भारत उभरती आकांक्षाओं का देश है. ऐसा देश, जिसकी आधी आबादी युवा है और खूब ऊर्जा व रफ्तार से तरक्की की राह पर दौड़ रहा है. देश के इस सफर में बैंकिंग जगत का बड़ा योगदान है. आज के समय में ग्लोबल बैंकिंग व फाइनेंस की दुनिया में भारत ने अपना अलग नाम बनाया है. इस मुकाम तक पहुंचाने में कुछ लोगों का योगदान बेहद खास रहा है और दीपक पारेख उन लोगों की पहली कतार के प्रमुख नाम हैं.


महीना बदलते ही बन जाएगा इतिहास


दीपक पारेख ने एचडीएफसी के साथ दशकों पुराने अपने सफर को आज अंतत: विराम कह दिया. वेटरन बैंकर पारेख ने ऐसे समय रिटायरमेंट लिया है, जब एचडीएफसी का नाम दुनिया के पांच सबसे बड़े बैंकों में शामिल होने वाला है. तारीख बदलते ही एचडीएफसी बैंक दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा. इसके साथ ही एक नया इतिहास भी बन जाएगा. इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब दुनिया के पांच सबसे बड़े बैंकों में एक नाम भारत से भी होगा.


जाते-जाते करा गए सबसे बड़ी डील


भारत के सबसे बड़े बैंकों में से एक एचडीएफसी बैंक और सबसे बड़े मोर्टगेज लेंडर एचडीएफसी के विलय से यह उपलब्धि हासिल होने जा रही है. यह विलय 1 जुलाई शनिवार से प्रभावी होने जा रहा है. यह सौदा करीब 40 बिलियन डॉलर का हुआ है और इसे भारत के कॉरपोरेट इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी डील बताया जा रहा है. मजेदार है कि यह इतिहास बनाने में भी दीपक पारेख का बड़ा रोल है.


भारत का फायदा, अमेरिका का नुकसान


दीपक पारेख का एचडीएफसी के साथ सफर करीब 45 साल पुराना है और इस दशकों के लंबे सफर में कई इतिहास बनते गए हैं. बात साल 1978 की है. युवा बैंकर दीपक पारेख को एक टॉप अमेरिकी बैंकर से ऑफर मिला और उन्होंने जाने का मन भी बना लिया. उसी समय हंसमुख पारेख ने उन्हें एचडीएफसी से जुड़ने का ऑफर दिया. एचडीएफसी का ऑफर अमेरिकी बैंकों की तुलना में आधे से भी कम था, लेकिन हंसमुख पारेख की एक बात ने युवा दीपक को यहीं रुकने पर मजबूर कर दिया. दरअसल अनुभवी हंसमुख युवा दीपक की प्रतिभा को पहचान रहे थे और उन्होंने साफ कहा था... भारत को तुम्हारी बैंकिंग प्रतिभा की जरूरत है.


दिग्गज बैंकर की ये आखिरी चिट्ठी


आज दीपक पारेख ने सफर को विराम कहते हुए एचडीएफसी के ग्राहकों, निवेशकों और शेयरधारकों को एक चिट्ठी लिखी है. वह इसमें बताते हैं कि किस तरह से होम लोन पोर्टफोलियो आने वाले दिनों में संयुक्त एचडीएफसी बैंक का भविष्य गढ़ने वाला है. वह कहते हैं कि लाखों लोगों का बैंकिंग का सफर होम लोन से अहम पड़ाव पर पहुंचता है और ऐसे में एचडीएफसी बैंक को बड़ी संख्या में ऐसे ग्राहक मिलने वाले हैं, जिनके पास एचडीएफसी का होम लोन है.


नारायण मूर्ति भी हो गए थे कायल


होम लोन की बात चली तो एक बड़ी अहम बात याद आ गई. इस कहानी में इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति भी अहम पात्र हैं. बात तब की है, जब नारायण मूर्ति अरबपति नहीं बने थे. आम मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा भारतीय की तरह वह भी अपने घर का सपना देख रहे थे. इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें भी होम लोन की जरूरत थी. लोन खोजते-खोजते वे एचडीएफसी पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात दीपक पारेख की टीम से हुई. नारायण मूर्ति इस बारे में बताते हैं कि होम लोन के बारे में उनकी पूरी धारणा ही बदल गई, क्योंकि एचडीएफसी ने उन्हें पूरी प्रक्रिया में हरसंभव सहायता की. भारत में होम लोन को आम लोगों तक पहुंचाने का श्रेय दीपक पारेख को दिया जाता है.


पारेख का विश्वास... आगे बढ़ेगी विरासत


अब सावल उठता है... दीपक पारेख के ऐतिहासिक सफर पर विराम लगने के बाद अब आगे क्या... तो इसका जवाब खुद दीपक पारेख से ही ले लीजिए. अपनी इस आखिरी चिट्ठी में पारेख लिखते हैं... ‘हमारे इतिहास को मिटाया नहीं जा सकता है. हमारी विरासत आगे बढ़ाई जाएगी.’


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