ऐसे बहुत से लोग हैं जो ऐसी जगह ही अपना पैसा निवेश करते हैं जहां उन्हें रिटर्न तो अच्छा मिले ही साथ ही टैक्स छूट में भी काफी लाभ मिल सके, इसीलिए निवेशकर्ता निवेशक म्यूचुअल फंड में इक्विटी लिंक्ड इंवेस्टमेंट प्लान (ELSS), यूनिट लिंक्ड इंवेस्टमेंट प्लान (ULIP) और टैक्स सेविंग FD में निवेश करना पसंद करते हैं. हालांकि इन स्कीमों में टैक्स का छूट मिलता है लेकिन इसके लिए आपको एक तय समय सीमा तक निवेश करना ही होता है.वहीं अगर आप इस तय समय से पहले ही पैसा आपको टैक्स छूट में किसी तरह की रियायत नहीं मिलती बल्कि आपको ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ता है.


ब्याज़ मिलेगा लेकिन टैक्स से नहीं मिलेगी छूट
इस नियम के तहत अगर आप किसी ऐसी ही स्कीम में पैसा लगा रहे हैं जहां आपको टैक्स में छूट मिले तो आपको मैच्योरिटी पीरियड का खास ख्याल रखना होता है. अगर स्कीम का मैच्योरिटी पीरियड 5 साल है लेकिन उससे पहले ही अगर आप एफडी या फिर उस स्कीम से पैसा निकाल लेते हैं तो आपको इस पर मिलने वाला ब्याज़ तो मिलेगा लेकिन जो टैक्स पर आपको छूट मिल रही थी वो अब नहीं मिलेगी बल्कि आपको पूरे साल का टैक्स भरना होगा.


देना होगा इनकम टैक्स
अब सवाल ये कि ऐसी स्थिति में आपको कितना टैक्स देना होगा? तो इसका जवाब भी हम आपको देंगे. अगर आप किसी भी पॉलिसी को मैच्योर होने से पहले ही तुड़वा लेते हैं तो उस साल उस पूरी रकम को आपकी इनकम में जोड़ दिया जाएगा. ये वो इनकम होगी जिस पर आपको इनकम टैक्स छूट का लाभ मिला हो. इसके बाद प्राप्त ब्याज को भी आपकी इनकम में ही जोड़ दिया जाएगा। अब आप जिस भी इनकम टैक्स स्लैब के दायरे में आएंगे उसी के अनुसार आपको टैक्स देना होगा.


जानें सेक्शन 80C के बारे में ?
आयकर कानून की धारा 80C आयकर कानून, 1961 का हिस्सा है। जिसमें निवेश कर आयकर में छूट का दावा किए जाने वाले उन तमाम निवेश के नियमों का उल्लेख है. टैक्स बचाने के लिए बहुत से लोग इस तरह की पॉलिसी में निवेश करते हैं. लेकिन इस धारा के तहत आप कुल आय से 1.5 लाख रुपए की कटौती का दावा ही कर सकते हैं।