क्या जल्द बदलेगा वित्त वर्ष का कैलेंडरः सरकार ने दिया ये जवाब
सरकार ने आज कहा कि वित्त वर्ष को बदलने और इसे जनवरी महीने से शुरू कर इसे कैलेंडर इयर के साथ-साथ करने का मुद्दा उसके पास विचाराधीन है. अभी इसपर आखिरी फैसला नहीं लिया गया है.
नई दिल्लीः सरकार ने आज कहा कि वित्त वर्ष को बदलने और इसे जनवरी महीने से शुरू कर इसे कैलेंडर इयर के साथ-साथ करने का मुद्दा उसके पास विचाराधीन है. अभी इसपर आखिरी फैसला नहीं लिया गया है.
लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में आज वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि सरकार द्वारा गठित डॉ. शंकर आचार्य की अध्यक्षता वाली कमिटी ने हाल ही में इस विषय पर विचार किया है. कमिटी की रिपोर्ट मिल चुकी है पर अभी इस पर कैबिनेट द्वारा और पीएम मोदी के साथ मिलकर सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा. फिलहाल इस पर आधिकारिक फैसला नहीं लिया जा सका है.
गौरतलब है कि इस सिलसिले में लोकसभा में सांसद पंकज चौधरी ने वित्त मंत्री से पूछा था कि क्या सरकार वित्त वर्ष को जनवरी महीने से शुरू कर इसे कैलेंडर वर्ष के साथ-साथ करना चाहती है?
जानें आप पर क्या होगा असर?
- अगर वित्त वर्ष आर्थिक गतिविधियों जैसे बैंकिंग की क्लोजिंग जो 31 हर साल 31 मार्च तक होती है उसकी तारीख भी बदलकर 31 दिसंबर हो सकती है.
- अगर वित्त वर्ष की तारीख बदलती है तो एक बार फिर बजट की तारीख में बदलाव हो सकता है
- आपका टैक्स कलेंडर बदल गया तो आपके लिए सबसे बड़ा चेंज ये होगा कि आप अभी जो टैक्स फाइलिंग 31 जुलाई तक करते हैं उसके लिए तारीख बदल जाएगी. फिलहाल जिनका ऑडिट नहीं होना और सैलरी क्लास 31 मार्च तक टैक्स फाइलिंग कर सकते हैं और जिनका ऑडिट होना है वो 30 सितंबर तक टैक्स फाइलिंग कर सकते हैं तो उसकी फाइलिंग की तारीख 31 दिसंबर तक हो सकती है
- बाजार में अभी कंपनियों के तिमाही नतीजों के लिए पहली तिमाही 1 अप्रैल से 30 जून, दूसरी तिमाही 1 जुलाई से 30 सितंबर, तीसरी तिमाही 1 अक्टूबर से 31 दिसंबर और चौथी तिमाही 1 जनवरी से 31 मार्च तक होती है. वित्त वर्ष बदलने के बाद पहली तिमाही 1 जनवरी से 31 मार्च तक मानी जाएगी और उसके आगे की तिमाहियां उसी के मुताबिक चलेंगी.
वित्त वर्ष बदलने पर क्यों विचार कर रही है सरकार
- केंद्र और राज्य सरकार की खर्च और आमदनी का सही अनुमान
- अलग-अलग फसली सत्र पर असर
- वित्त वर्ष का कामकाज के सत्र से संबंध
- टैक्स व्यवस्था और प्रक्रिया
- सांख्यिकी और आंकड़ों का संग्रहण
- बजट से जुड़े विधायी कार्य को पूरा करने के लिए कार्यपालिका की सहूलियत
कैसे शुरु हुआ देश में कैलेंडर इयर और फाइनेंशियल इयर का अलग-अलग चलन देश में कैलेंडर वर्ष में वित्त वर्ष की व्यवस्था 1867 में शुरु की गयी थी. उसके पहले वित्त वर्ष की शुरुआत पहले कैलेडर वर्ष में 1 मई को शुरु होती थी और खत्म अगले कैलेंडर वर्ष के 31 अप्रैल को. 1984 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वित्त वर्ष की व्यवस्था में बदलाव की संभावनाएं खंगालने और नयी व्यवस्था के बारे में सिफारिश देने के लिए एल के झा कमेटी का गठन किया. कमेटी ने मानसून के असर को देखते हुए वित्त वर्ष की शुरुआत जनवरी से शुरु करने की सिफारिश की थी, यानी कैलेंडर वर्ष और वित्त वर्ष के बीच कोई अंतर नहीं रखना. हालांकि कमेटी ने ये भी सुझाव दिया कि अगर व्यावहारिक दिक्कत हो तो वित्त वर्ष की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया जाए, वैसे तत्कालीन सरकार ने व्यवस्था में किसी तरह के फेरबदल से इनकार कर दिया.
वैसे बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार वित्तीय परम्पराओं में बदलाव करने के लिए जानी जाती रही है. यदि वाजपेयी सरकार (1999-2004) के दौरान आम बजट पेश करने का समय शाम बजे से बदलकर सुबह 11 कर दिया गया तो मोदी सरकार ने फरवरी के आखिरी कार्यदिवस के बजाए पहले कार्यदिवस को बजट पेश करने का फैसला किया.
दुनिया के कई देशों में वित्त वर्ष और कैलेंडर वर्ष मे कोई फर्क नहीं होता, जबकि कुछ देशों में अलग-अलग तारीख है. मसलन, अमेरिका में वित्त वर्ष 1 अक्टूबर से शुरु होकर अगले वर्ष 30 सितम्बर को खत्म होता है तो ब्रिटेन और जापान में भारत की तरह की पहली अप्रैल से 31 मार्च तक.
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