जिन लोगों की आय सिर्फ सैलरी से है वे फॉर्म-16 से अपना इनकम टैक्स रिटर्न आसानी से दाखिल कर सकते हैं. बैंक से जारी टीडीएस सर्टिफिकेट के आधार पर डिपोजिट पर ब्याज का हिसाब रखना भी आसान है. लेकिन अगर आप शेयर, म्यूचुअल फंड और दूसरे निवेश इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं तो इनका हिसाब रखना थोड़ा कठिन होता है. लिहाजा, वक्त पर रिटर्न दाखिल करने से पहले जरूरी कागजातों का प्रबंध एक जरूरी काम हो जाता है. अगर आप जल्दी-जल्दी शेयरों और म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो चार्टर्ड अकाउंटेट की मदद ले सकते हैं. सीए आपके अकाउंट को ध्यान में रख कर टैक्स रिटर्न फाइल करने में मदद कर सकते हैं.
शेयर और म्यूचुअल फंड के लॉन्ग टर्म टैक्स गेन को ध्यान में रखें
इक्विटी ट्रांजेक्शन में शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स हो सकते हैं. ये टैक्स के दायरे में आते हैं. टैक्स इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने इन्हें कितने समय तक होल्ड किया है. म्यूचुअल फंड ट्रांजेक्शन में भी शॉर्ट और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स हो सकते हैं. अगर आप इनका ध्यान नहीं रखेंगे तो इनकम टैक्स कानून के अनुसार टैक्स नहीं चुका पाएंगे. इन ट्रांजेक्शन के कारण आपकी टैक्स देनदारी बढ़ सकती है.
सर्विस प्रोवाइडर्स की मदद लें
कई सर्विस प्रोवाइडर और ब्रोकर इक्विटी, डेट, म्यूचुअल फंड और डेरिवेटिव ट्रांजेक्शन से बनी टैक्स देनदारी को दिखाने वाला स्टेटमेंट देते हैं. टैक्सपेयर इनकी सर्विस सब्सक्राइव कर सकते हैं. अपने सीए से वेरिफाई कराने के बाद इन स्टेटमेंट का इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे सुनिश्चित होगा कि वे सही टैक्स दे रहे हैं. निवेश से गेन्स के इन मदों पर टैक्स टीडीएस के अधीन नहीं है. लिहाजा, आपको आवश्यक टैक्स चालान भरकर सही टैक्स जमा करना होगा.
अगर निवेशक टैक्सपेयर एक या दो इनवेस्टमेंट एडवाइजरी सर्विसेज के जुड़ें तो किसी लेनदेन की स्थिति में साल के अंत में सभी ट्रांजेक्शन को एक जगह लाने में मुश्किल हो सकती है. यही नहीं, आने वाले वर्षों में अगर उनका रिटर्न स्क्रूटनी में आता है तो टैक्स नहीं देने के लिए उन पर जुर्माना लग सकता है. टैक्स से जुड़े दस्तावेजों को व्यवस्थित रखने दिक्कतें नहीं आएंगी.
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