तेजी से बदलते वैश्विक घटनाक्रमों के बीच विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से निकलने लग गए हैं. सितंबर महीने के दौरान एफपीआई ने बिकवाली का नया रिकॉर्ड बना दिया. छह महीने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब भारतीय बाजार में विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बने हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में घरेलू शेयर बाजार पर दबाव देखने को मिल सकता है.
सितंबर में शुद्ध आधार पर इतनी बिकवाली
डिपॉजिटरी के आंकड़े बताते हैं कि सितंबर महीने में एफपीआई ने इंडियन इक्विटीज में 14,767 करोड़ रुपये (करीब 1.7 बिलियन डॉलर) की शुद्ध बिकवाली की. फरवरी 2023 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब किसी महीने एफपीआई ने शुद्ध बिकवाली की है. शुद्ध बिकवाल होने का मतलब है कि आलोच्य अवधि के दौरान एफपीआई ने जितना निवेश किया, उससे कहीं ज्यादा पैसे उन्होंने निकाल लिए.
इससे पहले 6 महीने में आया बड़ा निवेश
भारतीय बाजार चीन और जापान के बाद एशिया का तीसरा सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट है. इस कारण भारतीय बाजार एफपीआई के लिए अहम हो गया है. भू-राजनीतिक कारणों से एफपीआई का चीन के बाजार से मोहभंग हो रहा है. ऐसे में भारतीय बाजार उन विदेशी निवेशकों के लिए स्वाभाविक पसंद बना हुआ था, जो फिलहाल चीन के बाजार से बाहर निकल रहे थे. यही कारण है कि मार्च से अगस्त 2023 के छह महीनों में एफपीआई ने भारतीय बाजार में 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया था.
1 से नीचे आया खरीदारी-बिक्री अनुपात
सितंबर महीने के दौरान भारतीय इक्विटी बाजार में एफपीआई का खरीदारी बनाम बिक्री अनुपात कम होकर 0.95 पर आ गया. लॉन्ग टर्म में यह अनुपात 1.07 है. खरीदारी बनाम बिक्री का अनुपात 1 से कम होने का मतलब है कि एफपीआई खरीदने से ज्यादा बिक्री कर रहे हैं. इसी तरह 1 से ज्यादा का अनुपात बताता है कि वे खरीदारी ज्यादा कर रहे हैं, बिक्री कम.
सितंबर में बना दिया बिक्री का ये रिकॉर्ड
पिछले महीने के आंकड़े को देखें तो ग्रॉस आधार पर एफपीआई ने बिकवाली का नया रिकॉर्ड बना दिया. एनएसडीएल के आंकड़े बताते हैं कि सितंबर महीने में एफपीआई ने 2.76 लाख करोड़ रुपये के इक्विटी की ग्रॉस बिक्री की. एनएसडीएल के पास जब से एफपीआई की खरीद व बिक्री के आंकड़े उपलब्ध हैं, तब से यह किसी भी एक महीने में ग्रॉस बिक्री का सबसे बड़ा आंकड़ा है.
इन कारणों से एफपीआई हुए बिकवाल
एफपीआई के इस बदले ट्रेंड के लिए कई कारणों को जिम्मेदार माना जा रहा है. कच्चा तेल लगातार तेजी दिखा रहा है. ब्रेंट क्रूड 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को छूने के पास पहुंच गया है. इससे निवेशकों के लिए कच्चा तेल अच्छा विकल्प बन गया है. दूसरी ओर डॉलर की तेजी से भी एफपीआई को निवेश के लिए बढ़िया विकल्प मिल रहा है. अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के बदले रुख से भी भारत जैसे उभरते बाजारों पर दबाव बढ़ रहा है.
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