हाल ही में जारी हुए ग्रांट थॉर्नटन रिपोर्ट में ये बताया गया कि भारतीय महिलाओं ने दफ्तरों में सीनियर मैनेजमेंट की भागीदारी में बढ़ोत्तरी दर्ज की है. महिलाओं की ये भागीदारी वर्ल्ड लेवल पर मंझले बिजनेस के क्षेत्र में सबसे ज्यादा बढ़ी है. रिपोर्ट में ये खुलासा भी किया गया कि पूरी दुनिया में इस तरह के बिजनेस का 9 प्रतिशत हिस्सा अभी भी महिलाओं की लीडरशिप से बाहर है. 


रिपोर्ट की माने तो सीनियर मैनेजमेंट में महिलाओं की भागीदारी में 36 प्रतिशत तक का उछाल दर्ज किया जाना एक पॉजिटिव रिस्पॉन्स है. इनमें 62 प्रतिशत महिलाएं हाइब्रिड मॉडल पर काम करती हैं. 5 प्रतिशत महिलाओं ने हमेशा के लिए वर्क फ्रॉम होम ले रखा है. साथ ही 5 प्रतिशत महिलाएं फ्लैक्सिबल वर्क कर रही हैं. यानी ये महिलाएं अपनी मर्जी से ऑफिस और वर्क फ्रॉम होम का ऑप्शन चुन रही हैं. 


महिलाओं की फैसला लेने की क्षमता बनी उनकी कामयाबी की वजह


इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत की महिलाएं कोई भी फैसला तेजी से लेती हैं और इसी क्वालिटी की वजह से महिलाओं ने बिजनेस के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया है.  ग्रांट थॉर्नटन इंटरनेशनल की रिपोर्ट में इस बात पर चिंता भी जताई है कि 9 प्रतिशत बिजनेस के क्षेत्र अभी भी महिलाओं की पहुंच से अछूते हैं. 9 प्रतिशत के ये आंकड़े पूरी दुनिया के हैं. 


ग्रांट थॉर्नटन इंडिया की पार्टनर पल्लवी बाखरू ने इस सिलसिले में कहा कि हमारा मकसद दफ्तरों में लैंगिक भेदभाव को खत्म करना है. ऐसे में बिजनेस के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने हमारा उत्साह बढ़ाया है. महिलाओं को हाइब्रिड वर्क कल्चर का ऑप्शन देना उनके काम को लचीला बनाने के जैसा है.


वर्क फ्रॉम होम ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है. ऐसा लग रहा है कि इन ऑपशनस ने महिलाओं को आगे बढ़ाने में  अहम भूमिका निभाई है. सीनियर पोजिशन पर महिलाओं की भागीदारी इस बात का सबूत है कि महिलाएं  ना सिर्फ घर के बाहर की जिम्मेदारी को उठा सकती हैं ब्लकि काम को अच्छे तरीके से हैंडल भी कर सकती हैं.  


अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, अमेरिका, यूरोपीय संघ जैसे देशों में भी महिलाओं ने सीनियर मैनेजमेंट का 30 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया है. आसियान देशों में तो महिलाओं ने इस क्षेत्र में 37 प्रतिशत के आंकड़ें को पार कर लिया है. उत्तरी अमेरिका में भी बिजनेस के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है.


यहां पर 2018 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है. 2018 में उत्तरी अमेरिका में महिलाओं की सीनियर लेवल पर भागीदारी 33 प्रतिशत से घटकर 31 प्रतिशत तक हो गयी थी. अच्छी खबर ये है कि भारत इस क्षेत्र में अभी कुछ देशों से आगे चल रहा है. 


तो क्या वर्क फ्रॉम होम बना महिलाओं की कामयाबी की वजह ?


पूरी दुनिया की बात करें तो अलग-अलग देशों में बिजनेस से जुड़ी 53 प्रतिशत ऐसी महिलाएं हैं जो हाइब्रिड मोड में काम करती हैं. वहीं भारत में 62 प्रतिशत ऐसी बिजनेस वूमैन हैं जो वर्किंग का हाइब्रिड मॉडल अपना रही हैं. 27 प्रतिशत भारतीय महिलाएं ही दफ्तर जा कर काम करती हैं. 5 प्रतिशत भारतीय महिलाएं पूरी तरह से वर्क फ्रॉम होम करती हैं. 5 प्रतिशत के पास पूरी तरह से ऑफिस आने या घर से काम करने की आजादी है.  


