नई दिल्लीः बहुत जल्द ऐसा हो सकता है कि देश के सरकारी बैंकों की संख्या 21 से घटकर 12-11 तक रह जाए. दरअसल केंद्र सरकार आर्थिक सुधारों की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए सरकारी बैंकों के विलय के फैसले को अंजाम तक पहुंचाना चाहती है. मौजूदा सरकार ये मानती है कि देश में 5-6 से ज्यादा सरकारी बैंकों की जरूरत नहीं है. लिहाजा सरकार सभी 21 सरकारी बैंकों का विलय कर उनकी संख्या घटाकर 10-12 तक करने और देश में ग्लोबल साइज के 3-4 बैंक तैयार करने के टार्गेट पर काम कर रही है.
सरकारी बैंकों के मर्जर की योजना पर 15 सालों से विचार चल रहा है. साल 2003-04 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के निर्देशानुसार भारतीय बैंक संघ-इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) ने एक प्रस्ताव तैयार किया था. अब इस पर फिर से सरकार एक्टिव दिख रही है. इसका संकेत तब मिला जब पिछले महीने वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय पर सक्रियता से काम कर रही है. हालांकि इससे जुड़ी कोई ठोस जानकारी उन्होंने नहीं दी.
कैसे होगा बैंकों का मर्जर
पहले चरण में 21 मौजूदा सरकारी बैंकों की संख्या घटाकर 12 करने की सोच के साथ आगे बढ़ा जा रहा है. ये काफी संभावना है कि पंजाब नैशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक और बैंक ऑफ इंडिया ऐसे बैंकों की तलाश करना शुरू करें जो अधिग्रहण के लिए तैयार हैं. बैंकों के मर्जर में उसके लोन्स, मानव संसाधन, जियोग्रॉफिकल कंडीशन वगैरह को ध्यान में रखा जाएगा. फर्स्ट फेज़ में ये भी देखा जाएगा कि एक ही तरह की आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर इस्तेमाल करने वाले बैंकों के मर्जर का काम पहले किया जाए जिससे तकनीकी तालमेल बिठाने में बैंकों को परेशानी न हो और विलय प्रोसेस जल्दी पूरा हो.
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक देखा जाए तो पंजाब ऐंड सिंध बैंक और आंध्रा बैंक जैसे कुछ रीजनल बैंक अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ बाजार में बने रहेंगे. इसके अलावा मीडियम साइज के कुछ बैंकों को भी बनाए रखा जाएगा. कुल मिलाकर तीन स्तरीय ढांचे के तहत देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के आकार के कम से कम 3-4 बैंक होंगे. जैसा कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन पहले ही इस बारे में कह चुके हैं, 'इस सिस्टम में कुछ बड़े बैंक होंगे, कुछ छोटे और लोकल बैंक होंगे.' उन्होंने कहा कि सिस्टम में डाइवर्सिफिकेशन की जरूरत होगी.
SBI के सफल मर्जर से मिला सरकार को उत्साह
1 अप्रैल 2017 को सरकार ने एसबीआई में उसके 5 सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय किया था. इसके बाद से स्टेट बैंक देश का सबसे बड़ा और दुनिया के टॉप 50 बैंकों में जगह बनाने में कामयाब हो चुका है. एसबीआई का एसोसिएट बैंकों के साथ मर्जर उम्मीद से बेहतर रहने के चलते सरकार मानकर चल रही है कि सभी बैंकों के मर्जर में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी, बस थोड़ा सिस्टेमेटिक तरीके से काम करना होगा.
ग्राहकों के लिए क्या जानना है जरूरी
अगर सरकार की इस योजना के तहत भविष्य में आपके बैंक का भी मर्जर होगा तो जो बैंक आपके बैंक का अधिग्रहण करेगा, आपका खाता उसमें अपने आप ही ट्रांसफर हो जाएगा. जिस बैंक का अधिग्रहण होगा वो अपने ग्राहकों को इस बारे में नोटिफिकेशन से जानकारी भी देगा. सूचना में कहा गया होता है कि ग्राहकों का खाता अपने आप ही दूसरे बैंक में ट्रांसफर हो जाएगा. इस पर ग्राहकों की सहमति भी मांगी जाती है. अगर कोई ग्राहक चाहे तो वह अपनी असहमति भी दर्ज कर सकता है.
कई बैंक यूनियनें पहले ही विरोध शुरू कर चुकी हैं
देश के सरकारी बैंकों के मर्जर की स्कीम का ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन (एआइबीओसी) सहित नौ संगठनों ने मिल कर विरोध-प्रदर्शन करने का फैसला किया है. इन्होंनें 22 अगस्त को हड़ताल करने और इसके बाद 15 सितंबर को नई दिल्ली में रैली निकालने का भी प्रस्ताव रखा है. संगठनों की मुख्य आपत्ति इस बात पर है कि जहां एक तरफ केंद्र सरकार सरकारी बैंकों का आपस में विलय करना चाहती है और दूसरी तरफ प्राइवेट कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस बांटें जा रहे हैं. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्राइवेट कंपनियों का कब्जा होगा. केंद्र सरकार सरकारी बैंकों को पर्याप्त पैसे नहीं दे रही है और उनका कारोबार सीमित किया जा रहा है. प्राइवेट-स्मॉल बैंकों, पेमेंट बैंकों को खोलने के लिए कॉरपोरेट्स को खुलकर लाइसेंस दे रही है. साफ दिख रहा है कि करीब 1 साल में केंद्र सरकार ने 19 प्राइवेट कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस दे दिया है. लिहाजा सरकारी बैंकों को बचाने के लिए आंदोलन किया जाएगा.
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