नई दिल्लीः इस समय चर्चाओं में चल रही सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ टीवी मोहनदास पई ने आज आरोप लगाया कि कंपनी के प्रबंधकों ने उनके ही पद से 17.3 करोड़ रुपये का अभूतपूर्व विदाई पैकेज लेकर गए राजीव बंसल के कंपनी छोड़ने के बारे में आवश्यक सूचनाओं को समय पर सार्वजनिक नहीं किया. वैसे कंपनी के प्रबंधन तंत्र का दावा है कि इन्फोसिस में कंपनी संचालन के स्तर में कोई कमी नहीं है.


हाल में कंपनी संचालन के नियम और मानकों से कथित भटकाव को लेकर इंफोसिस कंपनी चर्चा में आ गई जब फाउंडर नारायणमूर्ति ने सीईओ विशाल सिक्का के फैसलों पर आपत्ति जताई थी.


पई ने कहा कि बंसल के पद छोड़ने के बारे में अक्तूबर 2015 की प्रेस विज्ञप्ति में सीएफओ (बंसल) और सीईओ (विशाल सिक्का) ने एक दूसरे के बारे में ‘अच्छी अच्छी बातें’ की थी, लेकिन इसमें उन्होंने विदाई पैकेज की सूचना नहीं दी. दिसंबर तिमाही के परिणाम के बाद भी उन्होंने इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की थी.


इन्फोसिस के प्रबंधन-तंत्र और कंपनी के संस्थापकों के बीच खींचतान ऐसे समय शुरू हुई है जबकि इन्फोसिस के पास इस समय 5 अरब डॉलर का कैश रिजर्व पड़ा है. संस्थापकों का कहना है कि उसे शेयर बायबैक कार्यक्रम के जरिए शेयरहोल्डर्स में बांटा किया जाना चाहिए.


पई से पूछा गया था कि क्या मौजूदा प्रबंधन तंत्र संस्थापकों की इस सूक्ति पर चल रहा है कि ‘जहां कहीं आशंका हो, बात को सार्वजनिक कर दो.’ पई ने कहा कि सीएफओ बंसल के विदायी पैकेज की जानकारी कंपनी ने अपनी वाषिर्क रिपोर्ट में तब की जबकि मीडिया को उसकी भनक लग गयी थी. उन्होंने कहा, ‘कोई किसी को नौकरी से विदा करने के लिए 24 महीने की तनख्वाह नहीं देता.’ उन्होंने कहा कि कंपनी के निदेशक मंडल की वेतन संबंधी समिति को ‘असुविधाजनक’ बंसल के मोटे विदाई पैकेज पर सवाल जरूर उठाने चाहिए थे.


क्या है मोहनदास पई की आपत्ति?
पनाया डील विवाद के बाद कंपनी के पूर्व चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) राजीव बंसल ने 2015 में इंफोसिस को छोड़ दिया था. कंपनी छोड़ते वक्त सीईओ विशाल सिक्का ने बंसल को 17.38 करोड़ रुपये का हर्जाना (सेवेरेंस अलाउंस) देना मंजूर किया और 2015 तक उन्हें बतौर हर्जाना 5 करोड़ रुपये दे दिए. फिलहाल इंफोसिस में फाउंडर्स मेंबर्स और बोर्ड के विवाद की मुख्य वजह राजीव बंसल को इतनी महंगी डील के तहत हर्जाना देना ही है.