डॉव थियरी यानी डॉव का सिद्धांत टेक्निकल एनालिसिस का एक बेसिक कॉन्सेप्ट है. इसका इस्तेमाल शेयर बाजार के रुझानों (मार्केट ट्रेंड्स) की पहचान करने के लिए किया जाता है. इसे डॉव जोन्स एंड कंपनी के संस्थापक चार्ल्स एच. डॉव द्वारा विकसित किया गया था. लगभग एक सदी पुराना होने के बावजूद, यह सिद्धांत बाजार की गतिविधियों को समझने और उनका विश्लेषण करने के लिए अभी भी उपयोगी है. इस ब्लॉग में हम डॉव थ्योरी को सरल तरीके से बताएंगे ताकि इसे हर कोई आसानी से समझ सके.


डॉव थियरी क्या है?


डॉव सिद्धांत असल में मार्केट मूवमेंट (बाजार की गतिविधियों) का विश्लेषण करने के इर्द-गिर्द घूमता है. शेयर बाजार तीन चरणों में चलता है: संग्रह (अक्यूम्यलैशन), मार्कअप और वितरण (डिस्ट्रिब्यूशन). यह बात समझाने के लिए ही डॉव ने एक सिद्धांत दिया, जिसे डॉव थियरी या डॉव का सिद्धांत कहते हैं.


अक्यूम्यलैशन फेज: इस चरण में, संस्थागत या अनुभवी निवेशक थोड़ा-थोड़ा शेयर खरीदते हैं. इस चरण के दौरान शेयर की कीमत स्थिर रह सकती है या गिर सकती है.
मार्कअप फेज: मार्कअप फेज में, ज्यादा से ज्यादा निवेशक जब कोई स्टॉक खरीदता है, तो उस शेयर की कीमत भी तेजी से बढ़ने लगती है.
डिस्ट्रिब्यूशन फेज: इस चरण में, संस्थागत निवेशक अपने शेयर बेचना शुरू करते हैं. इस अवधि के दौरान शेयर की कीमत स्थिर रह सकती है या गिर भी सकती है.


यहां निफ्टी ऑटो इंडेक्स का संदर्भ दिया गया है, जिसमें तीनों चरण शामिल हैं...




डॉव थियरी के अनुसार, स्टॉक मार्केट डिस्काउंट एवरीथिंग यानी शेयर बाजार हर चीज पर छूट देता है. इसका मतलब यह है कि शेयर प्राइस पहले ही कंपनी, अर्थव्यवस्था और दुनिया भर में होनेवाले सभी ज्ञात तथ्यों को प्रतिबिंबित कर देता है.
 
डाव सिद्धांत के पांच बेसिक कम्पोनेंट्स (बुनियादी घटक):


मार्केट डिस्काउंट एवरीथिंग: डॉव थ्योरी के अनुसार, बाजार हर चीज पर छूट देता है. इसका मतलब यह है कि शेयर की कीमत पहले से ही किसी कंपनी या इंडस्ट्री के बारे में सारी जानकारी दर्शाती है. चाहे वह अर्थव्यवस्था की स्थिति हो, राजनीतिक घटनाएं हों या प्राकृतिक आपदाएं हों, यह सभी कारक शेयर प्राइस पर असर डालते हैं.
इन तीन प्राइस मूवमेंट्स पर मार्केट ट्रेंड्स का पता चलता है: डॉव सिद्धांत शेयर बाजार में तीन मुख्य प्रकार के प्राइस ट्रेंड्स (मूल्य रुझानों) की पहचान करता है; प्राइमरी (प्राथमिक), सेकेंडरी (द्वितीयक) और माइनर. प्राइमरी ट्रेंड्स मेन ट्रेंड्स (मुख्य ट्रेंड) होते हैं. बुल मार्केट (बाजार की उछाल) या बियर मार्केट (बाजार की मंदी) को देखते हुए यह ट्रेंड एक साल या उससे अधिक समय तक चल सकता है. सेकेंडरी ट्रेंड्स यानी द्वितीयक प्रवृत्ति प्राइमरी ट्रेंड्स के भीतर करेक्टिव मूव होते हैं और हफ्तों या महीनों तक चल सकते हैं. माइनर ट्रेंड में शॉर्ट टर्म फ्लक्चुएशन (अल्पकालिक उतार-चढ़ाव) होता है, जो कुछ दिनों या हफ्तों तक दिखाई दे सकता है.
डिसाइसिव वॉल्यूम्स से टूटते हैं ट्रेंड्स: किसी ट्रेंड्स या फेज में तब ब्रेक आता है, जब ट्रेडिंग वॉल्यूम में अप्रत्याशित तरीके से उल्लेखनीय वृद्धि होती है. आम तौर पर, प्राइमरी ट्रेंड्स की स्थिति में जब कीमत बढ़ती है और सेकेंडरी ट्रेंड्स के दौरान घटती है, तब वॉल्यूम में बढ़ोतरी होने लगती है. इन फेज के दौरान होनेवाले वॉल्यूम फ्लो से मजबूत ट्रेंड की पुष्टि हो जाती है.
सूचकांक भी ट्रेड की करते हैं पुष्टि: डॉव सिद्धांत कहता है कि बाजार के रुझान को वैध बनाने के लिए, प्रमुख सूचकांकों को एक दूसरे की पुष्टि करनी चाहिए. उदाहरण के लिए, ट्रेंड को कन्फर्म करने निफ्टी 50 और निफ्टी बैंक दोनों को एक ही चरण में प्रवेश करना चाहिए.
उलटफेर नहीं होने तक ट्रेंड: डॉव थ्योरी के अनुसार, यह ट्रेंड (प्रवृत्ति) तब तक जारी रहता है, जब तक कि कोई स्पष्ट उलटफेर न हो जाए. इसका मतलब यह है कि जब तक इसके विपरीत स्पष्ट संकेत न मिलें, ट्रेंड जारी रहने की उम्मीद की जानी चाहिए.


निष्कर्ष: ट्रेडर्स और निवेशकों द्वारा डॉव थ्योरी का उपयोग संभावित खरीद और बिक्री के अवसरों को खोजने के लिए किया जाता है. बाजार के विभिन्न चरणों और रुझानों को समझने में इस थियरी से मदद मिलती है, ताकि पुख्ता जानकारी के आधार पर निर्णय लिया जा सके. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि डॉव थ्योरी भविष्यवाणियां करने का एक टूल्स ही नहीं है, बल्कि शेयर बाजार की व्यापक प्रवृत्ति को समझने के लिए एक फ्रेमवर्क है. इसकी अवधारणाएं, हालांकि बीसवीं सदी में स्थापित हुईं, लेकिन आज भी प्रासंगिक हैं.




(लेखक अपस्टॉक्स के डाइरेक्टर हैं. आलेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं और उनके साथ ABPLive.com की कोई सहमति नहीं है. शेयर बाजार में निवश करने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से जरूर परामर्श लें.)


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