Chinese Investment: चीन से निवेश पर नरम हुई सरकार, सालों बाद चाइनीज कंपनियों के इन प्रस्तावों को मिली हरी झंडी
Investment from China: सीमा पर सैन्य झड़प होने के बाद भारत सरकार ने चीन की कंपनियों और निवेश पर सख्त रुख अपना लिया था. अब रुख में कुछ नरमी आती दिख रही है...
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चीन की कंपनियों के द्वारा भारत में निवेश की फिर से शुरुआत हो सकती है. खबरों के अनुसार, भारत सरकार ने सालों के अंतराल के बाद चीन से आने वाले निवेश के प्रस्तावों को लेकर अपने रुख में बदलाव किया है. सरकार ने हाल ही में कुछ प्रस्तावों को मंजूरी दी है.
चीन के 5-6 प्रस्तावों को मंजूरी की खबरें
ईटी की एक रिपोर्ट में मामले से जुड़े लोगों के हवाले से दावा किया गया है कि सरकार ने हाल ही में चीन के कुछ निवेश प्रस्तावों को मंजूरी दी है. यह मंजूरी इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए है. इंटर-मिनिस्ट्रियल पैनल ने ऐसे 5-6 प्रस्तावों को मंजूर किया है. अगर यह दावा सच है तो सालों के अंतराल के बाद भारत सरकार से चीन के निवेश प्रस्ताव को मंजूरी मिली है.
4 साल बाद हुआ रुख में बदलाव
अभी से लगभग 4 साल पहले भारत और चीन के संबंधों में उस समय खटास आ गई थी, जब गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी. उसके बाद भारत सरकार ने चीन की कंपनियों पर अपना रुख कड़ा कर लिया था. पहले से मौजूद चीन की कंपनियों की स्क्रूटनी बढ़ा दी गई थी, जबकि निवेश के नए प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत सरकार ने जो कड़ा रवैया अपनाया था, उसमें अब जाकर पहली बार ढील के संकेत मिल रहे हैं.
इन प्रमुख प्रस्तावों का मिली हरी झंडी
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने जिन निवेश प्रस्तावों को मंजूरी दी है, उनमें चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर लक्सशेयर का नाम शामिल है. लक्सशेयर एप्पल के लिए वेंडर का भी काम करती है. उसके अलावा एक प्रस्ताव माइक्रोमैक्स की पैरेंट कंपनी भगवती प्रोडक्ट्स और चाइनीज कंपनी हुआकिन टेक्नोलॉजीज के बीच जॉइंट वेंचर बनाने का है. जेवी में चीनी कंपनी के पास माइनॉरिटी स्टेक होगा.
इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री का था प्रेशर
भारत सरकार ने जिन अन्य प्रस्तावों को मंजूर किया है, उनमें कुछ ताईवान बेस्ड कंपनियों के हैं, जो या तो हांगकांग शेयर बाजार में लिस्टेड हैं या वहां उनका ठीक-ठाक निवेश है. वहीं कुछ प्रस्ताव पूरी तरह से चाइनीज कंपनियों के हैं. बताया जा रहा है कि सरकार के ऊपर इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री से दबाव था कि चीन के कुछ प्रस्तावों को मंजूरी दी जाए, ताकि भारत में सप्लाई चेन को मजबूत बनाया जा सके.
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