आर्थिक विकास दर चौथी तिमाही में 6.1 फीसदी, चीन से पिछड़ा भारत
नई दिल्ली: भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार चीन से पीछे रह गयी है. 31 मार्च को खत्म हुए कारोबारी साल 2016-17 की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च के दौरान आर्थिक विकास दर 6.1 फीसदी रही, जबकि इस दौरान चीन की आर्थिक विकास दर 6.9 फीसदी रही थी. पूरे कारोबारी साल 2016-17 की बात करें तो आर्थिक विकास दर 7.1 फीसदी रही है जबकि 2015-16 में ये दर 8 फीसदी ऱही थी. सांख्यिकी विभाग विकास दर में आयी कमी के लिए केवल नोटबंदी को जिम्मेदार नहीं मानता. उसका कहना है कि गिरावट की कई वजहे हैं जिनमें से एक नोटबंदी भी है. विभाग ने ये भी माना कि अभी निवेश की रफ्तार धीमी है.
2016-17 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में विकास दर 7.9 फीसदी (पहले 7.2 फीसदी थी जिसमें संशोधन किया गया है) दर्ज की गयी, जबकि दूसरी तिमाही (जुलाई-सितम्बर) में 7.5 फीसदी, तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसम्बर) में 7 फीसदी और चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में 6.1 फीसदी रही.
विकास दर के ताजा आंकड़े औद्योगिक उत्पादन और थोक महंगाई दर के आंकलन में किए गए बदलाव के मुताबिक ही है. हाल ही में औद्योगिक उत्पादन और थोक महंगाई दर के आंकलन के लिए आधार वर्ष 2004-05 की जगह 2011-12 को अपनाया गया, ताकि आंकडे ज्यादा वास्तविक लगे. इस फेरबदल को ध्यान में रखते हुए विकास दर के पुराने आंकड़ों में भी बदलाव किए गए हैं. इस तरह अगर मोदी सरकार के तीन सालों के कार्यकाल को देखे तो 2014-15 में विकास दर 7.5 फीसदी दर्ज की गयी जो 2015-16 में बढ़कर 8 फीसदी पर पहुंची जबकि 2016-17 में 7 फीसदी.
चौथी तिमाही में अगर अलग-अलग क्षेत्रों की विकास दर की बात करें तो बागवानी और मत्स्य पालन समेत कृषि क्षेत्र में ये दर 5.2 सदी रही जबकि खनन में 6.4 फीसदी और मैन्युफैक्चरिंग में 5.3 फीसदी दर्ज की गयी. बीते साल मानसून की बेहतर रफ्तार रहने से खेती बाड़ी की स्थिति बेहतर रही. जानकारों की मानें तो इस साल अभी तक मानसून सामान्य रहने का अनुमान है, ऐसे में कृषि की स्थिति अच्छी रह सकती है जिसका फायदा पूरे अर्थव्यवस्था को मिलेगा.
हालांकि जानकारों का कहना है कि निवेश की रफ्तार उम्मीद के मुताबिक नहीं रही है. खुद सांख्यिकी मंत्रालय ने भी इस बात को स्वीकार किया. निवेश की रफ्तार कम रहने का मतलब ये हुआ कि नए उद्योग धंधे लगाने या मौजूदा उद्योग धंधों के विस्तार की गति धीमी है. ऐसे में रोजगार के नए मौके तैयार होने पर भी असर पड़ेगा. मोदी सरकार पर ये लगातार आरोप लगता रहा है कि विकास की रफ्तार भले ही तेज हुई हो, लेकिन रोजगार देने के मौके उम्मीद से काफी कम बने हैं.