Independence Day 2023 Special Space Economy of India: भारतीय अर्थव्यवस्था अब दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है और आने वाले दिनों में ये कहा जा रहा है कि ग्रीन एनर्जी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस भारत के आर्थिक विकास की नई कहानी गढ़ने वाली है तो उसमें एक और नाम जुड़ चुका है वो है स्पेस इकोनॉमी (Space Economy) का. कंसलटेंसी फर्म आर्थर डी लिटिल ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि 2040 तक का भारत की स्पेस इकोनॉमी का साइज बढ़कर 40 से 100 बिलियन डॉलर होने की क्षमता रखता है. एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक भारत का स्पेस इकोनॉमी का साइज बढ़कर 13 बिलियन डॉलर का हो जाएगा.
2040 तक 40 बिलियन डॉलर की स्पेस इकोनॉमी
मौजूदा समय में ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में 2 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ भारत के स्पेस इंडस्ट्री का साइज महज 8 बिलियन डॉलर है. भारत सरकार ने 2030 तक भारत की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 9 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है. इसके हिसाब से 2040 तक भारत का स्पेस इकोनॉमी 40 बिलियन डॉलर के होने का अनुमान है. जबकि ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी का साइज 2040 तक बढ़कर एक ट्रिलियन डॉलर का हो सकता है.
2019 में इसरो की कमर्शियल यूनिट न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड का गठन किया गया. यही इसरो के कमर्शियल दायित्वों की देखरेख करता है. न्यूस्पेस इंडिया के जरिए स्पेस इकोनॉमी में भारत की पकड़ बढ़ाने में मदद मिल रही है. ये लॉन्च व्हीकल के उत्पादन के लिए भी जिम्मेदार है. पिछले वित्त वर्ष में इस सरकारी कंपनी ने 17 अरब रुपये का रेवेन्यू हासिल किया था, जिसमें 3 अरब रुपये का लाभ था. न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने इस दौरान 52 इंटरनेशनल कस्टमर्स के लिए सैटेलाइट लॉन्चिंग सेवा उपलब्ध कराया है. 1999 के बाद से 34 देशों के लिए भारत ने 381 विदेशी सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं.
यादगार है भारत की स्पेस यात्रा
स्पेस के क्षेत्र में भारत की यात्रा बेहद सफल और यादगार रही है. इस 15 अगस्त 2023 को भारत अपनी आजादी की 77वीं वर्षगांठ बनाने जा रहा है. और इन 77 वर्षों में भारत के विकास का सफर जमीन पर नहीं बल्कि अंतरिक्ष में भी शानदार रहा है. भारत में स्पेस शब्द का नाम लेते ही जेहन में इसरो (Indian Space Research Organisation) का नाम जुबान पर आ जाता है. जिसके छत्रछाया और उसके वैज्ञानिकों के दम पर भारत ने स्पेस के मामले में जो सफलता हासिल की है वो अभूतपर्व है.
1969 में बनी इसरो
इसरो की स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के कार्यकाल में 1962 में हुई थी तब उसका नाम इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) हुआ करता था. वैज्ञानिक विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) के पहल पर स्पेस रिसर्च के लिए इसका गठन किया गया था जो इसके पहले चेयरमैन थे. 1969 में INCOSPAR का नाम बदलकर इसरो कर दिया गया और इसे डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के अंतर्गत ला दिया गया. 1972 में स्पेस कमीशन और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस का गठन किया गया और इसरो को इसमें शामिल कर दिया गया. इसरो का पहला प्रोजेक्ट सैटेलाइट टेलिकम्युनिकेशन एक्सपेरिमेंट प्रोजेक्ट (स्टेप) था, जिससे गांवों तक टीवी पहुंच पाई.
1975 में लॉन्च हुआ आर्यभट्ट सैटेलाइट
1975 में भारत का पहला आर्यभट्ट सैटेलाइट को सोवियत कॉसमॉस-3एम लॉन्च व्हीकल के जरिए लॉन्च किया गया. 1980 में भारत का पहला स्वदेसी सैटेलाइट जिसे लॉन्च किया गया उसका नाम रोहिणी-1 था. एसएलवी की सफलता के बाद इसरो अपना सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल का कंस्ट्रक्शन करना चाहता था जिससे उसके सैटेलाइट्स को पोलर ऑरबिट में रखा जा सके. इसके बाद पीएसएलवी (PSLV) पर काम शुरू हुआ. 1993 में पीएसएलवी से पहला लॉन्च फेल हो गया लेकिन 1994 में सफल रहा जिसके बाद रिर्मोट सेंसिंग और कम्यूनिकेशन सैटेलाइट्स को ऑरबिट में भेजा गया जिससे यूनिक डेटा हासिल करने में मदद मिली. आज इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी नेशनल स्पेस एजेंसी है.
एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च
15 फरवरी, 2017 को इसरो ने एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रचा है जबकि एक साथ सबसे ज्यादा सैटेलाइट भेजने का रिकॉर्ड पहले रूस के नाम था. दुनिया में सिर्फ छह अंतरिक्ष एजेंसियों के पास ही सैटेलाइट बनाने और छोड़ने की क्षमता है जिसमें इसरो शामिल है. भारत ने सफलतापूर्वक अपना खुद का नेविगेशन सैटेलाइट मौजूद है.
आर्थिक विकास के लिए सैटेलाइट्स है जरुरी
इसरो के सैटेलाइट्स क्लाइमेट चेंज (Climate Change) पर नजर रखते हैं. जिससे ग्लोबल वार्मिंग और दूसके एक्टिविटी का पता लगता है. इसरो मछुआरों की मदद के लिए रीयल टाइम सैटेलाइट का इस्तेमाल करता है. डिफेंस से जुड़े सैटेलाइट दुश्मनों पर पैनी नजर रखते हैं. चंद्रयान और मंगलयान अभियान की सफलता ने स्पेस सेक्टर में भारत की धाक बढ़ाने का काम किया है.
मिशन मंगलयान सफल
16 नवंबर 2013, को भारत ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से PSLV C-25 मार्स ऑर्बिटर (मंगलयान) के अंतरिक्ष के सफर की शुरुआत हुई. 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत इस तरह के अभियान में पहली बार में ही सफलता हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद इस तरह का मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. मंगल पर भेजा गया यह सबसे सस्ता मिशन था. इस मंगल मिशन के लिए भारत ने अमेरिका से सहायता मांगी थी तब अमेरिका ने इनकार कर दिया था. लेकिन भारतीय वैज्ञानिक इससे हताश नहीं हुए और सबकुछ भारत में तैयार किया और मंगल मिशन को सफल कर दिखाया. पिछले ही महीने इसरो ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया जो सफल रहा है. इसरो की बदौलत भारत का स्पेस प्रोग्राम आने वाले में और भी नई ऊंचाईयों को छूने वाला है.
मिशन गगनयान
गगनयान मिशन के तहत तीन भारतीय को 2023 से 2023 तक अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इसके लिए चार टेस्ट पायलट का चयन किया गया है और उनकी रूस में ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है. तीन भारतीय को तीन दिनों के लिए 400 किलोमीटर के ऑरबिट में भेजने और उन्हें वापस समुद्र में सुरक्षित वापस लैंडिंग कराने की योजना है. हाल ही में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया था कि गगनयान को 2023 के आखिर या 2024 में लॉन्च किया जाएगा. पहले आजादी के 75 वर्ष के पूरे होने पर लॉन्च करने की योजना थी लेकिन कोविड के चलते इसमें दो साल की देरी हो गई. इसरो गगनयान मिशन के बाद 2030 तक भारत के स्पेस स्टेशन के प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा है.
100 से ज्यादा स्पेस स्टार्टअप्स
स्पेस इकोनॉमी (Space Economy) में केवल इसरो ही नहीं बल्कि भारत की कई स्टार्टअप कंपनियां भी इस क्षेत्र में कदम रख चुकी हैं. मेक इन इंडिया (Make In Iddia) मिशन के तहत छोटे सैटेलाइट्स की डिमांड में जबरदस्त तेजी आने की उम्मीद है. 2025 तक भारत में सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग सेगमेंट भारत के स्पेस इकोनॉमी में दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाला सेगमेंट होगा. भारत में मौजूदा समय में 100 से ज्यादा स्पेसटेक स्टार्टअप्स काम कर रहे हैं. 2021 में स्पेसटेक में स्टार्टअप्स का निवेश 68 मिलियन डॉलर का रहा था जो उसके पहले साल के मुकाबले 196 फीसदी ज्यादा था. 2021 में 47 नए स्पेसटेक स्टार्टअप्स की स्थापना हुई. 2021 के बाद से लेकर अबतक भारत के स्पेस स्टार्टअप्स ने 200 मिलियन डॉलर का निवेश हासिल किया है. भारत सरकार भी स्पेस सेगमेंट में प्राइवेट प्लेयर्स को बढ़ावा दे रही है. सरकार का फोकस सैटेलाइट्स लॉन्चिंग के लागत में कमी लाना है. साथ ही सरकार की कोशिश है कि निवेश पर स्पेसटेक स्टार्टअप्स को रिटर्न भी मिले.