहना है कि जब तक जीएसटी से कमाई ठीक ठाक नहीं बढ़ जाती, तब तक पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना मुमकिन नहीं होगा.
स्रोत - पीपीएसी