ऑप्शंस ट्रेडिंग बड़ी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और समय के साथ पहले से ज्यादा लोग इसमें हाथ आजमा रहे हैं. हालांकि ऑप्शंस ट्रेडिंग में ज्यादातर लोग अपना नुकसान ही करा लेते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है सही जानकारी का अभाव. अगर आप भी ऑप्शंस में हाथ आजमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इंप्लायड वॉलेटिलिटी यानी आईवी से जुड़ी बड़े काम की 5 बातें बताने वाले हैं...


आपने भी कई बार ऐसा किया होगा कि कोई फिल्म देखने जाना है या नहीं अथवा कोई किताब अच्छी है या नहीं, उसके बारे में समीक्षाओं के आधार पर फैसला लिया होगा. अगर रीव्यू ठीक नहीं हैं तो लोग उसे छोड़ देते हैं. हालांकि यह पैमाना हमेशा सटीक साबित नहीं होता है. हमारा निर्णय केवल समीक्षाओं पर ही आधारित नहीं होता है बल्कि यह हमारी अपेक्षाओं, पसंद और नापसंद से भी प्रभावित होता है. शेयर बाजार में इसी तरह इन्वेस्टर किसी स्टॉक या इंडेक्स से उम्मीद लगाकर रखते हैं, जो जरूरी नहीं कि पास्ट परफॉर्मेंस पर आधारित हो. किसी सिक्योरिटी की कीमत कैसे बढ़ सकती है, इससे जुड़ी इन अपेक्षाओं को इंप्लायड वॉलेटिलिटी या आईवी कहा जाता है. इंप्लायड वॉलेटिलिटी, ऑप्शन ट्रेडिंग के प्रमुख संकेतकों में से एक है और इसे एनएसई की वेबसाइट पर ऑप्शंस चेन में देखा जा सकता है.


इंप्लायड वॉलेटिलिटी (आईवी) क्या है?


इंप्लायड वॉलेटिलिटी यानी आईवी से किसी तय समय में स्टॉक और इंडेक्स जैसे इंप्लायड एसेट्स की कीमतों के उतार-चढ़ाव के बारे में ट्रेडर्स या इन्वेस्टर्स की अपेक्षाओं का पता चलता है.


आईवी किस प्रकार से कीमत को प्रभावित करती है?


इंप्लायड वॉलेटिलिटी ऑप्शंस मार्केट में डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है. अगर किसी ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट के लिए बेचने वालों की तुलना में खरीदार ज्यादा हैं, तो ऑप्शंस की कीमत या प्रीमियम के साथ-साथ इंप्लायड वॉलेटिलिटी भी बढ़ जाएगी. वहीं अगर बेचने वाले कम और खरीदने वाले ज्यादा हुए तो ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट की कीमत या प्रीमियम गिर जाएगी और इसकी इंप्लायड वॉलेटिलिटी भी गिर जाएगी.


ट्रेडिंग में आईवी का इस्तेमाल कैसे करें?


आईवी को ट्रेडिंग के लिए प्रमुख इंडिकेटर के तौर पर यूज किया जा सकता है.अगर इंप्लायड वॉलेटिलिटी और प्रीमियम ज्यादा हैं, तो आमतौर पर ट्रेडर्स ऑप्शंस को बेचने पर जोर दे रहे हैं और इससे उन्हें उच्च प्रीमियम हासिल करने में मदद मिलती है. वहीं अगर आईवी और प्रीमियम कम हैं, तो ट्रेडर्स ऑप्शन खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें कम प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है.


हिस्टोरिकल वॉलेटिलिटी से यह किस रूप में अलग है?


अस्थिरता दो प्रकार की होती है - हिस्टोरिकल और इंप्लायड. इंप्लायड वॉलेटिलिटी आने वाले समय से जुड़ी उम्मीदों का संकेतक है, जबकि हिस्टोरिकल अब तक आ चुके उतार-चढ़ाव का रिकॉर्ड.


इंप्लायड वॉलेटिलिटी को कैसे ट्रैक करें?


इंडिया विक्स (VIX) एक वॉलेटिलिटी इंडेक्स है, जो एनएसई पर उपलब्ध है. यह भारतीय शेयर बाजारों की इंप्लायड वॉलेटिलिटी को दर्शाता या ट्रैक करता है. अगर विक्स इंडेक्स ज्यादा है तो बाजार में उथल-पुथल की ज्यादा गुंजाइश होती है, वहीं विक्स कम रहने पर बाजार के स्थिर रहने का संकेत मिलता है.


 



Puneet Maheshwari, Director, Upstox


डिस्‍क्‍लेमर- लेखक अपस्‍टॉक्‍स के डायरेक्‍टर हैं. प्रकाशित विचार उनके निजी हैं. शेयर बाजार में निवेश करने से पहले अपने वित्‍तीय सलाहकार की राय जरूर लें.


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