India's Export in July 2022: देश का निर्यात जुलाई में 2.14 फीसदी बढ़कर 36.27 अरब डॉलर हो गया है. वहीं, कच्चे तेल की कीमतों में 70 फीसदी की वृद्धि की वजह से व्यापार घाटा इसी महीने में लगभग तीन गुना होकर 30 अरब डॉलर पहुंच गया. जुलाई 2021 में व्यापार घाटा 10.63 अरब डॉलर था.
सालाना आधार पर कितना बढ़ा आयात?
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई महीने में आयात सालाना आधार पर 43.61 फीसदी बढ़कर 66.27 अरब डॉलर हो गया. इस महीने की शुरूआत में जारी प्रारंभिक आंकड़ों में जुलाई के दौरान निर्यात 0.76 फीसदी घटकर 35.24 अरब डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया था. जुलाई 2021 में यह 35.51 अरब डॉलर था.
4 महीनों में हुआ 48 फीसदी का इजाफा
वहीं, चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जुलाई अवधि के दौरान निर्यात 20.13 फीसदी बढ़कर 157.44 अरब डॉलर हो गया जबकि इन चार महीनों के दौरान आयात 48.12 फीसदी बढ़कर 256.43 अरब डॉलर पर पहुंच गया.
व्यापार घाटा भी बढ़ा
इस अवधि के दौरान व्यापार घाटा भी बढ़कर 98.99 अरब डॉलर पर आ गया. एक साल पहले इसी अवधि में यह 42 अरब डॉलर था. इस साल जुलाई में कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का आयात 21.13 अरब डॉलर रहा, जो जुलाई 2021 में 12.4 अरब डॉलर की तुलना में 70.4 फीसदी अधिक है.
गोल्ड आयात भी घटा
आंकड़ों के मुताबिक, पिछले महीने कोयले, कोक और ब्रिकेट का आयात दो गुना से अधिक बढ़कर 5.2 अरब डॉलर हो गया है. जबकि वनस्पति तेल का आयात 47.18 फीसदी बढ़कर दो अरब डॉलर हो गया. हालांकि, सोने का आयात 43.6 फीसदी घटकर 2.37 अरब डॉलर रहा जो जुलाई 2021 में 4.2 अरब डॉलर था.
किन सेक्टर में हुई पॉजिटिव ग्रोथ
इंजीनियरिंग सामान, पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न एवं आभूषण और दवा का निर्यात जुलाई 2022 में सालाना आधार पर घटा है. निर्यात के मोर्चे पर जिन क्षेत्रों में पॉजिटिव ग्रोथ हुई है, उनमें पेट्रोलियम उत्पाद, चमड़ा, इलेक्ट्रॉनिक सामान और कॉफी शामिल हैं. वहीं, इंजीनियरिंग, रत्न एवं आभूषण, प्लास्टिक, काजू तथा कालीन में गिरावट आई.
निर्यात कितना रहा?
आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2022 के लिए सेवाओं के निर्यात का अनुमानित मूल्य 24.91 अरब डॉलर रहा. यह सालाना आधार पर 28.69 फीसदी अधिक है. वहीं, आयात 15.95 अरब डॉलर रहने का अनुमान है, जो 40.02 फीसदी ज्यादा है.
जानें क्या है एक्सपर्ट की राय?
भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कोविड -19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्थाओं के खुलने के साथ वस्तुओं से सेवाओं की खपत में फिर से बदलाव आया है. मुद्रास्फीति ने सभी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है, जो लोगों की खरीद क्षमता कम करती है. इसके कारण कई अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की स्थिति बनी रही है जबकि कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाएं पहले से ही मंदी की चपेट में हैं.
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