2020-21 में खुदरा महंगाई दर 3.9 फीसदी रहने का अनुमान, मौजूदा तेजी अस्थाई- इंडिया रेटिंग
इंडिया रेटिंग ने कहा है कि महंगाई दर में हाल की तेजी का कारण खाने-पीने के दाम में उछाल है. हालांकि, यह अस्थायी है.महंगाई दर में हाल में आई तेजी ज्यादा लंबे समय तक नहीं चलेगी. इंडिया रेटिंग ने कहा कि रिजर्व बैंक आने वाले समय में प्रमुख नीतिगत दरों को पहले जैसा रख सकता है.
नई दिल्लीः फिच समूह की कंपनी इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च ने बुधवार को कहा कि देश में महंगाई दर में हाल में आई तेजी अस्थायी है और आने वाले समय में इसमें नरमी की उम्मीद है. एजेंसी के मुताबिक 2020-21 में खुदरा महंगाई की औसत दर 3.9 फीसदी और थोक महंगाई दर 1.3 फीसदी रहने का अनुमान है.
चालू वित्त वर्ष 2019- 20 में खुदरा महंगाई दर के औसतन 4.4 फीसदी तथा थोक महंगाई दर के 1.4 फीसदी रहने की आशंका व्यक्ति की जा रही है. इंडिया रेटिंग ने कहा कि महंगाई दर में बढ़ोतरी को देखते हुए नीतिगत दर में कटौती की संभावना नहीं है. रिजर्व बैंक आने वाले समय में प्रमुख नीतिगत दर को पहले जैसा रख सकता है. रिजर्व बैंक छह फरवरी को अगली मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करेगा.
बता दें कि खुदरा महंगाई दर दिसंबर 2019 में 7.35 फीसदी पर पहुंच गयी जो इससे पिछले महीने नवंबर में 5.54 फीसदी थी. वहीं थोक महंगाई दर दिसंबर 2019 में बढ़कर 2.59 फीसदी पहुंच गयी जो नवंबर में 0.58 फीसदी थी.
इस बारे में रेटिंग एजेंसी के डायरेक्टर (पब्लिक फाइनेंस) और चीफ इकोनॉमिस्ट सुनील कुमार सिन्हा ने कहा कि महंगाई दर में हाल की तेजी का कारण खाने-पीने के दाम में उछाल है. हालांकि, यह अस्थायी है. एक्सपोर्ट के बारे में इंडिया रेटिंग ने कहा कि ग्लोबल अर्थव्यवस्था को लेकर माहौल चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. इसका कारण अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव और कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा संरक्षणवादी नीति को अपनाया जाना है.
रेटिंग एजेंसी के मुताबिक इसके चलते चालू वित्त वर्ष में वस्तु और सेवा निर्यात में 2 फीसदी गिरावट की आशंका है. हालांकि, उसने कहा कि अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता में हाल की सफलता को देखते हुए अगले वित्त वर्ष में वैश्विक स्तर पर स्थिति कुछ बदल सकती है. इसका असर भारत के वस्तु और सेवा निर्यात पर भी पड़ेगा और इसमें 7.2 फीसदी की वृद्धि हो सकती है.
इससे चालू खाते का घाटा मामूली रूप से घटकर 32.7 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.1 फीसदी) रह सकता है. चालू वित्त वर्ष में इसके 33.9 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.2 फीसदी) रहने का अनुमान है.