शेयर बेचकर भागते विदेशी निवेशक सालभर भारतीय शेयर बाजार को परेशान किए रहे. भारत में एफपीआई यानी Foreign Portfolio Invesors ने कुल एक लाख 20 हजार 598 करोड़ के शेयर बेच दिए. इस तरह एफपीआई के लिहाज से यह दशक का दूसरा सबसे खराब साल है. विश्लेषकों का मानना है कि विदेशी निवेशक भारत में निवेश को लेकर अभी भी सतर्क रुख अपनाए हुए हैं.
यह हालत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की स्थिति स्पष्ट होने और तीसरी तिमाही की रिपोर्ट आने तक बरकरार रहेगी. हालांकि, विश्लेषकों को 2025 में जून के बाद विदेशी निवेश का प्रवाह फिर से भारत की ओर होने की संभावना नजर आने लगी है. हालांकि चीन में नए पैकेज की घोषणा के कारण इस उम्मीद को भी संदेह की नजर से देखा जा रहा है.
सितंबर से भागने लगे विदेशी निवेशक
अगस्त तक निफ्टी 26,200 और सेंसेक्स 86 हजार के लेवल पर जा रहा था. लेकिन सितंबर में विदेशी निवेशकों के अपने शेयर बेचकर भागने की उलटी दौड़ शुरू होते ही स्टॉक मार्केट में तबाही मचने लगी. बाजार नौ से 10 फीसदी नीचे आ गया. शेयर की चाल गिरने का यह सिलसिला अब भी जारी है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने एक लाख 20 हजार करोड़ रुपये की बिकवाली की है.
केवल अक्टूबर महीने में ही एक लाख करोड़ से अधिक की बिकवाली की गई है. इस कारण 27 सितंबर से अभी तक निफ्टी में 10 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है. लेकिन एफपीआई के बाहर जाने के बाद भी घरेलू निवेशक बाजार को सहारा दे रहे हैं. जो भारतीय शेयर बाजार के लिए शुभ संकेत है. इसलिए विश्लेषकों की सलाह है कि निवेशकों को लांग टर्म निवेश पर ध्यान देते हुए केवल क्वालिटी स्टॉक्स पर ध्यान देने चाहिए.
भारतीय कंपनियों के खराब प्रदर्शन से भी आया संकट
भारत में एफपीआई संकट कई भारतीय कंपनियों के खराब आर्थिक प्रदर्शन के कारण भी आया. उनकी स्थिति डांवाडोल होने के डर से विदेशी निवेशक उन कंपनियों के अपने शेयर बेचकर चलते बने. अमेरिका में बॉन्ड यील्ड की बढ़ोत्तरी के कारण भी निवेशकों का वहां के लिए आकर्षण बढ़ गया. इसी तरह चीन की आर्थिक स्थिति में सुधार के कारण भी निवेशकों को वह देश निवेश के लिए भारत की तुलना में ज्यादा सही लगा. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की आने वाली नीति के भारत पर गलत असर पडने की आशंका से भी निवेशक डर गए.