Ideas of India 2.0: अगले साल भारत की आर्थिक वृद्धि दर की रफ्तार पर कुछ लगाम लगने की आशंका है. क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी (Dharmakirti Joshi, Chief Economist, CRISIL) ने यह आशंका व्यक्त की. उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर आने वाले समय में कम हो सकती है. उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में आ रही नरमी को इसका कारण बताया. जोशी ने कहा कि अगले साल भारत की आर्थिक वृद्धि दर की रफ्तार 7 फीसदी से कम रह सकती है.
इतनी रह सकती है वृद्धि दर
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व कार्यकारी निदेशक- भारत, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका - सुरजीत सिंह भल्ला (Surjit Singh Bhalla, Former Executive Director, IMF for India, Bangladesh, Bhutan and Sri Lanka) एबीपी के आइडियाज ऑफ इंडिया समिट (Ideas Of India) के क्राइसिस इन द ग्लोबल इकोनॉमी (Cisis In The Global Economy) सेशन में बातें कर रहे थे. ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ने की रफ्तार 7 फीसदी रहने वाली है. उन्होंने कहा कि अगले साल इस दर के कम होकर करीब 6 फीसदी रहने का अनुमान है. उन्होंने कहा कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं सुस्त पड़ रही हैं और इसका असर यानी स्पिलओवर भारत के ऊपर भी होने वाला है.
पिछले साल आईं ये चुनौतियां
दरअसल पिछला साल महंगाई और विभिन्न चुनौतियों के लिहाज से मुश्किलों भरा रहा था. अमेरिका और यूरोप की कई बड़ी अर्थव्यस्थाओं ने दशकों की सबसे ज्यादा महंगाई का सामना किया. फरवरी 2022 में यूक्रेन के ऊपर रूस के द्वारा हमला करने के बाद दुनिया के कई हिस्सों में तो खाने-पीने की चीजों का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया.
इन सेक्टर्स पर होगा ज्यादा असर
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री ने भी इस फैक्टर का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आम तौर पर विकसित देशों में आर्थिक सुस्ती का दौर देखने को मिल सकता है. अमेरिका और यूरोप में महंगाई को काबू करने के लिए तेजी से ब्याज दरें बढ़ाई गई हैं. इसके कारण इन अर्थव्यवस्थाओं के ऊपर स्लोडाउन का खतरा है. यह स्लोडाउन निर्यात के माध्यम से हम तक पहुंचेगा. सर्विस एक्सपोर्ट्स पर निर्भर करने वाले सेक्टर इसकी सबसे ज्यादा मार झेलने वाले हैं.
रेपो रेट हाइक पर ब्रेक की उम्मीद
भारत की बात करें तो क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री जोशी मानते हैं कि अब रेपो रेट बढ़ाए जाने यानी कर्ज की ब्याज दरों के महंगे होने का दौर थम जाना चाहिए. जोशी ने महंगाई का हवाला देते हुए बताया कि किस तरह रेपो रेट इसे काबू करने में मददगार है. साथ ही उन्होंने ये भी जोड़ा कि रिजर्व बैंक अब तक पर्याप्त मात्रा में ब्याज दरों को बढ़ा चुका है और अब इसे बढ़ाए जाने की रफ्तार पर ब्रेक लगने की उम्मीद है.
श्रम की गुणवत्ता बनेगी समस्या
उन्होंने भारत में गुणवत्ता युक्त श्रम की कमी की समस्या पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा, भारत का आधा श्रम बल सेकेंडरी स्कूल से कम शिक्षा प्राप्त है. उनके पास कोई कौशल नहीं है, इस कारण मुझे लगता है इस तरह की गुणवत्ता वाले कौशल के साथ अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दी जा सकती है. श्रम एक समस्या बन जाएगा. पूंजी होगी, सुधारों से दक्षता आ जाएगी, लेकिन श्रम की गुणवत्ता की समस्या रहेगी, जिसे दूर करने की जरूरत है.