भारत सरकार देश में फिजिकल गोल्ड (Physical Gold) की खपत को कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. इसके साथ ही सरकार सोने के आयात (Gold Import) को भी कम करना चाहती है. अब सरकार के इन प्रयासों को सफलता मिलती दिख रही है, क्योंकि इस उद्देश्य से शुरू की गई दो सरकारी योजनाओं का कुल संग्रह पहली बार 50 हजार करोड़ रुपये के पार निकला है.
सोने के आयात में इतनी राहत
सरकार ने फिजिकल गोल्ड की डिमांड में कमी लाने और सोने के आयात को कम करने के लिए सात साल पहले इन योजनाओं की शुरुआत की थी और इन सात सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि दोनों योजनाओं का टोटल कलेक्शन 50 हजार करोड़ रुपये के पार निकला है. अगर सोने के मौजूदा भाव के हिसाब से देखें तो यह रकम 85 टन सोने की वैल्यू के बराबर है, जो साल 2022 के दौरान देश में सोने की आई कुल डिमांड के 11 फीसदी के बराबर है.
नवंबर 2015 में हुई शुरुआत
सरकार ने नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम (Sovereign Gold Bond Scheme) और एक गोल्ड मनीटाइजेशन स्कीम (Gold Monetisation Scheme) की शुरुआत की थी. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम वैसे लोगों के लिए है, जो सोने को निवेश के विकल्प के रूप में देखते हैं. यह स्कीम ऐसे लोगों को फिजिकल गोल्ड के बजाय पेपर गोल्ड खरीदने का बेहतरीन विकल्प देती है. वहीं गोल्ड मनीटाइजेशन स्कीम का उद्देश्य घरों, मंदिरों आदि में बेकार पड़े सोने को बाहर लाना है, ताकि घरेलू आपूर्ति बढ़ाई जा सके, जिससे सोने का आयात कम हो.
लोकप्रिय है गोल्ड बॉन्ड स्कीम
सरकार की इन दोनों योजनाओं का मूल उद्देश्य सोने के आयात को कम करना ही है. अभी कच्चे तेल के बाद सोना ही भारत के आयात बिल का सबसे बड़ा भागीदार है. बीते सालों के दौरान सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की लोकप्रियता बढ़ी है. हालांकि गोल्ड मनीटाइजेशन स्कीम अभी रफ्तार नहीं पकड़ पाई है. विशेषज्ञों का मानना है कि रफ्तार पकड़ने में इस स्कीम को अभी और समय लग सकता है.
जारी हुए इतने के बॉन्ड
आंकड़ों के अनुसार, गोल्ड बॉन्ड स्कीम ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 16,049 करोड़ रुपये का अपना उच्चतम स्तर छुआ था. उसके बाद से गोल्ड बॉन्ड स्कीम की रफ्तार कुछ कम हुई है, क्योंकि महामारी के बाद इक्विटी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है. वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान गोल्ड बॉन्ड का नेट इश्यूएन्स साल भर पहले के 12,808 करोड़ रुपये की तुलना में कुछ कम होकर करीब 11,700 करोड़ रुपये पर आ गया.
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