शिखर सम्मेलन में बोले पी चिदंबरम 'नोटबंदी से काला धन खत्म नहीं हुआ'
नई दिल्लीः आज एबीपी न्यूज के शिखर सम्मेलन में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने देश के आर्थिक हालत और इकोनॉमी के मुद्दों पर खुलकर बात की. नोटबंदी से लेकर इकोनॉमिक पॉलिसी और मौजूदा सरकार के 3 साल अर्थनीति के नजरिए से कितने सफल हैं इसका आकलन उन्होंने दिया है.
नोटबंदी का फैसला कितना सफल रहा? पी चिदंबरम ने कहा कि केंद्र सरकार का काला धन रोकने और भ्रष्टाचार हटाने का लक्ष्य साफ था पर इसके लिए नोटबंदी का रास्ता बिलकुल ठीक नहीं कहा जा सकता. नोटबंदी के बावजूद देश में काला धन खत्म नहीं हुआ. इसने सिर्फ पुराने नोटों की जगह नए नोटों की शक्ल ले ली है. चुनावों में काले धन का इस्तेमाल रुका इस पर उनका सवाल था कि क्या यूपी चुनाव, पंजाब चुनाव में जो रकम भेजी गई क्या वो सारी व्हाइट मनी थी?
क्या नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार रुक गया और काले धन पर लगाम लगी? वहीं नकली नोटों को रोकने के लिए सरकार ने जो नोटबंदी का तर्क दिया था, वो सही भी नहीं निकला. अब तो 2000 रुपये के भी नकली नोट आ चुके हैं. तो नोटबंदी के फैसले के पीछे जो भी तर्क दिए गए थे वैसा कुछ नहीं हुआ. सरकार ने यूपी चुनावों की जीत को समझा कि ये उसके नोटबंदी के फैसले का समर्थन है लेकिन अगर ऐसा था तो पंजाब, गोवा में लोगों ने बीजेपी को बहुमत नहीं दिया तो उसे क्या कहा जाए. चुनावी नतीजों को नोटबंदी के फैसले का पैमाना मानना बिलकुल सही नहीं कहा जा सकता.
नोटबंदी का देश की आर्थिक विकास दर पर निगेटिव असर हुआ सरकार का तुलना करने का तरीका ही गलत है, पहले जीडीपी (ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट के दौरान इकोनॉमी को मापा जाता था और अब जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडिशन) में मापा जाता है. नोटबंदी के बाद देश के पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि नोटबंदी के बाद जीडीपी में कम से कम 2 फीसदी की गिरावट आएगी और मैंने कहा था कि कि जीवीए में कम से कम 1-1.5 फीसदी की गिरावट आएगी और ऐसा ही हुआ है. नोटबंदी के बाद भारत की ग्रोथ रेट में कम से कम 1 फीसदी की गिरावट आई है जो 1.5 फीसदी भी हो सकती है. इकोनॉमी के विकास दर के आखिरी आंकड़े आने के बाद असली तस्वीर साफ हो जाएगी. जहां तक बात की है कि भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी है लेकिन उसके पीछे वजह है कि बाकी देश उतनी तेजी से ग्रोथ नहीं हासिल कर पा रहे हैं.
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर खुशीकी बात नहीं इस समय सरकार इसी बात की खुशी दिखा रही है कि अर्थव्यवस्था में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है लेकिन क्या ये खुशी की बात है. हमें इस बात से खुश नहीं होना चाहिए कि कोई दिक्कत नहीं है बल्कि इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इकोनॉमी ग्रोथ हासिल कर रही है या नहीं? रुपया तुलनात्मक रूप से स्थिर है, एफडीआई देश में आ रहा है और लोग जीवनयापन कर पा रहे हैं. कुल मिलाकर देश में आर्थिक संकट नहीं है लेकिन हमें संकट मुक्त इकोनॉमी को लेकर नहीं बल्कि कम से कम 8-10 फीसदी की दर से बढ़ती इकोनॉमी होने पर खुश होना चाहिए जो कि फिलहाल होता नहीं दिख रहा है.
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर 3 बड़े सवाल
1. साल 2011-2012 के दौरान इंवेस्टमेंट टू जीडीपी रेश्यो अपने सबसे उच्च स्तर 34-35 फीसदी के बीच था जो मोदी सरकार के आने के बाद साल 2016-17 में गिरकर 29.6 फीसदी पर आ गया है. यानी देश के इंवेस्टमेंट टू जीडीपी रेश्यो में 4 से 5 फीसदी की बड़ी गिरावट आई है.
2. देश की इंडस्ट्री की क्रेडिट ग्रोथ को देखें तो 2016-17 में निगेटिव क्रेडिट ग्रोथ के आंकड़ों को देखा गया है. इंडस्ट्री द्वारा नए जॉब्स के मौके नहीं देखे जा रहे हैं. देश की माइक्रो, मीडियम और स्मॉल इंडस्ट्री में क्रेडिट ग्रोथ निगेटिव हो रही है यानी कोई भी उद्योगों के लिए कर्ज नहीं ले रहा है जो बड़ी चिंता की बात है जिसे एक वित्त मंत्री को देखना चाहिए.
3. देश में पिछले 3 सालों के दौरान कितने जॉब्स के मौके आए हैं? देश में कितने कारखानों में नौकरी के मौके पैदा हुए हैं ये सवाल देखा जाए तो इस मोर्चे पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं है.
