Medicines Price: देश में दवाईंयों और मेडिकल का खर्च पहले ही ज्यादा है. ऐसे में आम लोगों को एक और झटका लग सकता है. क्योंकि फॉर्मा इंडस्ट्री कच्चे माल के कीमतों में बढ़ोतरी का सामना कर रहा है. TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी से लेकर अभी तक इंडस्ट्रीज ने 100 फीसदी तक कुछ दवाओं के कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी है. 


सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स में सुधार के बाद भी कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने उद्योग में परेशानी की स्थिति पैदा की है. चीन से आयात होने वाले एजिथ्रोमाइसिन और एमोक्सिसिलिन समेत हाई वैल्यू वाली एंटीबायोटिक दवाओं में इजाफा देखा गया है. टीओआई की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कुछ दवाएं ऐसी भी हैं, जहां भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है. वहीं विटामिन बी और डी समेत अन्य विटामिन की कीमतें भी चीन के आयात पर निर्भर हैं. 


इन दवाओं के दाम हुए दोगुना 


रिपोर्ट के मुताबिक, प्रमुख एंटीबायोटिक दवाओं के अलावा, एंटी-टीबी रिफैम्पिसिन और एंटी-डायबिटीज मेटफॉर्मिन भी महामारी से पहले की तुलना में दोगुना दाम पर बिक रहे हैं, क्योंकि इनका आयात विदेशों से बड़ी मात्रा में किया जाता है और पिछले कुछ साल में आयात लागत में बढ़ोतरी हुई है. 


किन कारणों से बढ़ सकता है आपका मेडिकल बिल 


पहला कारण तो यही माना जा रहा है कि दवाओं के बनने में यूज किया जाने वाले कच्चे माल की कीमतों में तेज बढ़ोतरी हो रही है, क्योंकि रूस और यूक्रेन वार ने आयात कारोबार को प्रभावित किया है. वहीं दूसरा कारण महंगाई दर में बढ़ोतरी भी माना जा रहा है. इसके अलावा, कुछ एजेंट भी उत्पादों के आयात को भी प्रभावित कर रहे हैं. 


चीन से आयात होने वाले दवाएं बढ़ी 


पिछले कुछ सालों में लागत केवल उन दवाओं के लिए बढ़ी है जिनके लिए कच्चा माल चीन से आयात किया जाता है. खासकर  बुखार और दर्द निवारक दवा, पेरासिटामोल, जीवन रक्षक एंटीबायोटिक मेरोपेनेम और मधुमेह रोधी मेटफॉर्मिन जैसी कुछ दवाओं की एपीआई कीमतों में 200 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. ऐसी दवाओं के लिए भारत चीन पर पूरी तरह से निर्भर है. 


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