New Car Buying: बिना लोन लिए कैसे खरीदें नई कार? इस तरह से बना सकते हैं प्लान
Car Buying Plan: नई कार खरीदने में एक ही बार में लाखों रुपये की जरूरत पड़ जाती है, इस कारण ज्यादातर लोगों को कार खरीदने के लिए लोन या फाइनेंस का सहारा लेना पड़ता है...
नई कार खरीदना, घर के बाद दूसरा सबसे बड़ा वित्तीय फैसला होता है. ऐसे में इसके लिए फाइनेंशियल प्लानिंग जरूरी है. कार खरीदने के लिए एक ही बार में बड़ी रकम की जरूरत पड़ती है. ऐसे में लोगों को नई कार खरीदने के लिए बैंकों से लोन लेना पड़ जाता है. हालांकि अगर थोड़ी सी प्लानिंग की जाए तो बिना बैंक से लोन लिए भी नई कार खरीदी जा सकती है.
नहीं होगा ईएमआई का झंझट
फाइनेंशियल प्लानिंग यानी पैसे बचाकर कार खरीदने के दो फायदे हैं. एक खर्चा कम होगा और दूसरा EMI का झंझट नहीं रहेगा. कार के लिए आप कितना इंतजार कर सकते हैं ये काफी मायने रखता है, क्योंकि इसी से निवेश की अवधि का पता चलेगा. कार खरीदने के लिए आप जितना लंबा वेट करेंगे आपका निवेश उतना ज्यादा बढ़ेगा.
5 साल में बढ़ जाएगी लागत
मान लीजिए आप जो कार खरीदने की सोच रहे हैं, उसकी कीमत आज 7 लाख रुपये है. 5 साल बाद उसकी कीमत 10 लाख रुपये से ज्यादा होगी. मतलब अगर आप वही कार 5 साल बाद खरीदना चाह रहे हैं तो आपको बिना लोन के खरीदने के लिए 10 लाख रुपये से ज्यादा का बंदोबस्त करना होगा. चूंकि टाइमलाइन 5 साल की है तो ऐसे में इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि मीडियम टर्म में इक्विटी म्यूचुअल फंड में उतार-चढ़ाव संभव है. ऐसे में आपको ऐसी जगह निवेश करना है, जहां उतार-चढ़ाव कम हो और महंगाई को मात देने वाला रिटर्न यानी 7-8 फीसदी का रिटर्न मिल सके.
एसआईपी से तैयार होगा फंड
SIP कैलकुलेटर के मुताबिक, 8 फीसदी के अनुमानित रिटर्न से आपकी SIP अगले 5 साल के लिए 14,018 रुपये, जबकि 10 फीसदी के रिटर्न से SIP की रकम 13,301 रुपये होनी चाहिए. म्यूचुअल फंड में रिटर्न मार्केट के हिसाब से घट-बढ़ सकता है. ऐसे में इंवेस्टमेंट गोल पर नजर रखें ताकि शॉर्टफॉल आने पर SIP की रकम या फंड में बदलाव किया जा सके. 5 साल एक लंबा पीरियड है. हो सकता है कि आप अपने बजट को बढ़ाना चाहें. इस सिचुएशन में बजट बढ़ने के साथ SIP बढ़ाने की जरूरत होगी.
आपको होगा दोतरफा फायदा
इस तरह से कार खरीदने पर आप अच्छे-खासे पैसों की बचत भी कर पाएंगे. बैंक से कोई भी लोन लेने पर ग्राहक मूल धन के ऊपर से ब्याज का भी भुगतान करते हैं, जो ईएमआई में शामिल रहती है. बैंक को ईएमआई देने के बजाय एसआईपी कर पैसे जुटाने से ब्याज के पैसे तो बचेंगे ही, ऊपर से एसआईपी पर मिलने वाले रिटर्न की कमाई भी हो जाएगी. यानी कुछ साल फैसले को टालने से आप डबल फायदा उठा सकते हैं.
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