Savings in India: बज रही खतरे की घंटी, भारतीय परिवारों की बचत घटी, घर और गाड़ियों के लिए जमकर ले रहे कर्ज
Family Savings Decline: भारतीय परिवारों की बचत पिछले दो साल में तेजी से कम हुई है और उन पर कर्ज बढ़ा है. हालांकि, आरबीआई के अनुसार, फिलहाल भारत का डेट सर्विस रेश्यो दुनिया के बड़े देशों से बेहतर है.

Family Savings Decline: भारत को बचत का देश कहा जाता रहा है. बचत की इसी आदत के चलते भारत ने 2008 की ग्लोबल आर्थिक मंदी जैसी विकराल समस्याओं को भी आसानी से झेल लिया था. मगर, अब हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं. भारतीय परिवारों की बचत लगातार घट रही है. मगर, उनके पास घरों और गाड़ियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. हालांकि, अर्थशास्त्रियों के अनुसार अभी भी भारतीय परिवारों की कर्ज चुकाने की क्षमता दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा है.
भारतीय परिवारों की शुद्ध बचत का आंकड़ा 4 फीसदी कम हुआ
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो साल में भारतीय परिवारों की शुद्ध बचत का आंकड़ा लगभग 4 फीसदी कम हुआ है. वित्त वर्ष 2022-23 में यह जीडीपी का 5.1 फीसदी रहा है. जबकि 2020-21 में यही आंकड़ा 11.5 फीसदी था. फिलहाल यह लंबे समय से चले आ रहे औसत आंकड़े 7 से 7.5 फीसदी से काफी नीचे जा चुका है. भारत के लोग अब रियल एस्टेट और गाड़ियां खरीदने पर ज्यादा पैसा खर्च कर रहे हैं. इसके चलते उन पर कर्ज बढ़ा है. फिर भी भारतीयों की कर्ज चुकाने की क्षमता अभी दुनिया के बड़े देशों से ज्यादा है.
बचत का इस्तेमाल प्रॉपर्टी और वाहन खरीदने में कर रहे भारतीय
बचत के घटने से मुश्किल समय में भारतीय परिवार दिक्कत में फंस सकते हैं. फिर भी वह अपने ऊपर तेजी से कर्ज बढ़ाते जा रहे हैं. उनकी वित्तीय देनदारियां वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी के 5.8 फीसदी पर पहुंच गई हैं. वित्त वर्ष 2021-22 में यही आंकड़ा 3.8 फीसदी था. हालांकि, रिजर्व बैंक के हालिया विश्लेषण के अनुसार, बचत घटने का आंकड़ा फिलहाल स्थिर है. इस बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारतीय परिवार अपनी बचत का इस्तेमाल प्रॉपर्टी और वाहन बनाने में कर रहे हैं.
भारत का डेट सर्विस रेश्यो मार्च, 2023 में 6.7 फीसदी
रिपोर्ट के अनुसार, भारत का डेट सर्विस रेश्यो मार्च, 2023 में 6.7 फीसदी था. अमेरिका में यही आंकड़ा 7.8 फीसदी, जापान का 7.5 फीसदी, ब्रिटेन का 8.5 फीसदी, कनाडा का 14.3 फीसदी और कोरिया में 14.1 फीसदी था. दुनिया के कई उभरते देशों से भी भारत की स्थिति इस मामले में बेहतर है.
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