आने वाले थे 5000 और 10000 के नोट, जानें रघुराम राजन का आयडिया क्यों हुआ खारिज
2000 Rupees Note: भारत में 2000 रुपये के नोट के आने से पहले 5,000 और 10,000 रुपये के नोट लाने का आइडिया दिया गया था. हालांकि सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया था.
10000 Rupees Note: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने जब से 2000 के नोट को चलन से वापस लेने का फैसला किया है तब से इससे जुड़ी खबरें लगातार आ रही हैं. 2000 रुपये के नोट के आने से पहले तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने 5000 और 10,000 रुपये के नोट लाने का प्रस्ताव दिया था. 2000 के नोट को सर्कुलेशन से वापस लेने के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने कहा था कि इसे चलन से हटाने का कदम स्वच्छ नोट नीति का ही हिस्सा है. साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि 2000 का नोट वैध मुद्रा बना रहेगा.
किसने दिया था 10,000 को नोट लाने का आइडिया
क्या आपको पता है 2016 में हुए नोटबंदी और 2000 रुपये के नोट लॉन्च होने से पहले 10,000 रुपये के नोट लाने के विचार पर विवाद हो चुका है. पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने इससे पहले 5,000 और 10,000 रुपये के नोट लाने के सुझाव दिए थे. इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई द्वारा पब्लिक अकाउंट कमिटी को दी गई जानकारी के मुताबिक केंद्रीय बैंक ने अक्टूबर 2014 में ऐसा करने का सुझाव दिया था. उस समय 10,000 के नोट को लाने के पीछे का कारण 1000 रुपये के नोट का मूल्य महंगाई से कम होना बताया गया था.
इसके 18 महीने बाद मई 2016 में सरकार ने आरबीआई को 2000 रुपये के नोट पेश करने के अपने निर्णय के बारे में बताया. उस समय के तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार ने 5,000 और 10,000 रुपये के नोट लाने की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया. बाद में पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि जालसाजी के डर से बड़े नोटों को चलन में रखना मुश्किल है. सितंबर 2015 में उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की थी कि अगर हम बहुत बड़े नोट बनाते हैं तो फर्जीवाड़ा होगा.
2000 के नोट को वापस लेने पर पी चिदंबरम ने साधा निशाना
दो हजार के नोट को सर्कुलेशन से वापस लेने के फैसले के बाद राजनीति भी गरमा गई है. आरबीआई के इस फैसले पर पी चिदंबरम ने निशाना साधते हुए कहा कि 2000 रुपये के नोट से काला धन रखने वालों को मदद मिली है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार और केंद्रीय बैंक इसके पीछे का कारण बताने से मना कर रही है. उन्होंने विश्लेषकों का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश में अलग-अलग राज्यों में आम चुनाव होने वाले हैं. आमतौर पर ऐसे में कैश का इस्तेमाल बढ़ जाता है.
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