App Based Workers and Drivers: एप बेस्ड सेवाओं में काम करने वाले कर्मचारियों की स्थिति को लेकर आई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इस रिपोर्ट से पता चला है कि इन गिग वर्कर्स (Gig Workers) को लंबे समय तक काम करना पड़ता है. उन्हें काम के बदले वेतन भी कम मिलती है. साथ ही कई कारणों के चलते चलते उनके खर्चे तेजी से बढ़े हैं. इस वजह से उन्हें घर का बजट संभालने में बहुत दिक्कत होने लगी है. इसके अलावा सरकार की तरफ से भी इन लोगों को किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं है. साथ ही सरकार एप बेस्ड सेवाओं के कामकाम की मॉनिटरिंग भी नहीं कर रही है.


14 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ रहा 


रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एप बेस्ड कैब ड्राइवर्स को दिन में 14 घंटे से भी ज्यादा काम करना पड़ रहा है. लगभग 83 फीसदी 10 घंटे और 60 फीसदी 12 घंटे से ज्यादा काम करते हैं. इस सर्वे में लगभग 10 हजार कैब ड्राइवरों और गिग एवं प्लेटफॉर्म वर्कर्स से बात की गई. रिपोर्ट में सरकार से मांग की गई है कि इन लोगों को सामाजिक सुरक्षा नियमों के दायरे में लाने के लिए सिस्टम बनाया जाए. यह सर्वे पीपल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट और इंडियन फेडरेशन ऑफ एप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स की ओर से आयोजित किया गया था. इसे पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी और एक जर्मन फाउंडेशन फ्रैड्रिक एबर्ट स्टिफटंग इंडिया से समर्थन प्राप्त था. 


मुश्किल से कमा पा रहे 15 हजार रुपये 


सर्वे से पता चला है कि सभी डिडक्शन करने के बाद लगभग 43 फीसदी लोग दिन का 500 और महीने के 15 हजार रुपये से भी कम कमा पा रहे हैं. एप बेस्ड डिलीवरी में काम करने वाले लगभग 34 फीसदी लोग 10 हजार रुपये महीने से भी कम कमा रहे हैं. जबकि 78 फीसदी से ज्यादा लोग दिन में कम से कम 10 घंटे काम कर रहे हैं. इससे पता चला कि एससी और एसटी समुदाय के लगभग 60 फीसदी ड्राइवर 14 घंटे से ज्यादा काम करते हैं. ऐसा उनकी आर्थिक स्थिति के चलते हो रहा है. 


8 बड़े शहरों में किया गया सर्वे 


इस सर्वे में 50 सवाल थे. इसमें दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, लखनऊ, जयपुर, कोलकाता और इंदौर में काम करने वाले 5302 कैब ड्राइवर और 5028 डिलीवरी देने वालों की राय जानी गई. इनमें से 78 फीसदी लोग 21 से 40 वर्ष की उम्र तक के थे. काम के घंटे ज्यादा होने के चलते यह लोग बुरी तरह से थक जाते हैं. इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही एक्सीडेंट का खतरा भी बढ़ जाता है. यह सभी लोग फटाफट डिलीवरी के वादों से तंग आ चुके हैं. साथ ही कंपनी से मिलने वाले पैसे को ये नाकाफी मानते हैं. इन्हें कस्टमर्स का बुरा बर्ताव भी झेलना पड़ता है.


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