GST Rate: PM आर्थिक सलाहकार काउंसिल के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने एक जीएसटी रेट पर दिया जोर, बोले - कई रेट्स से सरकार को नुकसान
GST Tax Rate: जीएसटी की जब परिकल्पना की गई थी तब वन नेशन वन टैक्स की बात कही गई थी. लेकिन जीएसटी के चार टैक्स स्लैब हो गए.
GST Rate: प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति (PM Economic Advisory Council) के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ( Bibek Debroy) ने एक बार फिर एक जीएसटी रेट (Goods And Services Tax Rates) होने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि जीएसटी की अलग अलग रेट होने के चलते सरकार को नुकसान हो रहा है. इसलिए केवल एक ही जीएसटी रेट होना चाहिए. मौजूदा समय में जीएसटी रेट्स के चार स्लैब 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी, 28 फीसदी मौजूद है.
जीएसटी से सरकार को नुकसान
कोलकाता चैंबर ऑफ कॉमर्स में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विवेक देबरॉय ने माना कि जीएसटी के चलते अप्रत्यक्ष करों में काफी सरलता आई है. लेकिन उन्होंने से भी कहा कि आदर्श जीएसटी वहीं है जहां सिंगल जीएसटी रेट है. उन्होंने कहा कि जब जीएसटी लागू किया गया तब वित्त मंत्रालय ने कहा था कि रेवेन्यू न्यूट्रल रेट के लिए 17 फीसदी जीएसटी रेट औसतन होना चाहिए. लेकिन अब औसत जीएसटी रेट 11.4 फीसदी है. ऐसे में जीएसटी के चलते सरकार को खासा नुकसान हो रहा है.
जीएसटी की सरलता संभव नहीं
प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन ने कहा कि आम लोगों के साथ जीएसटी काउंसिल के सदस्य चाहते हैं कि जीएसटी रेट 28 फीसदी से कम हो. लेकिन शून्य फीसदी और 3 फीसदी जीएसटी रेट को बढ़ते हुए कोई नहीं देखना चाहता है. ऐसे में सरल जीएसटी के लक्ष्य को हासिल करना बेहद कठिन है. उन्होंने बताया कि जीएसटी के प्रावधानों का बहुत उल्लंघन किया जा रहा है.
खत्म हो टैक्स छूट!
डायरेक्ट टैक्स पर भी प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष ने कहा कि टैक्स रिफॉर्म्स के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इनकम टैक्स में सभी प्रकार के छूटों (Tax Exemption) का खात्मा बेहद जरुरी है. उन्होंने कहा कि टैक्स छूट से जीवन जटिल होता जाता है, अनुपालन पर खर्च बढ़ने से लेकर कानूनी विवाद भी बढ़ता है.
ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहें!
उन्होंने कहा कि सरकार को खर्च करने के लिए रेवेन्यू चाहिए. जीडीपी का 10 फीसदी स्वास्थ्य-शिक्षा पर, 3 फीसदी रक्षा पर, 10 फीसदी आधारभूत ढांचे पर खर्च किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम केवल सरकार को जीडीपी का 15 फीसदी ही टैक्स देते हैं जबकि हमारी सरकार से मांग 23 फीसदी के बराबर है. ऐसे में हमें ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए नहीं तो हमारी हसरतें पूरी नहीं हो सकती.
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