Go First Crisis: वाडिया ग्रुप की कंपनी गो फर्स्ट के दिवालिया घोषित करने के आवेदन के बाद से भारतीय एविएशन सेक्टर (Indian Aviation Sector) में भूचाल मच गया है. कंपनी ने NCLT के पास वॉलंटरी इनसॉल्वेंसी प्रोसीडिंग्स के लिए आवेदन किया है. नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने इस मामले पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए अपना फैसला सोमवार 8 मई तक के लिए सुरक्षित रख लिया है. इसके साथ ही कंपनी ने अपनी सभी फ्लाइट्स को 12 मई तक के लिए रद्द (Go First Flight Cancelled) कर दिया है. कंपनी के दिवालिया घोषित करने के आवेदन के बाद से ही घरेलू एविएशन मार्केट में उथल पुथल मची हुई है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि घरेलू मार्केट में एक समय पर तीसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी की आज ऐसी हालत कैसे हो गई.
तेजी से बढ़ रहा भारतीय एविएशन सेक्टर
हाल ही में एयर इंडिया ने इतिहास का सबसे बड़ी एविएशन डील की है. देश में बढ़ते मीडिल क्लास के कारण फ्लाइट्स से यात्रा करने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. ऐसे में आने वाले वक्त में देश में एविएशन क्षेत्र में बढ़ती मांग को देखते हुए टाटा ग्रुप की एयर इंडिया ने एविएशन की सबसे बड़ी डील बोइंग और एयरबस के साथ साइन की है. कंपनी ने दोनों एयरक्राफ्ट बनाने वाली कंपनियों को 470 विमानों का बड़ा आर्डर दिया है. इसके बाद से ही कई और एयरलाइंस कंपनियां भी बड़े पैमाने पर विमानों का ऑर्डर देने की तैयारी कर रही है. ऐसे में तेजी से बढ़ते भारतीय एविएशन मार्केट में गो फर्स्ट (Go First) का इस तरह से डूब जाना मन में कई सवाल खड़ा करता है. हम आपको बता रहे हैं कंपनी के बनने से लेकर डूबने तक की कहानी.
कंपनी ने क्या कहा?
गो फर्स्ट वाडिया ग्रुप (Wadia Group) की मालिकाना हक वाली कंपनी है. कंपनी ने पहली बार भारतीय एविएशन मार्केट में साल 2005 में कदम रखा था. इसके बाद से ही सस्ती हवाई सेवा देकर कंपनी जल्द ही बाजार में तीसरी सबसे बड़ी हिस्सेदार बन गई थी. मगर मई में अचानक कंपनी ने 2 और 3 मई को अपने सभी फ्लाइट्स को रद्द करने करने की जानकारी दी. इसके बाद कंपनी ने NCLT के पास खुद को दिवालिया घोषित करने का आग्रह किया. अपने आवेदन पत्र में कंपनी ने बुरी वित्तीय हालत के लिए इंजन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी को जिम्मेदार ठहराया है.
गो फर्स्ट का कहना है कि एयरलाइंस सबसे ज्यादा Airbus A320neo जेट का इस्तेमाल कर रही थी जिसमें प्रैट एंड व्हिटनी के इंजन का इस्तेमाल हो रहा था. खराब इंजन की सप्लाई की वजह से एयरलाइंस को भारी नुकसान उठाना पड़ा. इसके बाद कंपनी के ऊपर बढ़ती देनदारियों के बाद वह Cash and Carry मोड में चल रही थी. ऐसे में उसे हर दिन संचालन के लिए भुगतान करना पड़ रहा था. ऐसे में एयरलाइंस पर दबाव बढ़ने लगा. इसके साथ ही कोरोना लॉकडाउन ने इस परेशानी को कई गुना बढ़ा दिया. कंपनी के मुताबिक उस पर कुल 6,527 करोड़ रुपये की देनदारी है.
इंडिगो ने बढ़ाई मुश्किल
गो फर्स्ट ने शुरुआत से ही सस्ती हवाई सेवा के जरिए मीडिल क्लास को टारगेट करने की कोशिश की है, लेकिन इंडिगो ने सस्ती हवाई सेवा से गो फर्स्ट की बड़ी हिस्सेदारी पर पिछले कुछ सालों में कब्जा कर लिया है. इससे एयरलाइंस को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब कोई भारतीय एयरलाइंस कंपनी डूबी है. इससे पहले साल 2019 में जेय एयरवेज और साल 2012 में किंगफिशर एयरलाइंस भी डूब चुकी है.
भारतीय विमान कंपनियां क्यों डूब रही?
पिछले 11 सालों में गो फर्स्ट के अलावा दो बड़ी एयरलाइंस कंपनियां और डूब चुकी हैं.एक्सपर्ट्स के मुताबिक देश में निजी एयरलाइंस कंपनियों के बंद होने का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसके पीछे कई कारण है. ईंधन की बढ़ती कीमत के कारण विमान कंपनियों को पिछले कुछ सालो में भारी नुकसान हुआ है. एटीएफ की कीमत में 60 से 70 फीसदी तक इजाफा हुआ है, वहीं फ्लाइट टिकट के दाम में उस मुकाबले इजाफा नहीं देखा गया है. इसके साथ ही डॉलर के दाम में उतार-चढ़ाव के कारण भी जेट ईंधन, लीज, रखरखाव आदि महंगा हुआ है, जिससे एयरलाइंस कंपनियों पर दबाव बढ़ा है. वहीं अलग-अलग रूट पर मांग में असंतुलन भी नुकसान का कारण बना है. इसके साथ ही कई बार सरकार हवाई कराये को रेगुलेट करने की कोशिश करती है. ऐसे में प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों पर इसका सीधा-सीधा असर पड़ता है.
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