Oil Import Data: भारत में पेट्रोलियम उत्पादों और ईंधन की बढ़ती मांग के चलते कच्चे तेल की जरूरत बेतहाशा बढ़ रही है. देश में कच्चे तेल के लिए आयात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है और देश का घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन इस मामले में ज्यादा असरदार नहीं है, लिहाजा इसका इंपोर्ट इस बार काफी ज्यादा ऊपर चला गया है. देश की कच्चे तेल की जरूरत के लिए आयात पर निर्भरता वित्त वर्ष 2022-23 में 87.3 फीसदी पर आ गई है. इससे पिछले साल यानी वित्त वर्ष 2021-22 में ये 85.5 फीसदी पर रही थी. ये आंकड़ा पेट्रोलियम मंत्रालय की पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के द्वारा जारी किया गया है. 


पिछले सालों में कैसी रही है कच्चे तेल के आयात की निर्भरता


भारत की कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता के पिछले आंकड़ों को देखें तो ये साल 2020-21 में 84.4 फीसदी पर थी. साल 2019-20 में 85 फीसदी पर थी और 2018-19 में  83.8 फीसदी पर थी.


कैसे होती है आयात पर निर्भरता की गणना


कच्चे तेल के इंपोर्ट की लिमिट की कैलकुलेशन पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू खपत पर आधारित है. इसमें पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात शामिल नहीं है क्योंकि ये मात्राएं भारत की मांग का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं. हर साल 250 मिलियन टन से थोड़ा अधिक की शोधन क्षमता के साथ, भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और इसके टॉप इंपोर्टर्स में से एक है, वहीं पेट्रोलियम उत्पादों का शुद्ध एक्सपोर्टर भी है.


ट्रांसपोर्ट फ्यूल के लिए खासतौर पर जरूरत पड़ रही है


साल 2022-23 में भारत की पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू खपत साल-दर-साल आधार पर 10 फीसदी बढ़कर रिकॉर्ड 222.3 मिलियन टन हो गई है. ये खासतौर से परिवहन ईंधन (पेट्रोल और डीजल) की मजबूत मांग को दिखाता है. हालांकि, वर्ष के लिए घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन 1.7 प्रतिशत घटकर 29.2 मिलियन टन रह गया है. 2022-23 में कच्चे तेल का आयात सालाना आधार पर 9.4 फीसदी बढ़कर 232.4 मिलियन टन हो गया है. PPAC डेटा के मुताबिक कीमत के संदर्भ में, वित्त वर्ष के लिए कच्चे तेल का आयात 2021-22 में 120.7 बिलियन डॉलर से बढ़कर 158.3 बिलियन डॉलर हो गया है.


पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती मांग है बड़ी वजह


हालांकि भारत सरकार इंपोर्टेड कच्चे तेल पर भारत की बढ़ती निर्भरता को कम करना चाहती है, लेकिन पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण सुस्त घरेलू तेल उत्पादन सबसे बड़ी बाधा रही है. महंगे तेल के इंपोर्ट में कटौती करना भी बिजली की गतिशीलता, जैव ईंधन और ट्रांसपोर्ट के साथ-साथ उद्योगों के लिए अन्य वैकल्पिक ईंधन के लिए सरकार की प्रयासों का एक मौलिक उद्देश्य है. पिछले कुछ सालों में, सरकार ने रिसर्च और प्रोडक्शन कॉन्ट्रेक्ट्स को ज्यादा आकर्षक बनाकर और तेल और गैस की खोज के लिए विशाल क्षेत्र खोलकर घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं.


इंपोर्टेड कच्चे तेल पर बेतहाशा निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था को देश के विदेशी व्यापार घाटे, विदेशी मुद्रा भंडार, रुपये के एक्सचेंज रेट और महंगाई दर पर असर के अलावा ग्लोबल तेल मूल्य अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाती है.


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