साल 2024 के लोकसभा चुनाव से लगभग 400 दिन पहले मोदी सरकार की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करेंगी. बजट से पहले पेश किए आर्थिक सर्वे में साल 2023-24 में भारत की विकास दर 6.8 फीसदी का अनुमान लगाया गया है. साल 2022-23 में विकास दर 7 फीसदी आंकी गई थी जबकि साल 2021-22 में 8.7 प्रतिशत रही थी.
बजट और आम जनता का सीधा वास्तव टैक्स को लेकर किए गए ऐलान होते हैं. उसकी बड़ी वजह ये है कि अब रेल बजट से अलग से पेश नहीं होता है और कई बार रेल विभाग को लेकर कई बड़े ऐलान बजट से हटकर भी किए जाते हैं. दूसरी ओर जीएसटी आने के बाद चीजों की कीमतें भी घटाने-बढ़ाने की भी घोषणा नहीं की जाती है.
कोरोनाकाल में टैक्स को लेकर कई तरह की रियायतें की गई थीं. महंगाई से जूझ रहे नौकरी-पेशा कर रहे लोगों को इस बार भी टैक्स को लेकर बहुत उम्मीदें हैं. नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह आखिरी पूर्ण बजट होगा.
खबर है कि इस बार के बजट में वित्त मंत्रालय मध्यम वर्ग यानी मिडिल क्लास को लाभ देने वाले प्रस्तावों पर विचार कर रहा है. कहा जा रहा है कि वित्त मंत्रालय विभिन्न, सरकारी विभागों की तरफ से भेजे गए ऐसे प्रस्तावों पर विचार कर रहा है, जिनसे मध्यम वर्ग के बड़े भाग को लाभ पहुंचे.
केंद्र सरकार ने अभी तक आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से अधिक नहीं की है. टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन के मुताबिक साल 2014 में सरकार ने आयकर में छूट की सीमा 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख कर दी थी. विशेषज्ञों के मुताबिक महंगाई के उच्च स्तर में वेतनभोगी मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए आयकर छूट सीमा और स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ाने की जरूरत है.
आय | नई दर | पुरानी दर |
सालाना 2.5 लाख रुपये तक | शून्य | शून्य |
2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक | 5 फीसदी | 5 फीसदी |
5 से 7.5 लाख रुपये तक | 10 फीसदी | 20 फीसदी |
7.5 लाख से 10 लाख रुपये तक | 15 फीसदी | 20 फीसदी |
10 लाख से 12.5 लाख रुपये तक | 20 फीसदी | 30 फीसदी |
12.5 से 15 लाख रुपये तक | 25 फीसदी | 30 फीसदी |
15 लाख से ज्यादा | 30 फीसदी | 30 फीसदी |
माना जा रहा है कि चुनावी वर्ष होने और एनडीए-2 के अन्तिम बजट में एक बड़े वर्ग को राहत मिल सकती है. मसलन रोजमर्रा के उपभोग की वस्तुओं को सस्ता करने समेत इंफ्रा के क्षेत्र में बड़े निवेश को मंजूरी दी जा सकती है ताकि रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सकें.
बता दें साल 2018 में भी मोदी सरकार ने 2019 के चुनाव को लेकर कई घोषणाएं की थीं. इसमें ग्रामीण विकास, कृषि से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कई सेक्टर में बजट का आवंटन किया गया था.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत जैसी योजना की शुरुआत की गई थी. जिसका चुनाव के दौरान जमकर प्रचार किया गया था. इसके साथ ही मध्यम वर्ग को टैक्स में भी राहत दी गई थी. हालांकि नौकरी-पेशा वाले लोगों को कोई खास फायदा नहीं दिया गया था. रोजगार बढ़ाने के लिए एमएसएमई सेक्टर के लिए बजट में ऐलान किया गया था.
इसके बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2019 के अंतरिम बजट में भी कई किसानों के लिए किसान सम्मान निधि नाम से योजना शुरू करने का ऐलान किया गया था. जिसमें साल भर में 6 हजार रुपये की मदद शामिल थी. इस योजना ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर का काम किया था. साथ ही पीएम आवास योजना (ग्रामीण) भी साल 2015 में शुरू हो चुकी थी.
क्या कहता है इस बार का आर्थिक सर्वे
- बजट सत्र 2022-23 के पहले दिन आर्थिक समीक्षा पेश की गई है. जिसके मुताबिक देश की आर्थिक वृद्धि दर 2023-24 में 6.5 प्रतिशत रहेगी. जबकि चालू वित्त वर्ष में यह सात प्रतिशत और बीते वित्त वर्ष 2021-22 में 8.7 प्रतिशत रही.
