नई दिल्लीः देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस में मचा घमासान रतन टाटा बनाम साइरस मिस्त्री के रुप में तब्दील होता दिख रहा है. एक ओर जहां एन आर नारायणमूर्ति और मोहन दास पई जैसे संस्थापक कॉरपोरेट गवर्नेंस के स्तर में गिरावट की बात कह रहे हैं, वहीं कंपनी के चेयरमैन आर शेषाषयी ऐसी किसी खबर से इनकार करते हुए सीईओ विशाल सिक्का के पक्ष में मजबूती से खड़े दिख रहे हैं. फिलहाल, राहत की बात ये है कि इस पूरे विवाद से इंफोसिस के शेयरों में कोई गिरावट नहीं देखने को मिली.


शुक्रवार को शेयर बाजार में आशंका थी कि इंफोसिस के शेयरों में खासी गिरावट देखने को मिलेगी. वजह थी कंपनी के प्रमुख संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की ओर से कॉरपोरेट गवर्नेंस में गिरावट की बात का सार्वजनिक तौर पर ऐलान करना. लेकिन इस बयान के बावजूद इंफोसिस के शेयर तेजी के साथ ही बंद हुए. शुक्रवार को 

  • इंफोसिस के शेयर 2 फीसदी से कुछ ज्यादा की तेजी के साथ 968 रुपये पांच पैसे पर बंद हुए

  • वहीं बीते एक महीने की बात करें तो 10 जनवरी को इंफोसिस के शेयर की कीमत थी 970 रुपये 60 पैसे जबकि 10 फरवरी को कीमत रही 968 रुपये पांच पैसे.


दरअसल इंफोसिस के मौजूदा प्रबंधन को लेकर तीन बड़े विवाद के मुद्दे हैं. ये मुद्दे हैं-




  • कुछ पूर्व कर्मचारियों को कंपनी छोड़ने पर एकमुश्त मोटी रकम का भुगतान

  • कुछ स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति और

  • सीईओ का वेतन-भत्ता


इस पूरे मामले में बड़ा मोड़ तब आया जब शुक्रवार को इकोनॉमिक्स टाइम्स को दिए इंटरव्यू में फाउंडर मेंबर एन न्यायमूर्ति ने साफ तौर पर कहा "दुनिया भर में हमने गुड गवर्नेंस को लेकर कई सम्मान हासिल किए. लेकिन 1 जून 2015 के बाद इंफोसिस में गवर्नेस स्टैंडर्ड में हमने गिरावट देखी है जो चिंता का विषय है. इस बात को मैं एक उदाहरण के जरिए समझाना चाहता हूं. कंपनी छोड़कर जाने वाले को 100 प्रतिशत वैरिएबल पे के साथ सेवेरेंश पे के तौर पर मोटी रकम देना और कंपनी के मौजूदा कर्मचारियों को केवल 80 प्रतिशत की दर से वैरिएबल पे देना ऐसा ही एक उदाहरण है. ऐसे में ये संदेह बनता है कि क्या कंपनी ऐसा भुगतान कुछ छिपाने के लिए कर रही है


यहां ये सवाल उठता है कि क्या यहां मुद्दा सिर्फ कॉरपोरेट गवर्नेंस का है या फिर कुछ और. जानकार भी यहां संस्थापकों की राय से इत्तेफाक रखते हैं.


सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक आर एस लूना का कहना है कि मामला कॉरपोर्ट गवर्नेंस का ही हैं. साथ ही ये बताता है कि फाउंडर मेंबर, प्रमोटर के बीच, मैनेजमेंट के बीच विवाद-मतभेद बढ़ रहे हैं और आने वाले वक्त में और विवाद सामने आएगा. उधर, कंपनी एक बयान जारी कर ऐसी तमाम खबरों का खंडन कर चुकी है कि गवर्नेंस के मामले में कोई कोताही नहीं हुई. स्टॉक एक्सचेंज को भेजे बयान में -

  • चेयरमैन आर शेषाषयी ने कहा कि कंपनी मजबूत बदलाव के दौर से गुजर रही है. कंपनी का निदेशक बोर्ड सीईओ विशाल सिक्का की रणनीतिक सोच के साथ एकमत है और उनकी पहल की तारीफ करता है.

  • मीडिया में सीईओ के वेतन-भत्ते, कुछ स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति और पुराने कर्मचारियों को कंपनी छोड़ने के समय एक मुश्त रकम के भुगतान जैसे मुद्दे उठाए गए हैं. ये मुद्दे कई महीने पुराने हैं और इन सब के बारे में कंपनी कई बार अपना पक्ष रख चुकी है. कुछ मुद्दों पर विवाद हो सकत है, लेकिन उन्हे शेयरधारकों ने बहुमत से मंजूर किया. साथ ही जहां जरुरत पड़ी वहां जानकारी सार्वजनिक की गयी.

  • निदेशक बोर्ड को कंपनी के प्रमोटर समेत विभिन्न स्टेकहोल्डर से समय-समय पर सुझाव मिलते हैं और उन पर गंभीरता से विचार किया जाता है.

  • दोनों ही पक्ष का रुख आने के बाद ये सवाल उठने लगा है कि क्या ये विवाद टाटा संस बनाम साइरस मिस्त्री जैसा तो नहीं होगा. जानकारों की मानें तो नहीं.


सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक आर एस लूना ने कहा है कि टाटा संस और ये केस अलग-अलग है. उसमें टाटा संस पे गंभीर इश्यू थे. इसमें कॉरपोरेट गवर्नेंस का इश्यू भी है. इसमें दोनों पार्टी को मिलकर मुद्दा सुलझाना होगा. आर एस लूना ने ये भी कहा है कि शेयरहोल्डर को स्वतंत्र आवाज उठानी चाहिए. उन्हे देखना है कि उनके लिए क्या ठीक है. दोनों पक्ष क्या उनके लिए सही मुद्दा उठा रहा है. हर मुद्दे का खुद ही निरीक्षण करना होगा.


फिलहाल, दोनों पक्ष के रुख सार्वजनिक होने के बाद अब सबकी नजर शेयर बाजार पर है. वैसे तो ज्यादात्तर संस्थागत निवेशक कंपनी के मौजूदा मैनेजमेंट के साथ खड़े दिख रहे हैं. ऐस में जानकारों की राय है कि छोटे निवेशकों को बेहद सोच-समझकर फैसला करना चाहिए. इंफोसिस में सवा सात लाख भी ज्यादा शेयरधारक है. इसमे से 7 लाख के करीब छोटे निवेशक हैं जिनमे से हर के पास 2 लाख रुपये तक की कीमत के शेयर हैं.