सरकार की ओर से पहले 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज और अब केंद्रीय कर्मचारियों  को खर्च करने के लिए दिए जा रहे 45 हजार करोड़ रुपये के इनडायरेक्ट पैकेज से कोरोना से चोट खाई अर्थव्यवस्था की सेहत नहीं सुधरने वाली. इसके लिए सरकार को शहरी गरीबों और आप्रवासी मजदूरों को पैसा देना होगा. आईएमएफ की चीफ इकनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ की मानें तो सरकार को और कदम उठाने होंगे.


'राहत के नाम पर लोन और क्रेडिट गारंटी स्कीम'


 आईएमएफ की चीफ इकनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में  कि भारत ने अपनी जीडीपी के  लगभग 7 फीसदी हिस्से के बराबर सहायता दी है लेकिन भारत के राहत पैकेज ज्यादातर लोन और क्रेडिट गारंटी स्कीम के तहत रहे हैं. जो राहत पैकेज दिया गया है उसमें से सिर्फ 2 फीसदी ही सीधे तौर पर खर्च करने लायक था. केंद्र ने लोगों तक पांच सौ रुपये का डायरेक्ट कैश ट्रांसफर किया है. ग्रामीण इलाकों में मु्फ्त खाद्यान्न बांटा गया है लेकिन इससे इकोनॉमी को रफ्तार मिलना मुश्किल है. शायद इसीलिए गोपीनाथ ने सरकार से शहरी इलाकों में गरीबों और प्रवासी मजदूरों को ज्यादा मदद की अपील की है.


गोपीनाथ ने कहा कि कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान जो वेलफेयर स्कीमें चलाई गई थीं, वे अब खत्म हो रही हैं, लिहाजा अब इनकी अवधि बढ़ाए जाने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा शहरी गरीब और प्रवासी मजदूर इसके दायरे में आ सकें.


'2022 से पहले पटरी पर नहीं आएगी ग्लोबल इकनॉमी' 


गोपीनाथ ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था 2022 तक पटरी पर नहीं लौटने वाली. कुछ देशों में तो 2023 तक भी हालात सामान्य नहीं होंगे. आत्मनिर्भर भारत के सवाल पर उन्होंने कहा कि सप्लाई चेन के लिए आयात और निर्यात दोनों जरूरी है. ग्लोबल सप्लाई चेन के बगैर आयात और निर्यात में कोई बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिलेगी. उन्होंने कहा कि भारत में हाल में किए गए कृषि और श्रम कानूनों के सुधार काफी प्रगतिशील हैं और इससे रोजगार में इजाफा होगा. इससे समृद्धि बढ़ेगी. इससे दुनिया में भारत का प्रभाव भी बढ़ेगा.


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