नई दिल्लीः आर्थिक मोर्चे पर भारत के लिए एक अच्छी खबर आई है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने शुक्रवार को चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक विकास दर के पूर्वानुमान को पहले के 7.4 फीसदी से बढ़ाकर 7.8 फीसदी कर दिया. फिच रेटिंग्स ने अपनी ‘ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक’ (वैश्विक आर्थिक परिदृश्य) शीर्षक ताजा रिपोर्ट में वित्तीय स्थिति के तंग होने, तेल आयात बिल बढ़ने और बैंकों के कमजोर बैलेस-शीट को भारत की वृद्धि के रास्ते की चुनौतियों में गिना है.


फिच ने कहा है, '2018 की दूसरी तिमाही (चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही) में उम्मीद से बेहतर परिणाम को देखते हुए हमने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पहले के 7.4 फीसदी के विकास दर के पूर्वानुमान में संशोधन कर उसे 7.8 फीसदी कर दिया. वैसे चालू वित्त वर्ष में भारत की वृद्धि दर 2018 की अप्रैल-जून में चरम पर पहुंच चुकी है.'


अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक विकास दर 8.2% पर थी
उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में आर्थिक वृद्धि दर 8.2 फीसदी थी. फिच ने पहले इस तिमाही के लिए जीडीपी में 7.7 फीसदी की विकास दर का अनुमान लगाया था. रेटिंग एजेंसी ने वित्त वर्ष 2019-20 और 2020-21 में विकास दर के पूर्वानुमान में 0.2 फीसदी की कमी करते हुए उसे 7.3 फीसदी पर रखा है.


रुपये का खराब प्रदर्शन वजह
फिच ने एक रिपोर्ट में कहा है, 'एक्सचेंज रेट में गिरावट को लेकर केंद्रीय बैंक की अधिक उदारता के बावजूद ब्याज दरों में अनुमान से अधिक इजाफा किया गया है. एशिया के परिप्रेक्ष्य में देखें तो अन्य प्रमुख करेंसी की तुलना में भारतीय रुपये का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है.


2019 के चुनावों का भी किया जिक्र
फिच ने कहा, '2019 की शुरुआत में होने वाले चुनाव को देखते हुए राजकोषीय नीति के विकास दर के लिहाज से अनुकूल रहने की संभावना है. सार्वजनिक क्षेत्र, खास कर सरकारी उद्यमों द्वारा अवसंरचना के क्षेत्र में निवेश बढ़ाए जाने निवेश/जीडीपी अनुपात में गिरावट का रुझान रोकने में मदद मिली है.'


 

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