- सर्वे के मुताबिक भारत दुनिया में तीव्र आर्थिक वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा. वर्तमान मूल्य पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 11 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है. क्रय शक्ति समता (पीपीपी) आधार पर भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
- महामारी के दौरान और यूरोप में संघर्ष के बाद से अर्थव्यवस्था ने जो गंवाया था, उसे लगभग फिर से पा लिया है. जो थम गया था उसमें नई जान आ गयी है और जो मंद पड़ गया था, उसमें नई ऊर्जा आई है.
- स्थिर मूल्य पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अगले वित्त वर्ष में छह प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. यह वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर भी निर्भर करेगा.
- देश ने महामारी के बाद जो गति हासिल की है वह अपेक्षा के मुताबिक तेज था. अगले वित्त वर्ष वृद्धि को घरेलू मांग और पूंजी निवेश में तेजी से समर्थन मिलने की उम्मीद है.
- आरबीआई का चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान संतोषजनक सीमा से ऊपर है. यह न तो इतना अधिक है कि निजी खपत को रोके और न ही इतनी कम है कि निवेश के लिये प्रोत्साहन को कमजोर करे.
- अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति अभी बहुत ऊंची नहीं है. निर्यात क्षेत्र में वृद्धि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में नरम हुई है. वैश्विक स्तर पर वृद्धि दर धीमी होने, वैश्विक व्यापार में नरमी से निर्यात वृद्धि की रफ्तार कम हुई है. पीएम किसान, पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाओं ने गरीबी कम करने में योगदान दिया है.
- कर्ज वितरण, पूंजी निवेश चक्र, सार्वजनिक डिजिटल मंच का विस्तार और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाएं (पीएलआई), राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति और पीएम गतिशक्ति जैसी योजनाएं अर्थव्यवस्था को गति देंगी. मुद्रास्फीति में नरमी, कर्ज लागत कम होने से बैंक ऋण में वृद्धि वित्त वर्ष 2023-24 में तेज रह सकती है.
- छोटे कारोबारियों को कर्ज वृद्धि पिछले साल जनवरी से नवंबर के दौरान 30.5 प्रतिशत रही. पुरानी मांग के सामने आने और बिना बिके मकानों की संख्या कम होने के साथ घरों के दाम बढ़ रहे हैं. केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-नवंबर के दौरान 63.4 प्रतिशत बढ़ा है.
- भारत की आर्थिक मजबूती से वृद्धि की गति खोए बिना रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बाह्य मोर्चे पर उत्पन्न असंतुलन को दूर करने में मदद मिली है. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बाजार से लगातार पैसा निकालने के बावजूद शेयर बाजार ने 2022 में सकारात्मक रिटर्न दिया है.
- भारत ज्यादातर अर्थव्यवस्था के मुकाबले चुनौतियों से बखूबी निपटा है. वित्त वर्ष 2020-21 में गिरावट के बाद छोटे व्यापारियों के जीएसटी भुगतान में वृद्धि हुई है और यह अब महामारी पूर्व स्तर को पार कर गया है. यह सरकार के लक्षित हस्तक्षेप के सकारात्मक असर को बताता है. चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि की अगुवाई में निजी खपत और पूंजी निर्माण से रोजगार सृजन में मदद मिली है.
कड़वी बातें
- कर्ज की लागत लंबे समय तक ऊंची बनी रह सकती है, मुद्रास्फीति के लगातार उच्चस्तर पर रहने से ब्याज दर में तेजी का रुख का लंबा चल सकता है.
- रुपये की विनिमय दर में गिरावट को लेकर चुनौती बरकरार रहेगी. अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दर में और वृद्धि कर सकता है.
- चालू खाते का घाटा अभी बढ़ सकता है. इसका कारण जिंसों की कीमत ऊंची बनी हुई है. आर्थिक वृद्धि की गति मजबूत बनी हुई है. अगर चालू खाते का घाटा आगे बढ़ता है तो रुपये की विनिमय दर पर और दबाव आ सकता है.
- बाहरी मोर्चे पर स्थिति अभी काबू करने लायक और देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है. इससे चालू खाते के घाटे की भरपाई हो सकती है और रुपये में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिये विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में हस्तक्षेप किया जा सकता है.
- वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को लेकर जोखिम बढ़ा हुआ है. इसका कारण विकसित देशों में मुद्रास्फीति का बना होना है और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरों में वृद्धि का और संकेत दिया है.
(इनपुट- भाषा से भी)