GDP में गिरावट से बड़ी चिंताः क्या है जीडीपी और इसे कैसे मापा जाता है, जानें सब कुछ
देश की जीडीपी के -23.9 फीसदी पर आने का मतलब है कि आर्थिक स्थिति पर बेहद ठोस कदम उठाने होंगे जिससे वृद्धि की तेज रफ्तार को फिर से हासिल किया जा सके.
GDP: देश की जीडीपी में भारी गिरावट की चर्चा चारों ओर हो रही है. कल आए पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी -23.9 फीसदी पर आ गई है. देश की आर्थिक विकास दर का परिचायक मानी जाने वाली जीडीपी के इतना गिरने से साफ है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत की हालत बेहद चिंताजनक हो चली है.
हालांकि इसका कारण कोरोना वायरस से बनी परिस्थिति और लॉकडान के चलते बंद सारी गतिविधियों को माना जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि अगली तिमाही के आंकड़े बेहतर आएंगे लेकिन फिर भी जीडीपी में दिखी ये गिरावट परेशानी का सबब तो है ही.
क्या है जीडीपी जीडीपी को पूरी तरह देखें तो इसे ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है. किसी एक साल में किसी राष्ट्र में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल कीमत को ही जीडीपी कहा जाता है. अगर जीडीपी में सुस्ती है तो साफ तौर पर माना जाता है कि किसी देश की आर्थिक विकास दर में गिरावट आ रही है और विभिन्न उपायों से इसे बढ़ाने की जरूरत है.
जीडीपी के जरिए ये पता लगता है कि देश में कितनी मात्रा में सामान का उत्पादन किया है और सेवाओं की कितनी कीमत रही है. अगर जीडीपी बढ़ती है तो माना जाता है कि पिछले साल के मुकाबले देश में सामानों, वस्तुओं, गुड्स का अच्छी मात्रा में उत्पादन हुआ है और सर्विस सेक्टर में भी बढ़ोतरी रही है.
जीडीपी में कौन-कौन से फैक्टर होते हैं शामिल जीडीपी में कुल चार फैक्टर शामिल होते हैं जिसमें से पहला 'कंजम्पशन एक्सपेंडिचर' है. यह इस बात का संकेतक है कि सामान और सेवाओं को खरीदने के लिए देश के लोगों ने कुल कितना खर्च किया है. दूसरा फैक्टर गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर और तीसरा घटक इनवेस्टमेंट एक्सपेंडिचर होता. जीडीपी नापने के लिए नेट एक्सपोर्ट्स को भी शामिल किया जाता है. पहले कुल निर्यात को इसमें जोड़ा जाता है और फिर कुल आयात को इसमें से घटा दिया जाता है.
कैसे मापी जाती है देश की जीडीपी जीडीपी मापने के लिए आपको सिंपल फार्मूला अपनाना चाहिए जिसके तहत कंजंप्शन+गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर+इंवेस्टमेंट एक्सपेंडिचर के साथ एक्सपोर्ट को जोड़ा जाता है और इसमें से इंपोर्ट को घटा दिया जाता है.
जीडीपी कितनी तरह की होती है? जीडीपी दो तरह की होती है, एक नॉमिनल जीडीपी और एक रियल जीडीपी.
नॉमिनल जीडीपी नॉमिनल जीडीपी के तहत देश में बनने वाली कुल वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को जोड़ा जाता है और इसके योग को नॉमिनल जीडीपी कहते हैं.
रियल जीडीपी रियल जीडीपी में हम मंहगाई को भी शामिल करते हैं और ये नॉमिनल जीडीपी से अलग होती है. देश में जो तिमाही आधार पर जो जीडीपी जारी की जाती है वो रियल जीडीपी होती है. रियल जीडीपी को हम इस तरह समझ सकते हैं कि यदि किसी वस्तु की कीमत में 10 रुपये की बढ़ोतरी हुई और महंगाई दर 4 फीसदी है तो वस्तु की कुल कीमत को 6 फीसदी ही माना जाएगा.
जीडीपी को मापने की जरूरत क्यों होती है? जीडीपी का असर देश की आम जनता, उद्योगों और सर्विस सेक्टर के साथ साथ कई सेक्टर्स पर पड़ता है. सबसे ज्यादा असर लोगों की प्रति व्यक्ति आय पर पड़ता है और जीडीपी घटने से लोगों की आय घट जाती है. जीडीपी देश की आर्थिक विकास दर का सबसे बड़ा संकेतक है.
जब जीडीपी में राष्ट्रीय जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो देश की प्रति व्यक्ति आय निकलकर सामने आती है. जीडीपी घटने का साफ अर्थ है कि देश की प्रति व्यक्ति आय घट रही है. प्रगति के मानकों में जीडीपी सबसे सही मानक माना जाता है और आईएमएफ यानी विश्व मुद्रा कोष भी इसे ही आधार मानकर राष्ट्रो की आर्थिक विकास दर का अनुमान लगाता है.
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