वैश्विक व्यापार में रणनीतिक अहमियत रखने वाली स्वेज नहर एक बार फिर से संकट की चपेट में है. स्वेज नहर के ऊपर संकट का बादल मंडराते ही वैश्विक व्यापार प्रभावित होने लग गया है और इससे ग्लोबल सप्लाई चेन में व्यवधान की आशंका तेज हो गई है. इस संकट से भारतीय व्यापारी भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं.


इस कारण पैदा हुआ ताजा स्वेज संकट


स्वेज नहर का ताजा संकट इजरायल और हमास के बीच महीनों से छिड़े युद्ध के कारण पैदा हो रहा है. दरअसल यमन का हाउती समूह स्वेज नहर से गुजरने वाले कमर्शियल जहाजों को निशाना बना रहा है. हाउती समूह के लड़ाकों के द्वारा स्वेज नहर से गुजरने वाले कुछ कमर्शियल जहाजों पर मिसाइल से हमले करने के बाद वैश्विक व्यापार का यह अहम मार्ग प्रभावित हो गया है और शपिंग कंपनियां इस रूट को अवॉयड करने लग गई हैं.


वैश्विक व्यापार में स्वेज नहर की अहमियत


स्वेज नहर की बात करें तो इसकी भौगोलिक स्थिति काफी रणनीतिक है. 192 किलोमीटर लंबी यह नहर एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा और सबसे कम समय में तय होने वाला व्यापारिक मार्ग साबित होती है. वॉर्टेक्सा के डेटा के अनुसार, 2023 के पहले छह महीने में स्वेज नहर के जरिए हर रोज करीब 92 लाख बैरल कच्चे तेल का ट्रेड हुआ है, जो कुल वैश्विक मांग के करीब 9 फीसदी के बराबर है. इसी नहर के जरिए दुनिया की जरूरत के करीब 4 फीसदी एलएनजी का ट्रेड होता है.


150 साल से ज्यादा पुरानी है नहर


स्वेज नहर भूमध्य सागर को स्वेज की खाड़ी और लाल सागर से जोड़ती है. यह एक मानव निर्मित नहर है, जिसे 10 साल की मेहनत के बाद 1869 में तैयार किया गया था. नवंबर 1869 में शुरुआत के बाद से स्वेज नहर वैश्विक व्यापार के लिए अहम बनी हुई है. स्वेज नहर में कभी ब्रिटेन और फ्रांस भी नियंत्रण रखते थे, लेकिन अब स्वेज नहर पर पूरी तरह से मिस्र का नियंत्रण है. अभी यमन के हाउती समूह के द्वारा लाल सागर यानी रेड सी में जहाजों को निशाना बनाया जा रहा है, जिससे स्वेज नहर से होने वाला व्यापार प्रभावित हो रहा है.


एक तिहाई बढ़ जाएगी यूरोप की दूरी


स्वेज नहर के डिस्टर्ब होने के बाद ट्रेडर्स के पास यही विकल्प बचता है कि एशिया से यूरोप के बीच आने-जाने के लिए अफ्रीका का पूरा चक्कर लगाएं. कृत्रिम स्वेज नहर अफ्रीका और एशिया को अलग करती है. इसक बंद होने के बाद भारतीय निर्यातकों को मुंद्रा पोर्ट से रोटरडैम तक जाने के लिए केप ऑफ गुड होप से गुजरना पड़ेगा, जिससे दूरी करीब एक तिहाई बढ़ जाएगी. स्वाभाविक है कि दूरी बढ़ने से समय भी ज्यादा लगेगा और इससे भारतीय निर्यातकों की लागत बढ़ जाएगी.


200 बिलियन डॉलर के निर्यात पर असर


एक अनुमान के अनुसार, स्वेज नहर से हर साल करीब 200 बिलियन डॉलर का भारतीय निर्यात होता है. स्वेज नहर के जरिए होने वाले भारतीय निर्यात में ऑटोमोटिव पार्ट, एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट, केमिकल, टेक्सटाइल, रेडिमेड गारमेंट, फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट आदि प्रमुख हैं. स्वेज नहर के इस ताजे संकट से भारत से इन चीजों का निर्यात प्रभावित हो सकता है.


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