Budget 2022: कोरोना महामारी के काल में दूसरी बार केंद्रीय बजट पेश किया जा रहा है. पिछली कई तिमाहियों में, सरकार ने आपूर्ति बाधाओं को दूर करने, खपत और मांग को बढ़ाने के लिए, एमएसएमई को हैंडहोल्डिंग प्रदान करने के लिए कई सुधार उपायों की घोषणा की है, जिन्होंने देश के व्यापक आर्थिक लचीलेपन को मजबूत किया है.  


हाल ही में एनएसओ द्वारा जारी वित्त वर्ष 2021-22 के लिए हाल ही में 9.2% की जीडीपी वृद्धि का अनुमान के साथ प्रमुख आर्थिक और व्यावसायिक संकेतों के प्रदर्शन का अनुमान दर्शाता है कि वित्त वर्ष 2020-21 में COVID-19 महामारी प्रभाव के कारण गंभीर संकुचन देखा गया उसे विकास की राह पर फिर से लाने में मदद मिली है.  इस गति को आगे बढ़ाने के लिए उद्योग, व्यापार और अर्थव्यवस्था को निरंतर सुविधाओं की आवश्यकता है. 


2022-23 का केंद्रीय बजट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आगे के मार्ग को परिभाषित करने और भारत के 138 करोड़ से अधिक लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण होगा. बजट का फोकस खपत की मांग को बढ़ानेपर होना चाहिए, जिसका उत्पादन संभावनाओं, निजी निवेश और रोजगार सृजन पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा. 


इस तरह के परिणाम प्राप्त करने के लिए, उद्योग के लिए परेशानी मुक्त ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से एमएसएमई के लिए, एमएसएमई के लिए व्यवसाय करने में आसानी, व्यवसाय करने की लागत को कम करना, उद्योग के लिए समान अवसर बनाना और लोगों और उद्योग के लिए समय पर न्याय सुनिश्चित करना. व्यापार करने की कम लागत और देश में समान अवसर देने से हमारे उद्योग और निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ेगी और उन वस्तुओं के आयात में कमी आएगी जहां भारत में ही उत्पादन की अपार क्षमताएं हैं. सरकार को व्यवसाय करने की लागत को कम करने पर ध्यान देना चाहिए जिसमें (1) पूंजी की लागत, (2) बिजली की लागत, (3) लॉजिस्टिक्स की लागत, (4) भूमि की लागत और भूमि की उपलब्धता और (5) श्रम की लागत, कुशल श्रम की उपलब्धता (6) अनुपालन की लागत शामिल है. 



देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में एमएसएमई क्षेत्र के बड़े योगदान को ध्यान में रखते हुए, इस क्षेत्र को मजबूत करना आर्थिक सुधार को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है. एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न प्रमुख पहलुओं में एक अभूतपूर्व भूमिका निभा रहे हैं, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान, ऑल इंडिया मैन्युफैकचरिंग ग्रॉस वैल्यू आउटपुट मैन्युफैकचरिंग में 37 फीसदी का योगदान, कुल निर्यात में 49% से अधिक का योगदान और 11.1 करोड़  लोगों को रोजगार देने के साथ अनुसंधान और नवाचार भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. सरकार द्वारा सुधारों और उपायों के माध्यम से, एमएसएमई रोजगार सृजन के साथ-साथ आगे बढ़ते हुए नए और जीवंत भारत की यात्रा में बहुत योगदान दे सकते हैं. 


हालांकि, सरकार ने पिछले 21 महीनों के दौरान COVID-19 के कठिन प्रभाव को कम करने के लिए MSME क्षेत्र के लिए कई सार्थक और प्रभावी सुधार उपाय किए हैं, MSME अभी भी उस दौर से निकलने का प्रयास कर रहा है और विशेष रूप से ओमिक्रोन से पैदा हुए अनिश्चितता के प्रभाव के कारण सरकार द्वारा निरंतर सहयोग की आशा रखता है. 


इस समय, आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) की समय-सीमा को एक और वर्ष के लिए 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया जाना चाहिए. टैक्स के मोर्चे पर हम कॉरपोरेट टैक्स में 30% से अधिक की दर से कमी कर 25 फीसदी करने के कदम की सराहना करते हैं. हालांकि, पूरे एमएसएमई क्षेत्र को लाभ पहुंचाने के लिए, प्रोपराइटरशिप/पार्टनरशिप के रूप में काम करने वाली एमएसएमई फर्मों पर टैक्स में कमी की जानी चाहिए. इसलिए, आगे जाकर इस प्रकार के व्यवसायों पर करों में कमी आनी चाहिए. ऐसे व्यवसायों के लिए, अधिकतम कर स्लैब को 25% तक लाया जाना चाहिए. 


