Inflation Data: जानिए क्यों है होलसेल और खुदरा महंगाई दर में दोगूने का अंतर?
Inflation Rate: महंगाई दर का निर्धारण करने के लिए आरबीआई खुदरा महंगाई दर के आंकड़े को मानता है. जबकि पिछले 13 महीनों से लगातार थोक मूल्य आधारित महंगाई दर डबल डिजिट आंकड़ों में बना हुआ है.
Inflation Data: अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई दर ( Consumer Price Index) के 7.79 फीसदी रहने के बाद आरबीआई ( RBI) ने 2022-23 के लिए महंगाई दर ( Inflation Rate) के अपने अनुमान को 6.7 फीसदी कर दिया है. जबकि अप्रैल महीने में पहली मॉनिटरी पॉलिसी ( Monetary Policy) की घोषणा करते हुए आरबीआई ( RBI) ने 5.7 फीसदी महंगाई दर रहने का अनुमान जताया था. आरबीआई ने 6 फीसदी महंगाई दर का टोलरेंस लेवल फिक्स किया हुआ है. यानि आरबीआई भी मानता है कि इस वर्ष महंगाई दर उसके टोलरेंस लेवल से ज्यादा रहेगा. यानि आम लोगों को महंगाई सताएगी.
क्यों है थोक और खुदरा महंगाई दर के आंकड़ों में अंतर
महंगाई दर का निर्धारण करने के लिए आरबीआई खुदरा महंगाई दर के आंकड़े को मानता है. जबकि ये भी सत्य है कि पिछले 13 महीनों से लगातार थोक मूल्य आधारित महंगाई दर (Inflation) डबल डिजिट आंकड़ों में बना हुआ है. अप्रैल 2022 में तो 9 सालों के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा है. अप्रैल में थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर ( WPI based Inflation) 15.08 फीसदी रहा है जो कि खुदरा महंगाई दर के आंकड़े 7.79 फीसदी से करीब दोगुना है. आपको बता दें खुदरा महंगाई दर का आंकड़ा सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है तो थोक मूल्य आधारित महंगाई दर का आंकड़ा वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है. सरकार के दो विभागों द्वारा ये आंकड़े जारी होते हैं तो सवाल उठता है कि थोक महंगाई और खुदरा महंगाई के आंकड़ों में इतना अंतर क्यों है?
प्रोड्यूसर-मैन्युफैक्चरर उपभोक्ताओं पर भार डालने से हिचक रहे
दरअसल थोक मुल्य महंगाई दर का आंकड़ा मापने के लिए वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमतें थोक बाजार के आधार पर तय होती है. जबकि खुदरा महंगाई दर का आंकड़ा वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें जो रिटेल मार्केट यानि सीधे जिस कीमत पर उपभोक्ता को उपलब्ध होता है उसके हिसाब से तय होता है. थोक मुल्य आधारिक महंगाई दर का खुदरा महंगाई दर के दोगुना होना ये दर्शाता है कि प्रोड्यूसर या मैन्युफैक्चरर किस प्रकार लागत बढ़ने का दवाब झेल रहे हैं लेकिन वे उपभोक्ताओं पर इसका भार डालने में हिचक रहे हैं. 2020-21 में थोक मुल्य आधारित महंगाई दर 1.3 फीसदी था जो 2021-22 में बढ़कर 13 फीसदी पर जा पहुंचा है. इनका मानना है कि अगर वे उपभोक्ताओं पर भार डालते हैं तो इससे खुदरा महंगाई बढ़ेगी जिसके चलते उनके प्रोडक्ट की मांग घटेगी.
सरकारी तेल कंपनियां झेल ही पेट्रोल डीजल बेचने पर नुकसान
उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 120 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा है. लेकिन सरकारी तेल कंपनियों को पेट्रोल डीजल बेचने पर नुकसान हो रहा है क्योंकि उन्होंने कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों का पूरा भार उपभोक्ता पर नहीं डाला है. अगर सरकारी टेल कंपनियां खुदरा बाजार यानि पेट्रोल पंप पर पेट्रोल डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं करेंगी को खुदरा महंगाई दर तो कम रहेगा. वहीं कई एफएमसीजी कंपनियों ने लागत बढ़ने के बावजूद इसका भार पूरी तरह उपभोक्ताओं पर नहीं डाला है. उन्होंने अपने प्रोडक्ट के पैकेट को छोटा या उसका वजन घटाकर बेच रहे हैं. बढ़ी लागत के बाद कीमतें बढ़ाने पर प्रोडक्ट की डिमांड घट जाएगी.
देश में डिमांड है कम
दरअसल देश में डिमांड घटी हुई है जिसका खामियाजा एफएमसीजी कंपनियां से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और ऑटो कंपनियां झेल रही हैं. निजी उपभोग जिसका जीडीपी में 57 फीसदी हिस्सेदारी है उसमें 2021-22 की चौथी तिमाही में 3 फीसदी की गिरावट देखी है. माना जा रहा है कि जब मांग में इजाफा होगा तब कंपनियां दाम बढ़ाने पर विचार करेंगी. तब तक यूंही थोक और खुदरा महंगाई दर के आंकड़ों में अंतर बना रहेगा.
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