विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल लोगों से वादे करने लगे हैं. उसके साथ ही चुनावी वादों के रूप में लोक-लुभावन घोषणाओं का सिलसिला शुरू हो गया है, जिन्हें फ्रीबीज कहा जाता है. आलोचकों का कहना रहता है कि ये चुनावी वादे बाद में अक्सर अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा बोझ साबित होते हैं. अभी फिर से इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है.


इस बीच मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट में हरियाणा चुनाव का उदाहरण देकर बताया गया है कि किस तरह से चुनावी वादे बाद में बड़ा आर्थिक असर डाल सकते हैं. दरअसल हरियाणा में दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस ने फ्रीबीज को अपने-अपने घोषणापत्र में शामिल किया है. दोनों दलों ने चुनाव जीतने के लिए महिला मतदाताओ को लुभाने का प्रयास किया है.


भाजपा और कांग्रेस के चुनावी वादे


भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में वादा किया गया है कि अगर फिर से उसकी सरकार बनती है तो राज्य की सभी महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये दिए जाएंगे. कांग्रेस ने भी इसी तरह का वादा किया है. कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में सरकार बनाने पर राज्य की सभी महिलाओं को 2-2 हजार रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया है.


जीडीपी के 1.7 फीसदी के बराबर खर्च


मनी कंट्रोल की रिपोर्ट का कहना है कि महिलाओं को कैश देने के इस वादे पर अगर पार्टियां अमल करती हैं तो उससे राज्य सरकार के खजाने पर बड़ा बोझ आने वाला है. हरियाणा में 18 से 60 वर्ष के बीच की सभी महिलाओं को हर महीने 2-2 हजार या 21-21 सौ रुपये देने से जो खर्च आएगा, वह चालू वित्त वर्ष में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.7 फीसदी के बराबर होगा. खर्च का आंकड़ा जीएसटी से होने वाली कमाई के लगभग आधे के बराबर होगा.


साल भर में खर्च होंगे 20-21 हजार करोड़


हरियाणा में 5 अक्टूबर को चुनाव होने वाले हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में हरियाणा की जनसंख्या 3.08 करोड़ होने का अनुमान है. उनमें से करीब 1.45 करोड़ महिलाएं हैं. 18 से 60 साल की उम्र के दायरे में करीब 87 लाख महिलाएं आती हैं. हर महीने 2-2 हजार देने से एक महीने का खर्च 1,740 करोड़ रुपये पर पहुंच जाता है. एक साल में यह आंकड़ा बढ़कर 20,880 करोड़ रुपये हो जाता है. यानी सिर्फ इस एक चुनावी वादे को पूरा करने में राज्य के ऊपर 20 से 21 हजार करोड़ रुपये सालाना का खर्च आने वाला है.


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