रिपोर्ट की मानें तो भारतीय महिलाएं इस बढो़त्तरी के साथ ऑफिस के मॉस्ट सीनियर पदों पर अपनी पहुंच बना चुकी हैं. जैसे वो सीईओ, एमडी, सीआईओ के पद पर लगातार अपने नंबर बढ़ा रही हैं. 2019 में  सीनियर मॉस्ट पोजिशन पर महिलाओं ने 15 प्रतिशत की भागीदारी बनाई थी अब ये संख्या 28 प्रतिशत है. 


 5 प्रतिशत मिड बिजनेस का क्षेत्र अभी भी भारतीय महिलाओं की पहुंच से बाहर 


इस रिपोर्ट के मुताबिक मिड-मार्केट बिजनेस का 5 प्रतिशत हिस्सा अभी भी भारतीय महिलाओं की सीनियर मॉस्ट लीडरशिप से बाहर है. पूरी दुनिया में ये 9 प्रतिशत बताया गया है. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि वर्किंग कल्चर में बदलाव, और काम में पारदर्शिता लाने से महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकती है. 


ग्रांट थॉर्नटन इंटरनेशनल क्या है


ग्रांट थॉर्नटन इंटरनेशनल बिजनेस रिपोर्ट (आईबीआर) दुनिया की टॉप मिड-मार्केट बिजनेस सर्वे है. ये हर साल 28 देशों की लिस्ट बनाता है और फिर इन देशों से लगभग 10,000  बिजनेस कंपनियों का सर्वेक्षण करता है. साल 2022 में ग्रांट थॉर्नटन इंटरनेशनल ने भारत की 281 कंपनियों का सर्वेक्षण किया था. 


क्या ग्रामीण इलाकों में भी बढ़ी हैं महिलाओं की भागीदारी


साल 2004-5 में युवा यानी 15- 29 साल की ग्रामीण महिला कामगरों की भागीदारी दर 42.8 प्रतिशत थी. इसके बाद से ये आंकड़े लगातार गिरते जा रहे हैं. 2018-19 में ये दर गिरकर 15.8 फीसद ही रह गई थी. 2021 में ग्रामीण महिलाओं के रोजगार की दर 2019 के मुकाबले  बढ़ी थी.  इन आंकड़ों से ये साफ होता है कि कोरोना महामारी के बाद ग्रामीण महिलाओं के रोजगार न हासिल कर पाने की दिक्कत पेश आ रही है.  


जूनियर लेवल पर शहरों में घटी है महिलाओं में नौकरी की तलाश 


2019 में औसतन 95.2 लाख महिलाएं हर महीने एक्टिवली नौकरी तलाश करती देखी गई थीं.  2020 में ये आंकड़ा घटा और  83.2 लाख पर सिमट गया.  2021 में तो हर महीने नौकरी तलाश करने वाली महिलाओं की तादाद और भी कम हुई. इस दौरान केवल 65.2 लाख महिलाओं ने ही नौकरी की तलाश की.


सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) की 2022 की रिपोर्ट की माने तो , 2017 में 46 फीसद महिला आबादी देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रही थी.  वहीं 2022 में ये हिस्सेदारी घटकर 40 प्रतिशत ही रह गई. यानी पिछले पांच सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में महिला  कामगारों की भागीदारी में छह प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.


महिलाओं के रहने की जगह उनके ऑफिस या काम करने की जगह से दूर होना, उनकी सुरक्षा , आने-जाने की सहूलियतों का ना होना, पुरुषों के मुकाबले ज्यादा भेदभाव जैसे कारण हैं, जो जूनियर लेवल पर जॉब-मार्केट में महिलाओं की जगह और कम कर रहे हैं.


लेकिन जो शादीशुदा महिलाएं काम कर रही हैं वो अपने पति से ज्यादा कमाती हैं, इसका खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में हुआ . नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक देश में  91.3 फीसदी महिलाएं पति से ज्यादा कमाती हैं. इसमें बिहार सबसे आगे हैं, दिल्ली, झारखंड, ओड़िशा समेत कई राज्य बाद में आते हैं. झारखंड में यह आंकड़ा 40, ओडिशा में 33.6 और दिल्ली में 33.3 फीसदी है.