पी चिदंबरम ने कहा कि लेबर ब्यूरो के मुताबिक 1 लाख 35 हजार से ज्यादा नौकरी के मौके दिए गए हैं लेकिन हाल ही में देश के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर ने कहा कि 3 मेजर सेक्टर एग्रीकल्चर, कंस्ट्रक्शन और जॉब ग्रोथ किसी तरह की नौकरी के मौके नहीं बना पाए जो देश के सबसे ज्यादा नौकरी देने वाले सेक्टर्स हैं तो फिर ये 1 लाख 35 हजार नौकरियां कहां से दी गई हैं? वहीं आजकल हम सुन रहे हैं कि आईटी सेक्टर में छंटनी हो रही है तो नौकरियों के बढ़ने का सिलसिला कब शुरू होगा?
अर्थव्यवस्था के लिए खुशी की कोई बात नहीं इंवेस्टमेंट, क्रेडिट, जॉब इन तीनों मोर्चों पर कोई ग्रोथ नहीं है तो देश 8 से 10 फीसदी की विकास दर कैसे हासिल करेगा? यानी देश में आर्थिक संकट नहीं है लेकिन देश की अर्थव्यवस्था स्थिर है इसमें कोई ग्रोथ भी नहीं है.
इकोनॉमिक पॉलिसी के मोर्चे पर सरकार पहल योजना को अपनी इकोनॉमिक पॉलिसी की सफलता बताती है पर ये योजना यूपीए सरकार की तरफ से शुरू की गई थी जिसे डीबीटी के जरिए पूरा किया जा रहा है. जन-धन खातों को खोलना जिसे पॉलिसी के नाम पर बड़ी सफलता कहा जा रहा है वो भी आर्थिक पॉलिसी नहीं प्रशासनिक कदम है. हालांकि 13 करोड़ खाते यूपीए ने भी खोले थे और एनडीए सरकार ने 14 करोड़ खाते खोले हैं जो ज्यादा बड़ी बात नहीं है. वहीं स्वच्छ भारत एक अच्छी पहल है लेकिन इससे इकोनॉमी को बूस्ट नहीं मिलेगा और ये एक एडमिनिस्ट्रिटेव कदम है ना कि आर्थिक पॉलिसी से जुड़ा कदम.
हालांकि मेन इन इंडिया एक अच्छा इकोनॉमिक पॉलिसी का कदम है लेकिन इसे भी अभी तक सिर्फ 8 फीसदी लोगों ने एक अच्छा इकोनॉमिक कदम कहा है जो निश्चित तौर पर ज्यादा उत्साहजनक आंकड़ा नहीं है.
जीएसटी वो कदम है जिसे इकोनॉमिक पॉलिसी के तौर पर देखा जाना चाहिए और इसे भी विपक्ष के सहयोग के बाद पास कराया गया और इसके लिए सरकार को बधाई देते हैं. जीएसटी जिस मौजूदा स्वरूप में पास कराया गया है उससे पूरी तरह संतुष्ट हैं. सरकार ने 0,5,12,18, 20,24,40 फीसदी की दरों को तय करने का फैसला लिया था. आज और कल हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में कुल मिलाकर 70 फीसदी वस्तुओं-सेवाओं को 18 फीसदी के टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है तो ये बहुत अच्छा कदम है. जहां तक राज्यों और केंद्र के बीच जीएसटी के मुद्दों पर मतभेद सुलझाने की बात है तो इस दिशा में भी जल्द फैसला आना चाहिए. साल 2005 में मैंने जो जीएसटी की पहल शुरू की थी वो आज पूरी होती दिख रही है जो कि संतोष की बात है.
पूर्व एफएम पी चिदंबरम ने कहा कि आजकल सरकार, शासन की सिर्फ प्रशंसा की जा रही है जो कि अच्छा संकेत नहीं है. किसी भी प्रजातंत्र में सच्चे और कड़े सवाल पूछे जाने चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. अगर माना जाए कि पहले की सरकारों ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए तो मौजूदा सरकार को 3 साल हो गए हैं, क्यों आज भी किसान सड़कों पर प्याज फेंक रहे हैं, टमाटर फेंक रहे हैं. उन्हें अपनी फसल का एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) तक नहीं मिल पा रहा है. 6 करोड़ परिवार कृषि पर निर्भर हैं और 2 करोड़ भूमिहीन कृषक हैं. महंगाई जहां 5 फीसदी की दर से बढ़ रही है वहीं फार्म सेक्टर में लेबर के मेहनताने में सिर्फ 4 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है, वो लोग कैसे जीवनयापन करेंगे? ऐसे सवालों को सरकार से पूछा जाना चाहिए.
आरबीआई ने नोटबंदी के बाद के काले धन के आंकड़े जारी क्यों नहीं किए? नोटबंदी के बाद आए काले धन के आंकड़े जारी नहीं किए गए क्योंकि देश में 13 लाख करोड़ रुपये पुराने नोटों की शक्ल में वापस आ चुके हैं, यानी जिस कालेधन की बात कहीं जा रही थी वो भी सिस्टम में वापस आ गया तो सरकार की कालेधन को लेकर जो सोच थी वो फेल हो गई.
पी चिदंबरम ने हिंदी जानने-समझने के सवाल पर बताया कि प्राथमिक कक्षा तक हिंदी एक विषय के रूप में उन्हें पढ़ाई गई लेकिन उसके बाद सन 1950 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी की शिक्षा ही बंद कर दी गई जिसके बाद उन्हें हिंदी पढ़ने-जानने का मौका नहीं मिला.