साथ ही, नई इकाइयों के लिए, प्रभावी दर लगभग 17% है, इसलिए हम संस्थाओं को धारा 115BAB का लाभ लेने में सक्षम बनाने का सुझाव देते हैं, एक नई इकाई द्वारा निर्माण शुरू करने की समय सीमा को कम से कम 24 महीने की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है, अर्थात नई इकाई को 31 मार्च, 2025 तक विनिर्माण शुरू करने की अनुमति दी जाएगी. 


निर्यात को बड़ी गति देने के लिए एमएसएमई के लिए निर्यात से होने वाली आय को 3 साल के लिए कर मुक्त किया जाना चाहिए और वृद्धिशील निर्यात (वर्ष-दर-वर्ष) से ​​बड़े उद्यमों की आय को कर मुक्त किया जाना चाहिए. इससे लॉजिस्टिक्स की अतिरिक्त लागत और भारतीय निर्यातकों को होने वाली अन्य बाधाओं की आंशिक रूप से भरपाई करने में मदद मिलेगी.


पिछले 1 साल के दौरान कच्चे माल की कीमतों में काफी वृद्धि हुई है. यह कच्चे माल की कमी के साथ-साथ उत्पादन संभावनाओं और अनुमानित बिक्री मात्रा को प्रभावित कर रहा है. इसके अलावा, उच्च वस्तुओं की कीमतें छोटे व्यवसायों को संचालित करने के लिए एक चुनौती पेश कर रही हैं क्योंकि ये उनकी उत्पादन लागत को प्रभावित करते हैं और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करते हैं. इस समय, निर्माताओं के लिए कच्चे माल पर लागू मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) को 50% तक कम करने की आवश्यकता है.


कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ऐसा बेहतरीन प्रदर्शन करने वाला रहा है जिसने जिसने COVID अवधि में अपना लचीलापन दिखाया है. यदि सरकारी सुधारों द्वारा प्रभावी रूप से सुविधा प्रदान की जाए तो इस क्षेत्र में बहुत बड़ी संभावनाएं हैं. बजट में, कृषि-व्यवसाय के क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करने और कृषि अपव्यय (Agri Wastages) को कम करने के लिए कृषि बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाना चाहिए. 




सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर, कौशल विकास के साथ शिक्षा के दोहरे गुणों पर ध्यान केंद्रित करना और सुरक्षा के साथ बुनियादी स्वास्थ्य को दीर्घकालिक दृष्टि से जारी रखना चाहिए. हमारे जनसांख्यिकीय लाभ का फायदा उठाने के लिए शिक्षा के साथ-साथ कौशल विकास पर ध्यान देना समय की आवश्यकता है और भारत को आत्मनिर्भर बनने की अपनी यात्रा में समर्थन देने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान होगा।. सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में शिक्षा व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 3% के स्तर से ऊपर बनाए रखने की आवश्यकता है. 


महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की महत्वपूर्ण स्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में वृद्धि की आवश्यकता को उजागर करते हुए देश के स्वास्थ्य ढांचे को तेजी से फोकस में लाया है. इस समय, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर खर्च पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे देश को कोरोना वायरस के नए उभरते रूपों से लड़ने के लिए तैयार किया जा सके. 


सबसे आखिर में कहना चाहता हूं कि टैक्सपेयर्स की संख्या को बढ़ाने के लिए लोगों को आकर्षक टैक्स भुगतान लाभों के साथ टैक्स का भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. जैसे लगातार और ईमानदारी से टैक्स का भुगतान करने वालों को पेंशन देना (60 वर्ष से ऊपर उनकी सेवानिवृत्ति के बाद).  इससे देश में टैक्सपेयर्स की संख्या को बढ़ाने में मदद मिलेगी. 


टैक्स स्लैब का युक्तिकरण ( Rationalization) बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में जबरदस्त मांग पैदा करेगा, मुद्रास्फीति के दबाव को कम करेगा और उत्पादन के लिए उत्पादकों को प्रोत्साहित करेगा और देश में बढ़ते वर्कफोर्स के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगा. जीएसटी दरों को  5%, 10% और 15% के तीन प्रमुख स्लैब में युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिए और Sin वस्तुओं को 28% के स्लैब में रखना चाहिए. सिन गुड्स की श्रेणी में न्यूनतम आइटम होना चाहिए जिसपर पर 28% जीएसटी रेट हो. 


हमें उम्मीद है कि केंद्रीय बजट 2022-23 में की गई घोषणाएं अर्थव्यवस्था के विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों की नींव को मजबूत करके व्यापार और उद्योग को हैंडहोल्डिंग प्रदान करके भारतीय अर्थव्यवस्था के व्यापक आर्थिक लचीलेपन को और मजबूत करेगी, इससे  COVID-19 के कठिन प्रभाव से बाहर आने में मदद होगी साथ ही उनके लिए एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण की राह तैयार करेगी. 


( प्रदीप मुल्तानी, अध्यक्ष, PHDCCI द्वारा ये लेख लिखा गया है)