नई दिल्ली: वित्त मंत्रालय ने कहा है कि जो व्यापारी-कारोबारी, निर्माता या रेस्त्रां मालिक पूरे देश को एक बाजार बनाने वाली कर व्यवस्था यानी जीएसटी के तहत कंपोजिशन स्कीम दायरे में आते हैं, उन्हे अपने संस्थान में किसी प्रमुख जगह पर ‘कंपोजिशन टैक्सेबल पर्सन’ का बोर्ड लगाना जरुरी होगा.
कंपोजिशन स्कीम दरअसल छोटे कारोबारियों को राहत देने के मकसद से लायी गयी योजना है. इसके तहत जिनका सालाना कारोबार 20 लाख रुपये से ज्यादा लेकिन 75 लाख रुपये से कम है, वो भाग ले सकते हैं. योजना के तहत, ट्रेडर्स को 1 फीसदी, उत्पादकों को 2 फीसदी और रेस्त्रां चलाने वालों को 5 फीसदी की दर से एकमुश्त टैक्स चुकाना होगा. बहरहाल, इस योजना में भाग लेने वालों को ना तो इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा मिलेगा और ना ही ये अपने ग्राहको से जीएसटी वसूल सकते हैं. एक बात और, एक राज्य से दूसरे राज्य में कारोबार करने वाले, जीएसटी की छूट वाले सामान का कारोबार करने वाले, आइसक्रीम व तंबाकू आधारित सामान बनाने वाले इस योजना में शामिल नहीं हो सकते. साथ ही रेस्त्रां करो छोड़ किसी और तरह की सेवा मुहैया कराने वालों के लिए ये योजना नहीं है.
जीएसटी पर मास्टर क्लास के तीसरे दिन वित्त मंत्रालय ने जानकारी दी कि कंपोजिशन स्कीम में शामिल होने वालों को अलग से टैक्स वसूलने की इजाजत नहीं होगी. राजस्व सचिव हसमुख अढ़िया ने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि अगर कंपोजिशन स्कीम वाले रेस्त्रां में बिल 100 रुपये का बनता है तो वो ग्राहक से 100 रुपये ही वसूलेगा. इस कीमत में हर तरह के टैक्स शामिल होंगे. ध्यान देने की बात ये है कि आप अगर बगैर एसी वाले रेस्त्रां में खाने को जाते हैं तो वहां 12 फीसदी और एसी वाले रेस्त्रां में 18 फीसदी की दर से जीएसटी लगेगा. और हां, शराब परोसने वाले किसी भी तरह के रेस्त्रां (एसी या बगैर एसी वाले) में खाने-पीने (शराब को छोड़कर) के बिल पर 18 फीसदी की दर से जीएसटी लगेगा, वहीं शराब पर वैट चुकाना होगा.
तो क्या कंपोजिशन स्कीम अपनाने वालों की जगह पर सामान सस्ता मिलेगा? अढ़िया ने कहा, बिल्कुल नहीं. वजह ये है कि ये कारोबारी जो कच्चा माल या इनपुट खऱीदेंगे, उनपर औरों की तरह उन्हे जीएसटी चुकाना ही होगा. अब उन्होंने जो टैक्स चुकाया है, वो उनकी लागत में शामिल हो जाएगा. लागत पर मार्जिन जोड़ने के बाद जो अंतिम कीमत बनेगी, उस पर 1, 2 या 5 फीसदी की तरह से जीएसटी चुकाना होगा. राजस्व सचिव के मुताबिक, ऐसे में आम व्यापारियों के मुकाबले जीएसटी व्यापारियों के यहां सामान सस्ता होने का मतलब ही नहीं बनता.
कंपोजिशन स्कीम में भाग लेने वालों को तीन महीने का रिटर्न एक बार दाखिल करना होगा जबकि दूसरे व्यापारियों को हर महीने. यही नहीं जीएसटी का भुगतान तीन महीने में एक बार करना होगा.