इस समय बैंकिंग के तमाम साधन आ गए हैं. तरह तरह के वालेट हैं. ऐसे में बैंकिंग सेवा इस्तेमाल करने वाले लोगों के दिमाग में बार बार यह आता है कि क्या पेटीएम, गूगल पे, फोनपे, या माइक्रोफाइनैंस सहित गोल्ड लोन वगैरा मुहैया करने वाली फिनटेक कंपनियां परंपरागत बैंकों की जगह ले लेंगी?


ऐसा नहीं है कि यह धारणा केवल आम लोगों में है. बिटकाइन के दौर में ट्रेडिशनल करेंसी यानी डॉलर, येन, रुपये आदि के खत्म होने की बात कही जा रही है, ऐसे में तमाम टेक्नोक्रेट भी यह सवाल उठा रहे हैं कि परंपरागत लेंडर्स पीछे छूटने वाले हैं और उनकी जगह फिनटेक ले लेंगी. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ऐसा नहीं मानता. 


Fintech को लेकर शुरुआत में उदासीन रहे बैंक


आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रबिशंकर का कहना है कि फिनटेक बैंकों की जगह ले रही हैं, यह गलत धारणा है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि बैंकों को और ज्यादा डिजिटल होने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि बदलावों को लेकर बैंकों ने इसके पहले अवसर गंवाया है, क्योंकि उन्होंने तकनीक को लेकर उदासीनता बरती. यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस का हवाला देते हुए कहा कि यह बहुत प़ॉपुलर है और नॉन बैंकिंग इकाई द्वारा बड़े पैमाने पर कारोबार किया जा रहा है. इसकी वजह यह रही कि बैंकों ने बदलाव के मुताबिक शुरुआती दौर में इन्वेस्टमेंट नहीं किया.


अब तेजी से नई तकनीक अपना रहे बैंक


टी रबिशंकर का मानना है कि बैंक तेजी से बदलावों को अपना रहे हैं और टेक्निकल प्रोग्रेस को अब स्वीकार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मॉडर्न एज के इंटरप्राइज बैंकिंग की सुविधा दे रहे हैं, उनका बैंकों से किसी तरह कंपिटीशन नहीं है. उन्होंने कहा कि नई तकनीक को लेकर बैंकों के पास कोलाबरेशन, एब्जॉर्प्शन या इंटरनेशनलाइजेशन के ऑप्शन हैं.



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