पूर्वी यूरोप में रूस और यूक्रेन के बीच साल भर से ज्यादा समय से युद्ध चल रहा है. इस युद्ध ने पूरी दुनिया पर बहुत असर डाला है, खासकर तेल व पेट्रोलियम के बाजार में तो बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. भारत और चीन जैसे देशों को रूस से डिस्काउंट पर मिल रहे कच्चे तेल का फायदा हुआ है. दूसरी ओर रूस के ऊपर अमेरिका व सहयोगी देशों के द्वारा लगा गए कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के चलते कई पक्षों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, जिनमें कुछ भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं.


लाभांश के रूप में हुई है मोटी कमाई


न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद लगे प्रतिबंधों की वजह से भारतीय पेट्रोलियम कंपनियों के करीब 2,500 करोड़ रुपये रूस में फंसे हुए हैं. भारतीय कंपनियों को यह कमाई लाभांश के रूप में हुई है. रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से इस कमाई को भारत ट्रांसफर करना संभव नहीं हो पा रहा है. ऐसे में ये रूस में ही बैंक खाते में पड़े हुए हैं.


रूस में इन कंपनियों का इतना निवेश


भारत की सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों ने रूस में चार विभिन्न संपत्तियों में हिस्सेदारी खरीदने के लिए 5.46 अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है. इन तेल एवं गैस क्षेत्रों के परिचालन से होने वाले लाभ पर भारतीय कंपनियों को लाभांश मिलता है, लेकिन पिछले साल यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद लगे आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से भारतीय पेट्रोलियम कंपनियों को अब तक यह लाभांश नहीं मिल पाया है.


स्विफ्ट से बाहर हो गए हैं रूसी बैंक


ऑयल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक रंजीत रथ ने इस बारे में बताया कि लगातार इन परियोजनाओं से लाभांश के रूप में कमाई होती रहती थी, लेकिन इस बार यह रूस के बैंक खातों में ही पड़ी हुई है. इसकी वजह यह है कि रूसी बैंकों को पैसों के लेन-देन की वैश्विक प्रणाली स्विफ्ट से प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसके अलावा रूस की सरकार ने डॉलर में भुगतान पर भी पाबंदियां लगाई हुई हैं.


इन कंपनियों के फंसे हैं पैसे


यही वजह है कि भारतीय पेट्रोलियम कंपनियों की रूस में 30 करोड़ डॉलर यानी करीब 2,500 करोड़ रुपये की लाभांश आय फंसी हुई है. जिन कंपनियों के पैसे फंसे हैं, उनमें ऑयल इंडिया, इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोरिसोर्सेज लिमिटेड शामिल हैं. भारत पेट्रोरिसोर्सेज लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. की इकाई है. ओएनजीसी विदेश लिमिटेड को भी करीब इतना ही लाभांश मिलने की उम्मीद है. भारतीय कंपनियां रूस में फंसे इस पैसे को लाने के विभिन्न उपायों पर गौर कर रही हैं.


युद्ध के चलते आए ये बड़े बदलाव


रूस ने पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर हमला कर दिया था. उसके बाद से दोनों देशों के बीच आमने-सामने की लड़ाई चल रही है, लेकिन करीब 15 महीने बीत जाने के बाद भी युद्ध निर्णायक स्थिति में नहीं है. यूक्रेन को अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों से सीधा समर्थन मिल रहा है. अमेरिका और उसके कई सहयोगी देशों ने यूक्रेन पर हमला करने के कारण रूस के ऊपर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करना है. इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप जर्मनी जैसे कई यूरोपीय देशों ने रूस से ईंधन की खरीद कम की है, जो पारंपरिक रूप से ईंधन की जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहते आए हैं. इसकी काट के लिए रूस भारत और चीन जैसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ताओं को डिस्काउंट पर बिक्री कर रहा है.


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