नई दिल्लीः विमानन बाजार की सबसे बड़ी कंपनी इंडिगो ने एयर इंडिया में हिस्सेदारी खरीदने के लिए औपचारिक तौर पर प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है. बुधवार को ही केद्रीय मंत्रिमंडल ने एयर इंडिया के विनिवेश को सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दी. अब एक कमेटी बनायी गयी है जो विनिवेश के तौर-तरीके के बारे में सुझाव देगी और फिर उस पर नए सिरे से कैबिनेट विचार करेगी.


इस बीच, बाजार सूत्रोें से मिली जानकारी के मुताबिक, इंडिगो की दिलचस्पी एयर इंडिया और एलायंस एयर के अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों में है. इंडिगो के पहले टाटा समूह की भी एयर इंडिया में हिस्सा लेने की दिलचस्पी सुर्खियां बटोर चुकी है. लेकिन इस बात की पुष्टि अब तक न तो सरकार ने की है और न ही टाटा समूह ने. उधर, इंडिगो ने ये कहकर इस मामले पर कुछ भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि उनके लिए ‘मौन अवधि यानी साइलेंट पीरियड’ चल रहा है. नियमों के मुताबिक, वित्तीय नतीजों के ठीक पहले कंपनी पर किसी तरह का बयान देने पर पाबंदी होती है. हालांकि विमानन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने एबीपी न्यूज से बातचीत में इंडिगो की ओर से दाखिल प्रस्ताव की पुष्टि की थी.


इंडिगो एयरलाइन्स और एयर इंडिया
2005 से आसमान में पंख फैलाने के बाद इंडिगो के बेड़े में आज 135 विमान है. ये घरेलू बाजार के 41 फीसदी भी ज्यादा हिस्से पर काबिज है. दूसरी ओर एयर इंडिया के बेड़े में 118 विमान है जबकि बाजार हिस्सेदारी महज 13 फीसदी. एयर इंडिया का कुल घाटा 50 हजार करोड़ रुपये से भी ऊपर पहुंच चुका है. साथ ही कंपनी का कर्ज करीब 52 हजार करोड़ रुपये है. परिसंपत्ति की बात करें तो एय़र इंडिया के पास करीब 20 हजार करोड़ रुपये के विमान हैं जबकि जमीन-भवन और दूसरी संपत्तियो को मिलाकर ये रकम 26 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचती है. एय़र इंडिया की बड़े परेशानी कर्ज को लेकर को है. इसीलिए चर्चा हो रही है कि विनिवेश के पहले आधा कर्ज माफ कर दिया जाए.


इस बीच, जयंत सिन्हा ने जानकारी दी कि कई घरेलू और अतंरराष्ट्रीय विमानन कंपनियों ने हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखायी है. “इंडिगो पहली कंपनी है जिसने औपचारिक तौर पर प्रस्ताव भेजा है,” सिन्हा ने कहा. साथ ही उन्होंने जोड़ा कि एयर इंडिया के ब्रांड नाम से आर्थिक और भावनात्मक लगाव है और कोशिश होगी कि मालिकाना हक बदले जाने के बावजूद एय़र इडिंया ब्रांड नाम बना रहे.


दूसरी ओर विमानन सचिव आर एन चौबे मानते हैं कि एयर इंडिया की ‘वैल्यू’ काफी है और इसमें कई खरीदार है. उन्होंने कहा कि पिछले तीन साल में एय़र इंडिया के प्रदर्शन में खासा सुधार हुआ है और अब ये ऑपरेटिंग प्रॉफिट दर्ज करा रही है. चौबे ने भी ये जानकारी दी कि सरकार नए खरीदार से एयर इंडिया का ब्रांड नाम बनाए रखने को कह सकती है.


गौरतलब है कि एयर इंडिया से सरकार के निकलने की चर्चा काफी समय से गरमायी है और इसे तब बल मिला जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बयान दिया कि महज 14 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के लिए 55.000 करोड़ रुपये खर्च करने का कोई औचित्य नहीं बनता. जेटली का ये बयान ऐसे समय में आय़ा जब नीति आयोग ने भी एयर इंडिया के विनिवेश के बारे में सिफारिश की.



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