पति को ना कहने की आदत भी बनी महिलाओं की कामयाबी की वजह


इसकी सबसे बड़ी वजह महिलाओं का शादीशुदा जीवन में पति की बात को न कहना माना गया. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की महिलाओं में ये आदत सबसे ज्यादा है.  रिपोर्ट की मानें तो राज्य में 81.7 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जो शादीशुदा जीवन को लेकर निर्णय लेती हैं और पति को ना कहने की हिम्मत रखती हैं.  


पंजाब में ये आंकड़ा 73.2, हैं. राजस्थान में 79.2, अरुणाचल प्रदेश में 63.3, असम में 77.3, आंध्रप्रदेश में 79.3, कर्नाटक में 81.4, पश्चिम बंगाल में 79.5 फीसदी है. इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के आंकड़ों के बीच का फर्क बहुत कम है.


ग्रामीण क्षेत्र में जहां 81.4 फीसदी महिलाएं निर्णय लेती हैं वहीं शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा 84.8 का है. इस रिपोर्ट में ये बताया गया कि निर्णय लेने वाली महिलाओं में  शिक्षा का स्तर पर ज्यादा होता है. यानी पढ़ी लिखी महिलाएं बेहतर फैसले लेती हैं. 


घर से बाहर दफ्तर में महिलाएं ज्यादा कूल रहती हैं


पेन स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को घर से बाहर यानी दफ्तर में कम स्ट्रेस होता है. इस स्टडी में रिसर्चर ने एक हफ्ते में लगभग 122 लोगों में कोर्टीसोल हार्मोन (तनाव पैदा करने वाला हार्मोन) के स्तर की जांच की. रिसर्च के दौरान अलग- अलग समय उन के मूड के बारे में पूछा गया. 


रिजल्ट में ये सामने आया कि महिलाएं ऑफिस में घर के मुकाबले कम तनाव में रहती हैं.  शोधकर्ताओं के मुताबिक महिलाएं ऑफिस में ज्यादा खुश रहती हैं जबकि पुरुष अपने घर में ज्यादा खुश रहते हैं. इससे ये पता चला कि महिलाएं ऑफिस में खुश रहती हैं इसलिए वो कोई भी फैसला अच्छे ढंग से सोच समझ कर लेती हैं.


जॉब बदलने में माहिर होती हैं महिलाएं


पेन स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक जिन महिलाओं को उनकी जॉब से संतुष्टि नहीं होती है, वे जॉब स्विच करने में टाइम नहीं लगाती हैं. इस रिसर्च की मानें तो महिलाएं वहीं जॉब करना पसंद करती हैं जहां वो खुशी महसूस करें. यानी महिलाओं को ज्यादा स्ट्रेस में काम करना पंसद नहीं है.


इससे ये भी पता चलता है कि औरतें आज न सिर्फ अपनी जरुरत पूरी करने के लिए जॉब कर रही है साथ ही वो अपने मन की खुशी के लिए भी नौकरी कर रही हैं. ऐसी महिलाएं खुश रहने के साथ अपनी पहचान भी बना रही हैं.


वहीं पुरुष ऐसा नहीं करते हैं. अपनी जॉब से संतुष्ट न होने के बावजूद भी ज्यादातर पुरुष उसी कंपनी में काम करते रहते हैं. इस वजह से भी पुरुष ऑफिस में काम के समय खुश नहीं रह पाते हैं. 


पेन स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में ये दावा किया गया कि पुरुषों में ज्यादा अधिकार पाने की जंग भी चलती रहती है. ऑफिस के दौरान थोड़ी भी ऊंच-नीच को पुरुष अपने ईगो पर ले लेते हैं जबकि महिलाएं ऐसा नहीं करती हैं.


शायद यही वजह है कि आजादी के इतने सालों बाद नौकरियों में ऊंचे पोस्ट पर शहरी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से ज्यादा हो गई है. सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में कुल 52.1 प्रतिशत महिलाएं कामकाजी हैं  जबकि 45.7 प्रतिशत पुरुष कामकाजी हैं.  वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं नौकरियों में अभी भी पुरुषों से पीछे हैं.